कैपिटल गेन्स टैक्स क्या है और इसे कैसे कैलकुलेट किया जाता है?

21 सितम्बर,2021

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यह आर्टिकल कैपिटल गेन्स टैक्स और इसके कैलकुलेट के महत्व के साथ-साथ टैक्स एग्ज़ेम्प्शन के प्रावधानों पर रोशनी डालता है।

क्या हाल-फिलहाल आपकी शेयर बेचने की योजना है?  तो, बिक्री के समय अपने स्टॉक्स की ग्रोथ वैल्यू टैक्स देने के लिए तैयार रहें। स्टॉक, म्यूचुअल फंड या रियल एस्टेट जैसे कैपिटल इन्वेस्टमेंट पर खरीद के मुकाबले ऊंची कीमत पर बेचने से आम तौर पर कैपिटल गेन्स टैक्स लगता है।

कैपिटल गेन्स टैक्स क्या है?

कैपिटल गेन्स वह वैल्यू है जिस पर खरीद की तारीख से बिक्री तक कैपिटल एसेट ग्रो करता है। कैपिटल गेन्स तभी कैलकुलेट किया जाता है जब एसेट जिस कीमत पर बेचा गया, वह खरीद कीमत से अधिक हो। कैपिटल एसेट में ज्यादातर शेयर, म्यूचुअल फंड, या घर, जमीन जैसी रियल एस्टेट प्रॉपर्टी शामिल होती है।

उपरोक्त किसी भी कैपिटल एसेट की बिक्री से हासिल कैपिटल गेन्स को 'इन्कम' माना जाता है और इस तरह टैक्सेबल हो जाता है और इसे कैपिटल गेन्स टैक्स कहते हैं। कैपिटल गेन्स टैक्स किसी एक वित्त वर्ष में देने योग्य एकमुश्त कर है जिस दौरान कैपिटल एसेट की बिक्री हुई हो।

गौरतलब है कि विरासत में मिली एसेट पर कैपिटल गेन्स टैक्स नहीं लगता है, क्योंकि यह बिक्री लेन-देन नहीं है, और भारत का इन्कम टैक्स एक्ट ऐसे एसेट को वसीयत या विरासत को गिफ्ट के रूप में देखा जाता है और इस टैक्स में छूट है। हालांकि, जब उत्तराधिकारी इसे बेचने का फैसला करता है, तो एसेट की वैल्यू में वृद्धि पर कैपिटल गेन्स टैक्स लागू होता है।

भारत में कैपिटल एसेट

भारत में सामान्य प्रकार की कैपिटल एसेट में ओपन लैंड, कंस्ट्रक्टेड एसेट, वाहन, मशीनरी, आभूषण, पेटेंट, ट्रेडमार्क, लीजहोल्ड अधिकार, स्टॉक्स और म्यूचुअल फंड शामिल हैं। भारत में कैपिटल एसेट की छूट की केटेगरी में शामिल हैं:

  1. व्यक्तिगत सामान जैसे कपड़े और फर्नीचर
  2. ग्रामीण इलाके का एग्रीकल्चरल लैंड
  3. स्पेशल बेयरर बांड्स
  4. गोल्ड डिपॉजिट स्कीम, 1999 के तहत गोल्ड डिपॉजिट बांड्स या गोल्ड मोनेटाइज़ेशन, 2015 के तहत जारी डिपॉजिट सर्टिफिकेट
  5. बिज़नेस या प्रोफेशनल वजह से रखा गया कोई भी स्टॉक, रॉ मटीरियल या कंज़्यूमेबल

भारत में कैपिटल एसेट को आगे दो मुख्य प्रकारों में वर्गीकृत किया गया है: अल्पकालिक और दीर्घकालिक।

  • शॉर्ट टर्म कैपिटल एसेट्स

36 महीने तक रखे गए कैपिटल एसेट को शॉर्ट-टर्म कैपिटल एसेट कहते हैं। लैंड या प्रॉपर्टी जैसे इम्मूवेबल एसेट के लिए, इस अवधि को वित्त वर्ष 2017-18 से घटाकर 24 महीने कर दिया गया है, और तब से, 24 महीने की अवधि तक एसेट या लैंड को शॉर्ट-टर्म कैपिटल एसेट के रूप में लिया जाता है।

कुछ कैपिटल एसेट जैसे लिस्टेड कंपनी के इक्विटी शेयर, गवर्नमेंट सीक्योरिटीज़, इक्विटी म्यूचुअल फंड, ज़ीरो कूपन बॉन्ड को यदि 12 महीने से कम समय रखा गया हो, तो उन्हें भी शॉर्ट-टर्म कैपिटल एसेट माना जाता है। शॉर्ट टर्म कैपिटल एसेट्स की बिक्री से होने वाले मुनाफे पर लगाए गए टैक्स को शॉर्ट टर्म कैपिटल गेन (एसटीसीजी) टैक्स कहते हैं।

