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आईपीओ (IPO) से आगे: बाज़ार से पूँजी जुटाने के अन्य तरीके और निवेशकों की हिस्सेदारी
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इस मॉड्यूल के पिछले अध्यायों में हमने कंपनी के फंड जुटाने के विभिन्न विकल्पों को देखा। हमने इस बात पर भी गहराई से ध्यान दिया कि कैसे एक कंपनी इनिशियल पब्लिक ऑफर (IPO) प्रक्रिया का उपयोग कर जनता से पूँजी जुटा सकती है।
लेकिन IPO ही किसी कंपनी के लिए पूँजी जुटाने का एकमात्र तरीका नहीं है। इसलिए इस अध्याय में हम ऐसे 4 अन्य तरीकों के बारे में जानेंगे, जिनका उपयोग करके कंपनी शेयर बाजार से पूँजी जुटा सकती है। और हम इस पर भी चर्चा करेंगे कि एक निवेशक के रूप में आप इनसे जुड़ी प्रक्रियाओं में कैसे भाग ले सकते हैं।
फॉलो-ऑन पब्लिक ऑफर (FPO)
एक फॉलो-ऑन पब्लिक ऑफर (FPO) एक IPO के समान है। दोनों के बीच एकमात्र अंतर शेयरों के जारी होने के समय में है। जैसा कि आप पहले से ही जानते हैं, जब कोई कंपनी पहली बार जनता के लिए अपने शेयर जारी करती है, तो उसे IPO कहा जाता है। IPO के बाद कंपनी द्वारा जनता को शेयर जारी करने वाला कोई भी इश्यू फॉलो-ऑन पब्लिक ऑफर (FPO) के रूप में जाना जाता है। दरअसल कंपनी द्वारा शेयरों के सार्वजनिक इश्यू जारी करने की कोई सीमा नहीं होती है।
इस प्रकार FPO, पहले से ही स्टॉक एक्सचेंज पर लिस्टेड कंपनी द्वारा जारी किए शेयरों का फ्रेश इश्यू है। यह अतिरिक्त पूँजी प्राप्त करने के लिए किया जाता है। चूंकि कंपनी FPO में नए शेयर जारी करती है, इसलिए यह नया इश्यू मौजूदा शेयरधारकों के स्वामित्व और नियंत्रण को कमज़ोर करता है। यह प्रति शेयर आय कम करने की क्षमता भी रखता है।
FPO जारी करने की प्रक्रिया IPO जारी करने के समान है। एक कंपनी फिर से लीड मैनेजर और अन्य संबंधित पक्षों की सेवाएं लेती है, जैसा हमने पहले ही पिछले अध्यायों में पढ़ा था। कंपनी को पूरी प्रक्रिया से भी दोबारा गुजरना पड़ता है। रेड हेरिंग प्रॉस्पेक्टस तैयार करने और इसे सेबी और स्टॉक एक्सचेंज से अप्रूव कराने से लेकर बुक बिल्डिंग और मार्केटिंग तक, यही पूरा रूटीन फिर से अपनाया जाता है।
एक निवेशक के रूप में आप FPO में कैसे भाग ले सकते हैं?
