इन्वेस्को ने ज़ी को एनसीएलटी में घसीटा

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17 दिसम्बर,2021

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इन्वेस्टर के रूप में आपको इन्वेस्को और ज़ी की खबर के बारे में पता होना चाहिए।

अधिकांश इन्वेस्टर उन कंपनियों की खबर नहीं देखना चाहते, जिनमें उन्होंने इन्वेस्टमेंट किया है। वे तब तक जानने की कोशिश नहीं करते जब खबर विस्तार या पुरस्कारों और प्रशंसा से जुड़ी न हो या कुछ ऐसी बात जो अच्छी खबर के रूप में देखी जा सकती हो।

उन्हें यह जानकर खुशी होती है कि जिस कंपनी में उन्होंने इन्वेस्ट किया है, उसने अधिग्रहण कर लिया है (या छोटी मछली को निगल लिया है)। वे खुश होते हैं जब कंपनी एक नया मैन्युफैक्चरिंग या रिटेल सेंटर खोलती है या नई जगह कदम रखती है। यदि कंपनी बेंचमार्क इंडेक्स में जगह बनाती है तो उन्हें बेहद खुशी होती है।

लेकिन अदालत में घसीटा जाना? यह कभी अच्छी खबर नहीं है। हालांकि, यह बहुत बुरी खबर भी नहीं है। क्या ज़ी के इन्वेस्टर्स को चिंता करनी चाहिए? चलिए पता करते हैं।

हुआ क्या है? ज़ी और इन्वेस्को के बीच किस बात का विवाद है?

अमेरिका के इंस्टीच्यूशनल इन्वेस्टर इन्वेस्को ने 11 सितंबर को एक एक्स्ट्राआर्डिनरी जनरल मीटिंग बुलाने को कहा (जैसा कि नाम से साफ़ है, ऐसा एक्स्ट्राआर्डिनरी परिस्थितियों में आयोजित होने वाली शेयरहोल्डर्स की एजीएम है और अलग से होती है)। इन्वेस्को ज़ी के मौजूदा सीईओ पुनीत गोयनका को बदलने के लिए 6 इंडिपेंडेंट बोर्ड के मेंबर्स के विचार पर चर्चा करना चाहती थी। वह दो अन्य डायरेक्टर को भी हटाना चाहती है।

न्यूज वायर की रिपोर्ट ने संकेत दिया है कि इन्वेस्को चाहती है कि ज़ी के सीईओ कथित रूप से खराब कॉर्पोरेट गवर्नेंस और वित्तीय अनियमितताओं के मद्दे नज़र पद छोड़ दें।

इन्वेस्को के पास ईजीएम बुलाने का अधिकार है (हालांकि यह अनुमान लगाना कठिन है कि शेयरहोल्डर्स का वोट किधर का रुख करेगा) क्योंकि कंपनी में 10 प्रतिशत से अधिक हिस्सेदारी रखने वाले किसी भी इन्वेस्टर को ऐसी बैठक बुलाने का अधिकार है, और उसे दो सप्ताह के भीतर बैठक की तारीख दी जानी चाहिए। इन्वेस्को के पास दो फंडों के ज़रिये ज़ी में लगभग 18% हिस्सेदारी है, अर्थात् डिवेलपिंग मार्केट्स फंड और ओएफआई ग्लोबल चाइना फंड के ज़रिये।

दूसरी ओर ज़ी का दावा है कि यह कंपनी भारतीय कानूनों के विरुद्ध ज़ी के प्रबंधन को अपने हाथ में लेने की कोशिश कर रही है। एंटरटेनमेंट ब्रांड ज़ी ने एक अक्टूबर को प्रमुख इन्वेस्टमेंटक के अनुरोध को खारिज कर दिया।

हालांकि यह अनुमान लगाने का कोई तरीका नहीं है कि शेयरहोल्डर कैसे वोट करेंगे लेकिन यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि इन्वेस्को ने छः लोगों को चुना था।

इससे पहले कि ज़ी के पास इन्वेस्को के अनुरोध को खारिज़ करने का मौका था, हालांकि, कंपनी ने पहले ही - 29 सितंबर को नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल, यानी एनसीएलटी में एक मामला दायर किया था।

इन्वेस्को इंडिपेंडेंट डायरेक्टर्स को बोर्ड में बैठाना चाहती है, जबकि ज़ी संस्थापक परिवार की लीडरशिप को बनाए रखना चाहती है।

यथास्थिति क्या है? अभी क्या स्थिति है?

बहुत कुछ हुआ है:

  • केस एनसीएलटी से बॉम्बे हाईकोर्ट चला गया। 
  • गोयनका टीवी पर यह शिकायत करते हुए दिखाई दिए कि विदेशियों ने उनके परिवार के सालों के काम को छीनने की कोशिश कर रही है। 
  • इन्वेस्को ने शेयरहोल्डर्स को एक खुला पत्र लिखा था जिसमें संकेत दिया गया था कि ज़ी पीआर अभियान और ध्यान भटकाने की रणनीति का उपयोग कर रही था। 
  • इस बीच, बम्बई हाईकोर्ट ने ज़ी को आगे बढ़कर ईजीएम आयोजित करने के लिए कहा था, हालांकि अब इसके अनुरोधों की वैधता पर सवाल उठाए जा रहे हैं।

इन्वेस्टर्स को इसमें भी दिलचस्पी हो सकती है कि सेबी ने पहले भी वित्तीय अनियमितताओं के बारे में ज़ी से सवाल किये थे, हाल ही में इस साल जून में। सेबी ने तब "बड़ी बकाया राशि" का उल्लेख किया था और यह भी कहा था कि "कंपनी की पहल शेयरहोल्डर्स के हित में नहीं है।"

यह कहानी शुरू होने से अब तक कंपनी का शेयर 177 रुपये से 255 रुपये और अब 316 रुपये तक हो गया है।

समय क्यों ठीक नहीं है? या क्या समय ठीक नहीं है?

