अजीम प्रेमजी: कैसे एक आदमी की कार्यों ने...
अजीम प्रेमजी ने एक छोटे परिवार के स्वामित्व वाली कुकिंग ऑयल कंपनी को एक मल्टी-बिलियन आईटी आउटसोर्स कंपनी में बदल दिया।
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08 मार्च,2022
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जिन्हें नहीं पता उन्हें बता दें कि धीरजलाल हरिचंद अंबानी - या धीरूभाई अंबानी, जिस नाम से उन्हें अक्सर बुलाया जाता है, ने रिलायंस कमर्शियल कॉर्पोरेशन की स्थापना की थी। हालाँकि उनका जन्म गरीब परिवार में हुआ था, लेकिन उन्होंने जिस कंपनी की स्थापना की, वह भारत के सबसे सफल और सबसे चर्चित कंपनियों में से एक बन गई।
28 दिसंबर, 1932 को जन्मे, अंबानी गुजरात के एक छोटे से गाँव चोरवाड़ के रहने वाले थे। अंबानी ने उम्र के 30 के दशक में 1966 में रिलायंस कमर्शियल कॉर्पोरेशन की स्थापना की, जो पॉलिएस्टर फर्म थी। सात साल बाद कंपनी ने अपना नाम बदलकर रिलायंस इंडस्ट्रीज कर दिया। इस कंपनी ने आखिरकार फाइनांस और पेट्रोलियम के क्षेत्र में प्रवेश किया। 2002 में उनकी मृत्यु के बाद, कंपनी की बागडोर उनके दो बेटों - अनिल और मुकेश अंबानी ने संभाली।
धीरूभाई अंबानी के पिता शिक्षक थे जो अपने गांव के एक छोटे से स्कूल में पढ़ाते थे। पिता की शैक्षणिक पृष्ठभूमि के बावजूद, धीरूभाई ने केवल 10 वीं तक पढ़ाई की और फिर काम करने लगे।
माना जाता है कि उनका शुरुआती वेतन मात्र 300 रूपये था। 17 साल की उम्र में, वह अपने भाई रमणीकलाल के साथ काम करने के लिए यमन चले गए। यमन में धीरूभाई एक पेट्रोल पंप पर काम करते थे। उनकी मेहनत रंग लाई और उन्हें तरक्की मिली और फिर वह फाइलिंग मैनेजर बन गए। अंततः, धीरूभाई भारत वापस चले गए और उन्होंने बिज़नेसमैन बनने का सपना देखा।
1958 में, धीरूभाई अंबानी भारत लौट आए औ उन्होंने अपने चचेरे भाई चंपकलाल के साथ "माजिन" नामक कपड़े का कारोबार करने लगे। यह कंपनी मसालों से लेकर रेयॉन जैसे कपड़ों के निर्यात यमन से पॉलिएस्टर के आयात का काम करती थी। उनका पहला ऑफिस मस्जिद बंदर में सिर्फ 33 वर्ग मीटर में सिमटा हुआ था। धीरूभाई और उनके चचेरे भाई के बीच कीसाझेदारी1965 में ख़त्म हो गई क्योंकि कंपनी को चलाने के तरीके के बारे में उनकी राय अलग-अलग थी।
अंबानी चतुर बिज़नेसमैन थे जो जोखिम लेने को तैयार थे और विपणन के महत्व से अवगत थे। उनका मानना था कि इन्कम बढ़ाने के लिए इन्वेंटरी तैयार करना ज़रूरी है। इसलिए उन्होंने रिलायंस कमर्शियल कॉर्पोरेशन लॉन्च करने का फैसला किया, जिसे फिलहाल रिलायंस इंडस्ट्रीज के रूप में जाना जाता है।
हालांकि यह कंपनी ने मूल रूप से मसालों के ट्रेड पर केंद्रित थी, लेकिन बाद में कई अन्य वस्तुओं को शामिल कर इसका विस्तार किया गया। उनके बिज़नेस मॉडल ने अपने प्रतिस्पर्धियों के मुकाबले कम मुनाफे के साथ बेहतर क्वालिटी के प्रोडक्ट पेश करने की स्ट्रेटेजी का पालन किया। और कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि उसका बिज़नेस बढ़ने और विस्तार करने लगा।
जब धीरूभाई ने यह निर्धारित कर लिया कि उनकी कंपनी का विस्तार जहाँ तक हो सकता है हो गया, जहाँ तक वस्तुओं का संबंध है, तो उन्होंने अपना ध्यान सिंथेटिक टेक्कीसटाइल ओर लगाना शुरू कर दिया। उन्होंने बैकवर्ड इंटीग्रेशन पर ध्यान दिया और 1966 में पहली रिलायंस टेक्सटाइल मिल खोली। कंपनी अंततः पेट्रोकेमिकल क्षेत्र की शीर्ष कंपनी बन गई और अपनी पेशकश में बिजली उत्पादन और प्लास्टिक शामिल कर लिया।
1977 में जब नेशनलाइज्ड बैंकों ने फंडिंग करने से मना कर दिया तो अंबानी ने कंपनी को पब्लिक कर दिया। वह सरकारी नियमों और नौकरशाही को संभालने और काबू करने में माहिर थे, सो उन पर भ्रष्टाचार और हेराफेरी करने का आरोप लगा, हालांकि, इन्वेस्टर्स भरोसा कंपनी में बना रहा। यह आम तौर पर कंपनी द्वारा इन्वेस्टर्स को दिए जाने वाले इन्वेस्टर्स का परिणाम था और साथ ही धीरूभाई के विज़न पर इन्वेस्टर्स के भरोसे का भी।
अंबानी को शेयर बाजार को जनता तक पहुँचाने का श्रेय दिया जाता है और उनकी कंपनी की एनुअल जेनरल मीटिंग में हजारों लोग भाग लेते थे, इसलिए ये कार्यक्रम अक्सर स्पोर्ट्स स्टेडियमों में आयोजित किए जाते थे या टेलीविजन पर प्रसारित होते थे।
1980 के दशक के मध्य में अंबानी ने कंपनी का रोज़मर्रा का कामकाज अपने बेटों - अनिल और मुकेश को सौंपने का फैसला किया, हालांकि, उन्होंने 2002 में अपनी मृत्यु तक कंपनी की देखरेख की।
पुरस्कार और सम्मान
धीरूभाई अंबानी को निम्नलिखित सहित कई पुरस्कार प्रदान किए गए।
2001 -
2000 –
1999 -
1998 -
1993-
जैसा कि धीरूभाई अंबानी की स्टोरी से स्पष्ट है कि प्रेरणा, दृष्टि और दृढ़ता का फल मिलता हैं। समय के साथ जो समझ बनी, धीरूभाई उसका फायदा उठाने में कामयाब रहे और इन्हें अपने किस्म की बेजोड़ कंपनी बनाने की प्रक्रिया में लागू कर सके।
डिस्क्लेमर: इस ब्लॉग का उद्देश्य है जानकारी देना, न कि इन्वेस्टमेंट के लिए कोई सलाह/टिप्स देना और न ही किसी स्टॉक को खरीदने या बेचने की सिफारिश करना।
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