यह ऐसा सवाल है कि जो आप पूछने के लिए व्याकुल हो रहे हैं, है ना? आप चाहे ASBA सुविधा के माध्यम से या अपने ट्रेडिंग खाते के माध्यम से FPO के लिए आवेदन करने का विकल्प चुनें हैं, ये प्रकिया IPO जैसी ही है।
FPO: एक उदाहरण
15 जुलाई, 2020 को सदस्यता के लिए खोले गया येस बैंक का पब्लिक ऑफर, FPO का आदर्श उदाहरण है। येस बैंक के शेयर पहले से ही स्टॉक एक्सचेंज पर कारोबार कर रहे थे, जब कंपनी ने अपनी पूँजी की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए जनता को और अधिक शेयर जारी करने का फैसला किया। यहां FPO की कुछ महत्वपूर्ण जानकारी पर एक नज़र डालते हैं।
सदस्यता के लिए शेयरों की संख्या |
9,099,766,899 इक्विटी शेयर |
प्रत्येक इक्विटी शेयर की फेस वैल्यू |
₹2 |
अंतिम इश्यू प्राइस |
₹13 प्रति शेयर |
इश्यू का साइज़ |
₹15,000 करोड़ |
कर्मचारियों के लिए आरक्षित शेयरों की संख्या |
181,818,181 इक्विटी शेयर |
कर्मचारियों को डिस्काउंट |
₹1 प्रति शेयर |
ऑफर ओपनिंग डेट |
बुधवार, 15 जुलाई 2020 |
ऑफर क्लोज़िंग डेट |
शुक्रवार 17 जुलाई 2020 |
एक और बात, येस बैंक का FPO इश्यू अंडर-सब्सक्राइब्ड था, कुल इश्यू साइज के 95% के लिए ही बोली प्राप्त की गई थी। ऐसी स्थिति में लीड मैनेजर, इस इश्यू के बचाव में आएँगे और इश्यू के शेष हिस्से (5%) को खरीदेंगे।
राइट्स इश्यू
कंपनी द्वारा फंड जुटाने का एक और आसान तरीका है, राइट्स इश्यू। यहाँ कंपनी आम जनता से संपर्क नहीं करती है, बल्कि अपने मौजूदा शेयरधारकों के पास ही जाती है। जैसा कि नाम से ही पता चलता है, राइट्स इश्यू मौजूदा शेयरधारकों को डिस्काउंट पर (मौजूदा बाजार मूल्य से कम पर) कंपनी के अतिरिक्त शेयर खरीदने का अधिकार देता है।
आमतौर पर, राइट्स इश्यू के जरिए जारी किए गए शेयरों की संख्या शेयरों की मौजूदा होल्डिंग्स के अनुपात के आधार पर होती है। उदाहरण के लिए, 1: 2 राइट्स इश्यू में, एक शेयरधारक को कंपनी के हर 2 शेयरों के लिए 1 शेयर खरीदने के विकल्प मिलता है। इस पद्धति का एक प्रमुख लाभ यह है कि IPO की तुलना में यह प्रक्रिया बहुत आसान है, जिसमें कम नियामक अप्रूवल शामिल होते हैं।
हालांकि, इसमें भी ख़ामियाँ हैं। राइट्स इश्यू का प्राथमिक नुकसान यह है कि यह पूँजी जुटाने की गुंजाईश को सीमित करता है क्योंकि केवल मौजूदा शेयरधारक ही कंपनी द्वारा जारी किए गए शेयरों की सदस्यता ले सकते हैं। इसके अलावा, ये भी मुमकिन है कि शेयरधारक कंपनी के अतिरिक्त शेयरों को ना खरीदें, ऐसी स्थिति में कंपनी या तो फंड जुटाने में विफल रहती है या अपने लक्ष्य से बेहद कम फंड इकट्ठा करती है। इसके अलावा, यह मौजूदा शेयरधारकों के स्वामित्व और नियंत्रण को कम करता है, क्योंकि नए शेयर जारी किए जाते हैं।
एक निवेशक के रूप में आप राइट्स इश्यू में कैसे भाग ले सकते हैं?