जो कहानी ट्रैक नहीं कर रहा है उसे लग सकता है कि यह ज़ी के लिए भयानक समय है। यह सारा ड्रामा और सुर्खियाँ ठीक उसी समय सामने आईं जब ज़ी सोनी पिक्चर्स के साथ मर्जर पर विचार कर रही था।

हालांकि, इन्वेस्टर्स को ध्यान इस पर देना चाहिए कि सोनी पिक्चर्स के साथ सुर्खियां बटोरने वाला मर्जर इन्वेस्को के ज़ी को लिखे पत्र के कुछ दिनों बाद ही हुआ।

मर्जर की कागजी कार्रवाई में कहा गया है कि गोयनका ज़ी के सीईओ के रूप में बने रहेंगे। ऐसा लगता है कि इन्वेस्को को मर्जर से शिकायत नहीं है, हालांकि उसने इस कदम को बेतरतीब बताया।

हालाँकि, सोनी के साथ और बिना साझेदारी के ज़ी के बिज़नेस को "वैल्युएबल" बताते हुए, इन्वेस्को ने कहा था कि वह ज़्यादा जवाबदेही देखना चाहती है। हालांकि इस ग्लोबल इन्वेस्टर का कहना है कि सोनी का सौदा ज़ी के बाकी शेयरहोल्डर्सों के साथ अनुचित है क्योंकि 

  • इससे संस्थापक परिवार को अपना स्वामित्व चार प्रतिशत से बढ़ाकर 20 प्रतिशत करने में मदद कर सकता है। 
  • संस्थापक परिवार को अतिरिक्त दो प्रतिशत हिस्सेदारी दिए जाने से मौजूदा शेयरहोल्डर्सों की हिस्सेदरी भी कम होती है। उक्त क्लॉज़ में इसे "गैर प्रतिस्पर्धा" कहते हैं, लेकिन यहाँ प्रतिस्पर्धी पहल का सवाल समझ में नहीं आता है क्योंकि गैर-प्रतिस्पर्धा के रूप में तब सामने आती है जब कोई स्टेकहोल्डर किसी कंपनी से अलग हो जाता है।
  • यह एंटरटेनमेंट कंपनी की स्मार्ट पीआर या ध्यान भटकाने वाली चाल है, जो "वैग द डॉग" की स्थिति पैदा कर सकती है जिसके तहत जनता - या इस मामले में शेयरहोल्डर्स - का ध्यान मुख्य मुद्दे, कॉर्पोरेट गवर्नेंस और वित्तीय अनियमितताओं से भटक सकता है।

ज़ी के शेयरहोल्डर्स को क्या होना चाहिए?

यदि आप इस स्टॉक को नहीं होल्ड करने के बारे में जबरदस्त फोमो महसूस कर रहे हैं, तो वाजिब है कि आप तब महसूस कर रहे जबकि शेयर प्राइस 177 रुपये से बढ़कर 316 रुपये हो गई। भावना में बहकर कभी इन्वेस्टमेंट का फैसला नहीं करना चाहिए।

मौजूदा शेयरहोल्डर्स को यदि अपना टारगेट प्राइस मिल गया है तो वे बाहर निकलने पर विचार कर सकते हैं क्योंकि स्टॉक की कीमत उच्चतम स्तर पर है। हालांकि, उन्माद में स्टॉक डंप करने से बचें। सोच समझकर निर्णय लें। यदि अब तक टारगेट प्राइस न मिला हो तो आप अपने स्टॉक को अलग-अलग तरीके से बेचने पर विचार कर सकते हैं, या यदि आप जानते हैं कि इसे कैसे खेलना है, तो आप अपने-आपको सुरक्षित रखने के लिए ऑप्शन कॉन्ट्रैक्ट का उपयोग कर सकते हैं और संभावित रूप से ऊँचे मुनाफे का लक्ष्य रख सकते हैं।

इच्छुक इन्वेस्टर ज़ी की वित्तीय स्थिति को ठीक से परखना चाह सकते हैं, और पी / ई रेशियो जैसे वैल्यू इन्वेस्टिंग के तरीकों का उपयोग कर सकते हैं ताकि यह तय हो सके कि यह अच्छा इन्वेस्टमेंट फैसला है या नहीं।

निष्कर्ष:

इन्वेस्टर्स को हमेशा शांत रहना चाहिए और किसी खास कंपनी के बारे में सुर्खियां बटोरने वाली प्रतिक्रिया से बचना चाहिए। हमेशा अपनी जोखिम उठाने की क्षमता, एंट्री प्राइस और टारगेट प्राइस विचार करें और जोखिमों कम करने के लिए हमेशा वैल्यू इन्वेस्टमेंट के तरीकों का उपयोग करें।

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