ट्रैकिंग स्टॉक क्या हैं?
समझें कि ट्रैकिंग स्टॉक क्या हैं और उनका उपयोग किसके द्वारा किया जाता है| साथ ही जानें कई वे कितनी वैल्यू प्रदान करते हैं।
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13 जुलाई,2021
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आप ये सब आसानी से कर सकें इसके लिए आपको कुछ प्रैक्टिस की ज़रूरत होगी। वैसे, अनुभवी ट्रेडर की तरह जटिल रणनीतियाँ तुरंत अपनाने का कोई मतलब नहीं। इसका मतलब यह है कि इसमें आपकी मेहनत की कमाई लग रही है इसलिए आपको ऐसी रणनीति अपनानी चाहिए जिससे जोखिम कम हो और मुनाफ़ा अधिक से अधिक हो।
यहां कुछ प्रमुख रणनीतिक पहल का ज़िक्र किया गया है जो आप उठा सकते हैं। बेहतरीन मुनाफे के लिए इन सबको मिलाकर उपयोग करें।
यह स्टॉप लॉस सेट करके हासिल किया जाता है। स्टॉप लॉस आपके ब्रोकर को बताता है कि यदि स्टॉक की कीमत निश्चित स्तर तक गिरती हैं तो आप ट्रेड से बाहर निकलना चाहते हैं। उदाहरण के लिए ट्रेडर 50 रुपये में शेयर खरीदकर 47 रुपये पर स्टॉप लॉस लगा सकता है। 49.5 रुपये क्यों नहीं? क्योंकि कीमत में उतार-चढ़ाव के लिए ट्रेडर को पर्याप्त रखना गुंजाइश रखनी चाहिए। शेयर की कीमत में बढ़ने से पहले मामूली गिरावट हो सकती है। आखिरकार, शेयर बाजार में कमाई उतार-चढ़ाव के कारण ही आती है। स्टॉक की कीमत में पूरे दिन उतार-चढ़ाव होता है और किसी को नहीं पता कि अगले मिनट कीमत कहाँ होगी। इसलिए ट्रेडर के लिए यह आवश्यक है कि वे स्टॉप लॉस तय करें, और स्टॉप लॉस तय करते हुए बहुत कंज़रवेटिव नहीं हों।
अनुभवी ट्रेडर अक्सर शौकिया ट्रेडर को सलाह देते हैं कि जब उनके स्टॉक की कीमत बढ़ रही हो तो खुद पर लालच हावी न होने दें। लालच कारण जो इमोशनल ट्रेडिंग होती है उसे खत्म करने का सबसे आसान तरीका है टार्गेट प्राइस तय करना। आप जानते हैं कि आपने कितने पर स्टॉक खरीदा है। टार्गेट प्राइस तय करें और इसे हासिल करने के बाद ट्रेड से निकल जाएँ। शेयर की कीमत कभी भी बदल सकती है।
वेस्ट में, इसे ब्लैक फ्राइडे सेल्स कहते है। भारत में हम अक्सर बड़े सामान (जैसे नया टेलीविज़न) खरीदने के लिए अक्टूबर-नवंबर तक का इंतज़ार करते हैं ताकि दिवाली के दौरान आने वाले डिस्काउंट का फायदा उठाया जा सके। मशहूर इन्वेस्टर वॉरेन बफे और उनके मेंटर, बेंजामिन ग्राहम की पसंदीदा तरकीब, "डिस्काउंट पर" शेयर खरीदने को वैल्यू इन्वेस्टिंग कहा जाता है। इस रणनीति के लिए आपको पी/ई रेशियो (कीमत के मुकाबले अर्निंग का रेशियों) जैसे कॉन्सेप्ट में सर खपाना होता है ताकि यह तय किया जा सके कि स्टॉक ओवरवैल्यूड है या अंडरवैल्यूड।
ओवरवैल्यूड स्टॉक वे स्टॉक होते हैं जिनकी कीमत अधिक होती है जो कंपनी की कमाई के अनुरूप नहीं होती है। हो सकता है कि किसी अन्य फैक्टर से कीमत बढ़ी हो। लेकिन कंपनी की परफॉर्मेंस अच्छी नहीं होती तो कीमत जल्दी ही गिर सकती है। इसे प्राइस रैशनलाइज़ेशन कहते हैं। आने वाली तिमाही या सालाना रिपोर्ट में ऐसी रैशनलाइज़ेशन हो सकती है। आप निश्चित रूप नहीं चाहेंगे कि आप कोई स्टॉक खरीदें और उसकी कीमत गिर जाए।
अंडरवैल्यूड शेयरों की कीमत कंपनी की अर्निंग के मुकाबले कम दिखती है। वैल्यू इन्वेस्टरों की धारणा यह है कि कीमत बढ़ने पर रैशनलाइज़ होगी और उन्हें फायदा होगा।