शेयरों के राइट्स इश्यू में भाग लेने के लिए आपका कंपनी में एक मौजूदा शेयरधारक होना ज़रूरी है। अगर आप इस मानदंड को पूरा करते हैं, तो आप इश्यू में निवेश करने के तीन तरीकों में से किसी एक को अपना सकते हैं:
- आपके बैंक द्वारा प्रदान की गई ASBA सुविधा के माध्यम से
- आपके स्टॉकब्रोकर के साथ बने ट्रेडिंग खाते के माध्यम से
- कंपनी के रजिस्ट्रार और ट्रांसफर एजेंट (RTA) की वेबसाइट के माध्यम से
राइट्स इश्यू: एक उदाहरण
रिलायंस इंडस्ट्रीज़ द्वारा शेयरों के हालिया राइट्स इश्यू, जो कि 20 मई, 2020 को खुला, राइट्स इश्यू का आदर्श उदाहरण है। कंपनी ने अपने मौजूदा शेयरधारकों को 1:15 के अनुपात में 42.26 करोड़ इक्विटी शेयर जारी करने का फैसला किया। इसका मतलब था कि मौजूदा शेयरधारक अपने द्वारा रखे गए प्रत्येक 15 शेयरों के लिए रिलायंस इंडस्ट्रीज़ का 1 इक्विटी शेयर खरीद सकते हैं। राइट्स इश्यू के कुछ महत्वपूर्ण विवरणों पर एक संक्षिप्त नज़र डालें:
सदस्यता के लिए शेयरों की संख्या |
42,26,26,894 इक्विटी शेयर |
प्रत्येक इक्विटी शेयर की फेस वैल्यू |
₹10 |
अंतिम इश्यू प्राइस |
₹1,257 प्रति शेयर |
इश्यू का साइज़ |
₹53,124.2 करोड़ |
राइट्स इश्यू अनुपात |
1:15 |
ऑफर ओपनिंग तिथि |
बुधवार, 20 मई 2020 |
ऑफर क्लोज़िंग तिथि |
बुधवार, 3 जून 2020 |
अच्छी घटनाओं के चलते रिलायंस इंडस्ट्रीज़ के राइट्स इश्यू को अपने मौजूदा शेयरधारकों से बेहतरीन प्रतिक्रिया मिली और इसे पूरी तरह सब्सकाइब कर लिया गया। अभूतपूर्व प्रदर्शन के साथ, कंपनी ने इश्यू के लक्ष्य, ₹53,124.2 करोड़ को क्लोज़िंग डेट से 2 दिन पहले ही हासिल कर लिया।
बॉन्ड इश्यू
अब तक, हम केवल उन तरीकों को देख रहे हैं जिनमें कंपनियां इक्विटी के माध्यम से अपने संचालन के लिए पूँजी जुटा सकती हैं। हालांकि, कुछ कंपनियां जो स्वामित्व और नियंत्रण को कम नहीं करना चाहती, वे कर्ज या डेट के जरिए पूँजी जुटाना पसंद करती हैं। बॉन्ड या डिबेंचर जारी करके कंपनियां ऐसा कर सकती हैं। बॉन्ड इश्यू के माध्यम से जो पूँजी जुटाई जाती है, उसे आमतौर पर एक प्रकार के ऋण के रूप में माना जाता है जो एक कंपनी को जनता से मिलता है।
यह इस तरह काम करता है: एक निवेशक एक निश्चित अवधि के लिए कंपनी में अपने पैसे का एक हिस्सा निवेश करता है। निवेश के बदले में कंपनी मैच्योरिटी की तारीख तक मूल राशि पर पूर्व निर्धारित दर से ब्याज का भुगतान करती है। मैच्यूरिटी तिथि तक पहुंचने पर कंपनी मूल राशि निवेशक को वापस कर देती है।
बॉन्ड के माध्यम से पूँजी जुटाने का एक मुख्य लाभ है इसकी लागत। लागत के हिसाब से, बॉन्ड इश्यू, इक्विटी की तुलना में बहुत अधिक सुविधाजनक हैं। हालांकि, इसकी एक खामी भी है। चूँकि इस पद्धति से जुटाई गई पूँजी अनिवार्य रूप से एक ऋण है, इसलिए कंपनी को भुगतान प्रक्रिया का सख्ती से पालन करना पड़ता है। ब्याज भुगतान में कोई भी चूक कंपनी के लिए बहुत महंगी साबित हो सकती है। इसके अलावा निश्चित अवधि के अंत में मूल राशि के पुनर्भुगतान के बारे में ध्यान रखना होता है।
बॉन्ड इश्यू के संबंध में, भारत में कंपनियों का सबसे लोकप्रिय तरीका है नॉन- कनवर्टिबल डिबेंचर (NCD)। NCD एक कॉर्पोरेट बॉन्ड है जो एक निश्चित ब्याज दर और कार्यकाल के साथ आता है और बैंक FD के समान है। NCD को आमतौर पर बॉन्ड और उसे जारी करने वाली कंपनी की गुणवत्ता और स्थिरता के अनुसार क्रेडिट रेटिंग एजेंसियों द्वारा रेट किया जाता है।
एक निवेशक के रूप में, आप एक बॉन्ड इश्यू में कैसे भाग ले सकते हैं?
