सेंसेक्स के इतिहास में सबसे बड़े...
अनगिनत कहावतें हैं, शेयर बाजार के इन्वेस्टर को सावधान करने और सुकून देने के लिए। इसमें "जो ऊपर जाता है वह नीचे भी आता है" जैसी कहावत शामिल है। यह दरअसल…
18 मई,2021
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यह संभव है कि आप कार को पास के किसी गैरेज में ले जाकर मैकेनिक की मदद लेंगे। या यदि आप किसी और ड्राइवर देखते हैं जिसका टायर फट गया हो और जो जानता हो कि इसे कैसे ठीक करना है तो आप बस उसे देखकर अपनी समस्या का समाधान कर सकते हैं।
जब इन्वेस्ट करने की बात आती है तो ज़्यादातर इन्वेस्टर ऊपर बताये गए पहले आदमी की तरह होते हैं - आमतौर पर उनके पास इंडेक्स या बाजार के लॉन्ग टर्म रिटर्न को मात देने की समझ नहीं होती है। ज़्यादातर फुलटाइम ट्रेडर भी नहीं होते और वे आम तौर पर जीवन लक्ष्य हासिल करने के लिए अपनी ज़्यादा बचत करने में रुचि रखते हैं। वे करते क्या हैं? खैर, वे या तो विभिन्न किस्म की सिक्योरिटी समूह में इन्वेस्ट कर सकते हैं - जैसे, इंडेक्स फंड के ज़रिये, या अन्य विशेषज्ञ इन्वेस्टर सलाह ले सकते हैं मसलन, म्यूचुअल फंड के ज़रिये।
हालांकि, हाल में, इन्वेस्टमेंट और ट्रेडिंग की दुनिया में एक और प्रक्रिया सामने आई है - इसे शैडो इन्वेस्टिंग कहते हैं। शैडो इन्वेस्टमेंट में आप बस एक विशेषज्ञ, अनुभवी इन्वेस्टर के नक्शेकदम पर चलते हैं - इन्हें अक्सर मार्की इन्वेस्टर कहते हैं। ये इन्वेस्टर या तो हाई नेटवर्थ वाले के खुदरा निवेशक होते हैं या फिर इंस्टीच्यूशनल जो अपने इन्वेस्टमेंट को सोने में बदलने की कला के लिए मशहूर होते हैं। यदि मैं और आप ऐसे इन्वेस्टर के ट्रेंड को फॉलो करें तो ज़्यादा से ज़्यादा क्या होगा - उस इन्वेस्टर की सफलता की कहानी को दोहराने के जिसे आप फॉलो करना चाहते हैं? खैर, बहुत कुछ हो सकता है।
शैडो इन्वेस्टिंग के लिहाज़ से यह समझने की ज़रुरत है कि आप एक खुदरा इन्वेस्टर के तौर पर हमेशा एक मार्की इन्वेस्टर के नक्शेकदम की नकल करेंगे - जो एकदम वैसे ही कदम उठाने जैसा नहीं है। यदि आप सिर्फ किसी इन्वेस्टर की नक़ल भर कर रहे हैं तो इसे कॉपी-ट्रेडिंग कहेंगे न कि शैडो इन्वेस्टमेंट। बस गूगल पर कॉपी ट्रेडिंग की मतलब ढूंढें और आपको पता चल जायेगा कि अंतर क्या है! आपकी इन्वेस्टमेंट का आकार अलग हो सकता है और समय भी। दरअसल, शैडो इन्वेस्टिंग संभव है सेबी जैसे संस्थानों द्वारा लागू डिस्क्लोज़र क़ानून की वजह से।
इन डिस्क्लोज़र कानूनों के कारण आपको शायद पता चल जायेगा कि कब एक बड़ा इन्वेस्टर किसी छोटी, मंझोली या बड़ी कंपनी के शेयर खरीदता है। यदि बाजार की सुर्ख़ियों के ज़रिये नहीं तो आपको इसकी जानकारी किसी कंपनी की तिमाही या वार्षिक रिपोर्ट में मिल जाएगी। हालाँकि, आपको यह नहीं पता चलेगा कि आपके मार्की इन्वेस्टर ने किसी कंपनी विशेष में कब और कितना निवेश किया है। यही शैडो इन्वेस्टिंग की सबसे बड़ी दिक्कत है।