नौसिखिए ट्रेडर के तौर पर यह उम्मीद करना ठीक नहीं होगा कि आप अपने-आप, जादुई तरीके से किसी प्रोफेशनल की तरह इसका उपयोग करने लग जायेंगे। हालांकि, आप बुनियादी बातों का ध्यान रख सकते हैं, जैसे किसी निश्चित अवधि, जैसे साल भर के दौरान स्टॉक की अधिकतम कीमत और न्यूनतम कीमत पर नज़र डालें यह तय करने के लिए कि मौजूदा कीमत पर खरीदना या बेचना ठीक है या नहीं।
इन्वेस्टमेंट चुनते समय खुद रिसर्च करें। कंपनी की बैलेंस शीट पर गौर करें और उनकी अर्निंग के साथ-साथ उनकी क्षमता का मूल्यांकन करें - यह देखें कि उनके एसेट और लायबिलिटी कैसी दिखती हैं? कंपनी से जुड़ी खबरों पर नजर रखें: विलय और अधिग्रहण, नए लोकेशन की खबर आमतौर पर अच्छी होती है; कोर्ट केस बुरी खबर होती है और इससे शेयर की कीमत पर असर हो सकता है। सेक्टर पर भी नजर रखें: सब्सिडी अच्छी खबर है; कोई नया टैक्स बुरी खबर हो सकती है।
हालांकि, कोई स्टॉक सिर्फ इसलिए बेचने से बचें कि दूसरे इन्वेस्टर स्टॉक डंप कर रहे हैं। यदि किसी मामला जल्द ही ख़त्म होना है, तो बेचने का क्या फायदा जब कीमत गिर रही है क्योंकि बहुत से लोग बेच रहे हैं?
नए ट्रेडर के तौर पर आप शायद उस दिन बड़े जोखिम, बड़े दांव, ज़्यादा रफ़्तार वाली ट्रेडिंग न करना चाहें जैसी ट्रेडिंग डे ट्रेडर और शॉर्ट टर्म ट्रेडर करते हैं। वे हर शेयर पर कम लाभ कमाने की तलाश में होते हैं उनकी ट्रेड की मात्रा को देखते हुए कुल मिलाकर यह बड़ा मुनाफ़ा हो जाता। ये इन ट्रेडर का कैरियर ऐसे ही ट्रेड बनता है।
यदि आप पैसिव इन्वेस्टर बनना चाहते हैं, तो इन्वेस्टमेंट की अवधि लम्बी हो, यह सबसे अच्छा है। कीमत में रोज़ उतार-चढ़ाव होता है लेकिन लॉन्ग टर्म में, आप आमतौर पर देखेंगे कि ज्यादातर कंपनियों के स्टॉक का ग्राफ़ ऊपर की ओर जाता है। ग्राफ में ऊपर की ओर 'टीथ' का आकार दिखता है ... ये "टीथ" कीमत में शॉर्ट टर्म उतार-चढ़ाव हैं। दूसरे शब्दों में, लॉन्ग टर्म में ये जोखिम ख़त्म हो जाते हैं।
लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि बेतरतीब तरीके से स्टॉक लें। आपको अब भी सावधानी से चुनना चाहिए, स्टॉप लॉस और टार्गेट प्राइस तय करें और सही समय पर खरीदें - आम तौर पर तब नहीं जब बाज़ार अपने उच्चतम स्तर पर हो।
बहुत से लोग सफ़र करते समय अपने फ़ॉरेक्स को अलग-अलग जगह रखते हैं, अलग-अलग सामान और लोगों के बीच। यह सब चोरी से बचाव के लिए किया जाता है। यही बात स्टॉक पर लागू होती है। स्टॉक की कोई चोरी नहीं होती, वह भी तब जबकि ये डिजिटल फॉर्म में हों (बजाय पुराने दौर के सर्टिफिकेट की तरह जो पैसे की तरह चोरी हो सकते थे)। सो आप विभिन्न सेक्टर की कंपनियों में इन्वेस्टमेंट का विकल्प देखते हैं ताकि यदि एक कंपनी या एक सेक्टर अंडरपरफॉर्म कर रहा हो तो दूसरी कंपनियों या सेक्टर के प्रदर्शन से इसकी भरपाई की जा सके।
सो अब आपके पास ये सात रणनीतियाँ हैं, तो आपको शेयर बाजार से मुनाफा मिलना पक्का है, है ना? गलत! शेयर बाजार में एक चीज़ की गारंटी है वह है जोखिम की। हर उस व्यक्ति से सावधान रहें जो आपसे गारंटी की बात करता हो। हमेशा अतिरिक्त पूंजी ही इन्वेस्ट करें जो आपने रोज़मर्रा के खर्च से बचा कर रखा हो। अपने लिए रिसर्च खुद करें और हाँ अपनी जागरूकता बढ़ाएं, जैसा कि आप अभी कर रहे हैं।
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