पिंक टैक्स क्या है? महिला कर, अर्थ, परिभाषा

10 मई,2022

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पिंकटैक्स का मतलब समझें, यह कैसे महिलाओं पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है और इसे रेगुलेट करने के लिए की गई कोशिश समझें।

पिंक टैक्स की परिभाषा

उपभोक्ता के तौर पर, आपने अक्सर अपने स्थानीय स्टोर में महसूस किया होगा कि कंपनियां पुरुषों और महिलाओं से जुड़े सामानों के लिए अलग-अलग कीमत वसूलती है। उदाहरण के लिए, पुरुषों के शैंपू की तुलना में महिला उपभोक्ताओं के लिए तैयार शैंपू की कीमत अक्सर अधिक होती है। जब सामानों की कीमत में इस तरह का फर्क होता है तो यह "पिंक टैक्स" जैसा लगता है।

पिंक टैक्स को कीमत में फर्क के रूप में परिभाषित किया जा सकता है जो उन प्रोडक्ट और सर्विसेज़ के बीच होता है जिनका इस्तेमाल महिलाएं करती हैं और पुरुषों के लगभग इसी तरह के प्रोडक्ट के मुकाबले कीमत अधिक होती है। जेंडर इक्वालिटी पर शोध करने वालों और 2015 में न्यूयॉर्क सिटी के डिपार्टमेंट ऑफ़ कंज़्यूमर अफेयर्स का इस टैक्स पर ध्यान गया। संस्था ने सभी उम्र के कंज्यूमर्स को मेट्रोपोलिस में बेचे गए 794 उत्पादों का विश्लेषण करने के बाद पाया कि महिला और पुरुषों के कई प्रोडक्ट की कीमत में इस तरह की असमानता है। इस घटना ने पिछले 30 साल से शोधकर्ताओं का ध्यान आकर्षित किया है।

पिंक टैक्स को विनियमित करने के लिए अधिकारियों का आह्वान

जब कंपनियां ब्लू प्रोडक्ट (यानी पुरुषों के प्रोडक्ट) के मुकाबले पिंक प्रोडक्ट (महिलाओं के प्रोडक्ट) अधिक कीमत पर बेचने का विकल्प चुनती हैं, तो पिंक प्रोडक्ट बेचने प्राप्त हुई अतिरिक्त आय सरकार को नहीं जाती। इस टैक्स की एकमात्र लाभार्थी वे कंपनियां हैं जो पुरुषों के मुकाबले महिलाओं से ज़्यादा कीमत वसूलती हैं।

यह टैम्पून टैक्स के उलट है जो दरअसल कई राज्यों द्वारा महिलाओं के हाइजीन प्रोडक्ट पर लगाए जाने सेल्स टैक्स है। यह टैक्स मुख्य रूप से मासिक धर्म से गुज़रने वाली महिलाएं और लड़कियाँ अदा करती हैं, हालाँकि इसका भुगतान उनके पिता या पतियों भी कर सकते हैं। वैसे यह भी टैक्स पिंक टैक्स से जुड़ा मामला है, लेकिन यह अलग मुद्दा है। यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि पिंक टैक्स लिपस्टिक से लेकर मेंस्ट्रुअल प्रोडक्ट तक से जुड़ा नहीं है जिनका उपयोग महिलाएं अपने जीवन करती हैं और इसे खरीदती हैं जिनका अधिकांश पुरुष उपयोग नहीं करते।

कई अमेरिकी राज्यों ने ऐसे कानून पारित किए हैं जो जेंडर के आधार पर गूड्स और सर्विसेज़ के मामले में भेदभावपूर्ण प्राइसिंग की निंदा और निषेध करते हैं। हालांकि फ़ेडरल स्तर पर ऐसे कानून पारित करने के कुछ प्रयास तो हुए हैं, लेकिन वे अब तक सफल नहीं हुए हैं। इस कानून को लागू करने का उद्देश्य है कीमत में अन्यायपूर्ण फर्क को इस तरह रेगुलेट करना कि ऐसे भेदभाव ख़त्म हो जाएँ। यह विशेष रूप से महत्वपूर्ण है क्योंकि पाया गया है कि महिलाएं पुरुषों के मुकाबले बहुत कम पैसा कमाती हैं, इसलिए पुरुषों के लिए तैयार प्रोडक्ट और सर्विसेज़ के मुकाबले उनका अधिक भुगतान करना अनुचित है।