  • लॉन्ग-टर्म कैपिटल एसेट

36 महीने या उससे अधिक के लिए रखे गए कैपिटल एसेट को लॉन्ग-टर्म कैपिटल एसेट कहते हैं।   हालांकि,12 महीने से अधिक के लिए रखे गए लिस्टेड कंपनी के इक्विटी शेयर, गवर्नमेंट सिक्योरिटीज़, इक्विटी म्यूचुअल फंड, ज़ीरो कूपन बांड को भी लॉन्ग-टर्म कैपिटल एसेट कहा जाता है। लॉन्ग-टर्म कैपिटल एसेट की बिक्री से हुए मुनाफे पर जो टैक्स लगता है उसे लॉन्ग-टर्म कैपिटल गेन्स (एलटीसीजी) टैक्स कहते हैं।

कैपिटल गेन्स टैक्स का कैलकुलेशन

कैपिटल गेन्स टैक्स का कैलकुलेशन कैपिटल गेन की किस्म और होल्डिंग की अवधि - एसटीसीजी या एलटीसीजी पर निर्भर करती है। कैपिटल गेन्स टैक्स के कैलकुलेशन से जुड़े कुछ टर्म्स को समझना आवश्यक है, जैसा कि नीचे लिस्ट किया गया है:

a) फुल वैल्यू कंसीडरेशन

यह कंसीडरेशन किसी कैपिटल एसेट की बिक्री के बदले सेलर को मिलता है

b) कॉस्ट ऑफ़ एक्वीज़ीशन

यह कैपिटल एसेट की वह वैल्यू है जो सेलर को एक्वीज़ीशन के समय मिलती है

c) कॉस्ट ऑफ़ इम्प्रूवमेंट

यह सेलर द्वारा एसेट में किये गए किसी तरह के रेनोवेशन से जुड़ी जुड़ा है

d) कॉस्ट इन्फ्लेशन इंडेक्स (सीआईआई)

इसे कैपिटल गेन इंडेक्स भी कहा जाता है, यह वह मूल्य है जिसका इस्तेमाल अमूमन एलटीसीजी टैक्स के लिए किया जाता है। भारत सरकार हर साल वैल्यू तय करती है

e) इंडेक्स्ड कॉस्ट ऑफ़ एक्वीज़ीशन

इसका कैलकुलेशन करेंट सीआईआई को मौजूदा टर्म्स के आधार पर किया जाता है। यह आम तौर पर उस साल के सीआईआई का अनुपात होता है जब सेलर एसेट को उस साल के सीआईआई में बेचता है जब उनसे खरीदा हो या वित्त वर्ष 2001-2002 में से जो भी बाद में। इसके बाद इसे एक्वीज़ीशनकी लागत से गुणा किया जाता है।

इंडेक्स्ड कॉस्ट ऑफ़ एक्वीज़ीशन = (एसेट की बिक्री के साल का सीआईआई* / ताज़ातरीन (एक्वीज़ीशन के साल का सीआईआई (या) वित्त वर्ष 2001-2002 का सीआईआई) * कॉस्ट ऑफ़ एक्वीज़ीशन

f) इंडेक्स्ड कॉस्ट ऑफ़ इम्प्रूवमेंट

इसका कैलकुलेशन उस साल के सीआईआई के अनुपात जिसमें एसेट में इम्प्रूवमेंट की ज़रुरत होती है और जिस साल असल में इम्प्रूवमेंट होता है उस साल के सीआईआई के साथ, इम्प्रूवमेंट के कॉस्ट को को गुणा कर किया जाता है।

इंडेक्स्ड कॉस्ट ऑफ़ इम्प्रूवमेंट = (उस साल का सीआईआई जब एसेट में इम्प्रूवमेंट की ज़रुरत थी / उस साल का सीआईआई जब एसेट में इम्प्रूवमेंट किया गया) * कॉस्ट ऑफ़ इम्प्रूवमेंट 

  • एसटीसीजी पर टैक्स

एसटीसीजी पर टैक्स का कैलकुलेशन बहुत आसन है, और इसे नीचे दिए गए फॉर्मूले के ज़रिये किया जा सकता है:

एसटीसीजी = फुल वैल्यू कंसीडरेशन - [कॉस्ट ऑफ़ एक्वीज़ीशन + कॉस्ट ऑफ़ इम्प्रूवमेंट + ट्रान्सफर कॉस्ट]

इस तरह कैपिटल गेन्स की वैल्यू को कुछ सालाना इन्कम में जोड़ा जाता है, और व्यक्ति की इन्कम स्लैब पात्रता के अनुसार कर लगाया जाता है।

  • एलटीसीजी पर टैक्स

इंडेक्सेशन प्रक्रिया और इसमें शामिल इन्फ्लेशन फैक्टर को देखते हुए एलटीसीजी के कैलकुलेशन की प्रक्रिया थोड़ी लंबी है। एलटीसीजी इस तरह कैलकुलेट किया जा सकता है:

एलटीसीजी = कंसीडरेशन की फुल वैल्यू - [इंडेक्स्ड कॉस्ट ऑफ़ एक्वीज़ीशन + इंडेक्स्ड कॉस्ट ऑफ़ इम्प्रूवमेंट + ट्रान्सफर कॉस्ट]

कैपिटल गेन्स पर टैक्स एग्ज़ेम्प्शन

इंडियन इन्कम टैक्स एक्ट निम्न मामलों में कैपिटल गेन्स पर कई किस्म के टैक्स एग्ज़ेम्प्शन की अनुमति देता है:

  • धारा 54 के तहत उन लोगों को टैक्स एग्ज़ेम्प्शन की मंजूरी है यदि उस मुनाफे का उपयोग पिछले एसेट की बिक्री के दो साल के भीतर दूसरा घर खरीदने या तीन साल के भीतर एक नया घर बनाने के लिए किया जाता है।
  • सेक्शन 54 ईसी के तहत कैपिटल गेन्स पर टैक्स एग्ज़ेम्प्शन की मंज़ूरी है यदि पूरा मुनाफा, 50 लाख रूपये तक एनएचएआई या रूरल इलेक्ट्रिफिकेशन कारपोरेशन (आरईसी) के बांडोइन्वेस्ट किया जाए। 
  • म्युनिसिपल बॉडी के तहत नहीं आने वाले एग्रीकल्चरल लैंड की बिकी पर
  • जब किसी एसेट की बिक्री से हासिल राशि को स्माल या मीडियम स्केल की इंडस्ट्री में इन्वेस्ट किया जाए, बशर्ते मशीनरी और टूल्स 6 महीने के भीतर खरीदे लिए जाएँ।

निष्कर्ष

कुल मिलाकर, बाजार में विभिन्न इन्वेस्टमेंट ऑप्शंस के ज़रिये कैपिटल गेन्स बहुत आकर्षक हो सकता है, खासकर स्टॉक्स में टैक्स में कमी को देखते हुए।  इन्कम टैक्स के सेक्शन 111 ए के तहत लिस्टेड शेयरों से जुड़े एसटीसीजी पर टैक्स 15 प्रतिशत है, और इधर एलटीसीजी के मामले में एक वित्त वर्ष में एक लाख रूपये से अधिक के लिस्टेड शेयर पर सेक्शन 112 ए के तहत 10 प्रतिशत टैक्स लगता है। इसी तरह अनलिस्टेड शेयरों के मामले में एलटीसीजी टैक्स 20 प्रतिशत लगता है।

अक्सर पूछे जाने वाले सवाल

  1. कैपिटल गेन्स टैक्स क्या है?
    कैपिटल एसेट जैसे शेयर, म्यूचुअल फंड या प्रॉपर्टी की बिक्री से होने वाले कैपिटल गेन्स को टैक्सबल 'इन्कम' माना जाता है और ऐसी इन्कम पर लगाए गए टैक्स को कैपिटल गेन्स टैक्स कहते हैं।
  2. ऐसे कौन से कैपिटल एसेट हैं जिन पर कोई कैपिटल गेन्स टैक्स नहीं लगता है?
    भारत के इन्कम टैक्स एक्ट के मुताबिक, ऐसे कैपिटल एसेट जो वसीयत या विरासत में तोहफे के तौर पर दिए गए हों तो उन पर कैपिटल गेन्स टैक्स नहीं लगते। हालांकि, विरासत में मिली प्रॉपर्टी की बिक्री पर कैपिटल गेन्स टैक्स लगाया जाएगा।
  3. कैपिटल गेन्स टैक्स कितने तरह के होते हैं?
    कैपिटल गेन्स और कैपिटल एसेट की होल्डिंग की अवधि के आधार पर, कैपिटल गेन्स टैक्स दो तरह के होते हैं, लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन्स (एलटीसीजी) टैक्सऔर शॉर्ट-टर्म कैपिटल गेन्स (एसटीसीजी) टैक्स।
  4. एलटीसीजी और एसटीसीजी क्या हैं?
    एलटीसीजी 36 महीनों से अधिक समय तक रखे गए कैपिटल एसेट और कुछ लिस्टेड इक्विटी शेयर, म्यूचुअल फंड और कूपन बॉन्ड को 12 महीने से अधिक रखने से हुए मुनाफे पर लगता है। वहीं, एसटीसीजी 36 महीने से कम समय के लिए रखे गए कैपिटल एसेट, या 12 महीने से कम समय के लिए रखे गए कुछ लिस्टेड इक्विटी शेयर, म्यूचुअल फंड और बॉन्ड से हुए मुनाफे पर लगता है।
  5. लिस्टेड शेयरों से एलटीसीजी और एसटीसीजीपर कितना टैक्स लगता है?
    भारत के इन्कम टैक्स एक्ट के सेक्शन 111ए और 112ए के मुताबिक, लिस्टेड शेयरों के एसटीसीजी पर 15 प्रतिशत टैक्स लगाया जाता है और लिस्टेड शेयर से एक लाख रुपये से अधिक के एलटीसीजी पर 10 प्रतिशत टैक्स लगाया जाता है।

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