पहली बात कि यदि आप किसी मार्की इन्वेस्टर को फॉलो कर रहे हैं तो आपको यह सटीक तौर पर पता नहीं चलेगा कि इन्वेस्टर ने उस स्टॉक को कब खरीदा। सो आपके और उनके शेयर की खरीद के समय में काफी फर्क हो सकता है। और दूसरी बात यह है कि किसी इंस्टीच्यूशनल / हाई नेट वर्थ इन्वेस्टर के कंपनी से बाहर निकलने से बाज़ार हिल सकता है। यदि उन्होंने अधिक मुनाफे के शेयर बेचे तो आपको ऐसे ट्रेड में नुकसान होना तय है।
साथ ही आपको शायद पता न हो कि किसी विशेष कंपनी में आपके मार्की निवेशक की हिस्सेदारी कितनी है। इसके साथ समस्या यह है कि एक ही कंपनी में आपकी इन्वेस्टमेंट मार्की इन्वेस्टर के मुकाबले बहुत अलग पोर्टफोलियो में दिखेंगे। उनके पोर्टफोलियो में ज़्यादा जोखिम वाला हिस्सा छोटा दिख सकता है और वही आपके पोर्टफोलियो का बहुत बड़ा हिस्सा हो सकता है। इससे भी अधिक महत्वपूर्ण बात यह है कि आपकी जोखिम झेल पाने की क्षमता उन इन्वेस्टर के मुकाबले वैसे भी अलग होगी जिसे आप फॉलो कर रहे हैं। यदि हालत ठीक न रहे तो दोनों पार्टी के नुकसान का स्तर अलग-अलग होगा।
और आख़िरकार शैडो इन्वेस्टिंग में सूचना का गैप होता होता है और इसकी कमी भी होती है। मार्की निवेशक अक्सर क्रिएटिव रणनीति अपनाते हैं जो उनके पर्सनल पोर्टफोलियो और जोखिम झेलने की ताक़त के अनुरूप होता है। सो मार्की इन्वेस्टर का ट्रेड या इन्वेस्टमेंट बड़ी तस्वीर का नन्हा सा पिक्सेल ही हो सकता है। इसे ही सूचना का गैप कहा जा सकता है। इसके अलावा जिस टाइम लैग के आधार पर अलग-अलग स्तर के बाज़ार और इंडस्ट्री के दायरे में आप शेयर खरीदते और बेचते हैं वह मार्की इन्वेस्टर द्वारा किये गए उसी तरह के फैसले से बिल्कुल अलग हो सकता है। यह इन्फॉर्मेशन लैग का नतीज़ा है - इन दोनों समस्याओं से पता चलता है कि खुदरा इन्वेस्टर बाज़ार में इन्फॉर्म्ड गेस के अलावा अलग तरीका अपनाते हैं - इसी वजह से कई विश्लेषक इसके बेहतरीन फेनोमेनन बताते हैं।
शैडो इन्वेस्टिंग बाजार के रिटर्न को मात देने का विकल्प नहीं हो सकता है, खुदरा इन्वेस्टर मार्की और इंस्टीच्यूशनल इन्वेस्टर के रुझान को समझने की कोशिश कर सकते हैं - और ऐसी रणनीति ढूँढ सकते हैं चाल वैसी ही हो। शेयर बाज़ार की कम समझ रखने वाले और कम जोखिम सह पाने वाले इन्वेस्टर के लिए एक और तरीका है कि वे अपने पोर्टफोलियो के बड़े हिस्से में इंडेक्स और म्यूचुअल फंड को शामिल करें - इसके बाद शैडो इन्वेस्टिंग करते रहें ताकि ठोस फंडामेंटल और टेक्निकल एनालिसिस के आधार पर मौके की तलाश करें और रुझान को समझें।
कई खुदरा इन्वेस्टर मिलेंगे जो दावा करते हैं कि वे शैडो इन्वेस्टिंग के ज़रिये बाजार को कैसे पीछे छोड़ देते हैं। ऐसे हालत में, हमेशा बाज़ार की स्थितियों को समझने की कोशिश करें - और आंकड़ों पर ठीक से गौर करें। क्या जिस अवधि में मुनाफा हुआ उसमें बाज़ार में आप तौर पर तेज़ी थी? जब नुकसान हुआ तो रणनीति कहाँ गलत हुई? किसी रुझान की गिरफ्त में आने से पहले इन सवालों का जवाब दें ताकि पछताना न पड़े।
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