पिंक टैक्स पर कैलिफोर्निया का रुख

1996 में गोल्डन स्टेट के तत्कालीन गवर्नर पीट विल्सन ने 1995 के जेंडर टैक्स रिपील एक्ट लागू किया था। इस एक्ट में मर्चेंट्स को महिलाओं और पुरुषों से समान कीमत लेने की व्यवस्था थी यदि ऐसी सर्विसेज़ के लिए समान समय, धन और स्किल की ज़रुरत होती हो। यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि यह एक्ट कार की मरम्मत और कपड़ों के अल्टरेशन से लेकर ड्राई क्लीनिंग और बाल कटाने तक की सर्विसेज़ से जुड़ा था, लेकिन इसमें प्रोडक्ट शामिल नहीं थे। इस बिल को असेंबलीवूमन जैकी स्पीयर ने तैयार किया था जिन्होंने कहा था कि यह इस शैली का पहला राज्य कानून है। "जेंडर टैक्स" इस तरह की कीमत से जुड़े स्पष्ट भेदभाव के संदर्भ में इस्तेमाल किया जाने वाला आम शब्द है। इस बिल का पिछला संस्करण जिनमें प्रोडक्ट शामिल नहीं थे, पारित नहीं किया गया था।

न्यूयॉर्क शहर ने दिया खतरे का संकेत

इसी तरह की पहल करते हुए 1998 में न्यूयॉर्क शहर के तत्कालीन मेयर रूडी गिउलियानी ने रिटेल स्टोर (ड्राई क्लीनर से लेकर हेयरकटर्स तक) को सिर्फ जेंडर के आधार पर अधिक कीमत वसूलने से रोकने के लिए तैयार बिल पर हस्ताक्षर किया था। इस कानून ने न्यूयॉर्क शहर के कंज़्यूमर अफेयर्स डिपार्टमेंट को उल्लंघन करने वालों से जुर्माना वसूलने का अधिकार दिया था। इस बिल के तहत विशेष रूप से भेदभावपूर्ण वसूली जो पुरुषों और महिलाओं के लिए कीमत में भारी फर्क उजागर करता है, उसे निषिद्ध करार दिया गया।

मियामी-डेड काउंटी

जेंडर प्राइस के मामले में भेदभाव से जुड़े इस काउंटी के अध्यादेश का खामियाज़ा गूड्स और सर्विसेज़ दोनों को भुगतना पड़ा। काउंटी के कंज़्यूमर सर्विसेज़ डिपार्टमेंट को इस कानून को लागू करने का अधिकार दिया गया है जो हर तरह के विक्रेताओं पर लागू होता है, चाहे वह व्यक्तिगत इकाई हो या कॉर्पोरेशन हों। विशेष रूप से उपभोक्ता के साथ जेंडर के आधार पर कीमत में भेदभाव निषिद्ध है, हालांकि समय, जटिलता और गूड्स और सर्विसेज़ को प्रदान करने से जुड़े खर्च को ध्यान में रखते हुए कीमत में फर्क की अनुमति है। डिपार्टमेंट लिखित रूप में प्रदान की गई शिकायतों को स्वीकार करता है और पीड़ितों कोइस अध्यादेश का उल्लंघन करने वालों पर वकील की फीस, हर्जाने के साथ-साथ अदालती लागत के लिए मुकदमा करने का अधिकार है।

महिलाओं के सामान पर लागू असमान टैरिफ

पिंक टैक्स के अधिकांश मामले दरअसल वास्तविक टैक्स से जुड़े नहीं हैं। एक ऐसा परिदृश्य है जिसमें यह वास्तव में टैक्स है और वह है आयात शुल्क। जहां तक अमेरिका का सवाल है, टेक्सास ए एंड एम द्वारा जारी सार्वजनिक नीति, अर्थशास्त्र और व्यापार पर केंद्रित अध्ययन के अनुसार वस्त्र कंपनियां महिलाओं की वस्तुओं पर अधिक आयात शुल्क का भुगतान करती हैं। वस्त्र कंपनियां इस भेदभाव से निपटने के लिए और अधिक टैरिफ के साथ कीमत बढ़ा सकती हैं, जिसके परिणामस्वरूप जेंडर आधारित कीमत में बदलाव हो सकता है जो दरसल अच्छी कीमत से जुड़ा है। लेकिन यदि गूड्स की कीमत समान है तो वे उन्हें उनकी कीमत समान रख सकते हैं। इसका मतलब यह होगा कि कंज़्यूमर, रिटेलर या प्रोड्यूसर पर असर होगा।

निष्कर्ष

पिंक टैक्स महिलाओं के कपड़ों पर लगाए गए अलग आयात शुल्क के अलावा वास्तविक टैक्स नहीं है, लेकिन फिर भी इसके कारण महिलाओं को एक तरह के टैक्स का भुगतान करना पड़ता है क्योंकि उनके लिए बेचीं जाने वाली वस्तुओं की कीमत पुरुषों के सामान के मुकाबले अक्सर अधिक होती है। 

 

डिस्क्लेमर: इस ब्लॉग का उद्देश्य है, महज जानकारी प्रदान करना न कि इन्वेस्टमेंट के बारे में कोई सलाह/सुझाव प्रदान करना और न ही किसी स्टॉक को खरीदने -बेचने की सिफारिश करना।

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