बॉन्ड जारी करने की इच्छा रखने वाली कंपनी आमतौर पर सार्वजनिक इश्यू के माध्यम से ऐसा करती है। किसी कंपनी के डिबेंचर को सब्सक्राइब करना IPO की सदस्यता लेने के समान है। चूंकि डिबेंचर अब इलेक्ट्रॉनिक रूप में रखे जाते है, इसलिए आपको डीमैट खाता रखने की आवश्यकता होती है। एक बार जब आप अपना डीमैट खाता सेट कर लेते हैं, तो आप निम्नलिखित दो तरीकों से NCD में निवेश कर सकते हैं:
- आपके बैंक द्वारा प्रदान की गई ASBA सुविधा के माध्यम से
- स्टॉकब्रोकर के साथ बनाए गए ट्रेडिंग खाते के माध्यम से
इक्विटी शेयरों के समान, NCD को भी आवंटन के बाद स्टॉक एक्सचेंज पर सूचीबद्ध किया जाता है। इसलिए, भले ही आप डिबेंचर के इनिशियल पब्लिक इश्यू से चूक गए हों, आप शेयरों की तरह ही सेकेंड्री बाज़ार के माध्यम से उनमें निवेश कर सकते हैं।
बॉन्ड इश्यू: एक उदाहरण
बॉन्ड इश्यू का एक बहुत अच्छा उदाहरण 07 जनवरी, 2020 को टाटा कैपिटल हाउसिंग फाइनेंस लिमिटेड का NCD इश्यू है। कंपनी ने ₹500 करोड़ के नॉन- कनवर्टिबल डिबेंचर जारी किए। टाटा कैपिटल हाउसिंग फाइनेंस द्वारा पेश किए गए NCD इश्यू में 36 महीने से लेकर 120 महीने तक के कार्यकाल थे। बॉन्ड जारी करने के कुछ महत्वपूर्ण विवरणों पर यहां एक संक्षिप्त नज़र डालते हैं:
इश्यू की कुल कीमत |
₹500 करोड़ |
प्रत्येक NCD की फेस वैल्यू |
₹1,000 |
अंतिम इश्यू प्राइस |
₹1,000 प्रति NCD |
न्यूनतम लॉट साइज़ |
10 NCD |
NCD की क्रेडिट रेटिंग |
CRISIL AAA/ Stable, ICRA AAA/ Stable |
NCD का कार्यकाल |
36 महीने या 60 महीने या 96 महीने या 120 महीने |
ब्याज दर |
परिवर्तनशील (7.92% से 8.70%) |
ब्याज भुगतान की आवृत्ति |
मासिक या वार्षिक |
ऑफर ओपनिंग तिथि |
मंगलवार, 07 जनवरी 2020 |
ऑफर क्लोज़िंग तिथि |
बुधवार, 08 जनवरी 2020 |
यहाँ आपके लिए एक और मज़ेदार बात है, टाटा कैपिटल हाउसिंग फाइनेंस लिमिटेड के NCD को इश्यू होने के बाद, इन्हें BSE के साथ-साथ NSE के पर भी सूचीबद्ध किया गया था।
बोनस: ऑफर फॉर सेल (OFS)
एक IPO के अलावा, ऑफर फॉर सेल (OFS) एक और तरीका है जिसके द्वारा कंपनी के प्रोमोटर अपने शेयर जनता को बेच सकते हैं। यहां, कंपनी के प्रोमोटर या शुरुआती निवेशक अपने शेयरों को बेचने वाले हैं, ना कि खुद कंपनी। इसलिए, ऐसे शेयरों की बिक्री से होने वाली आय कंपनी के पास नहीं जाती है, बल्कि उन्हें बेचने वाली इकाईयों के पास जाती है। OFS का एक प्रमुख लाभ यह है कि स्वामित्व या नियंत्रण में कोई गिरावट नहीं है क्योंकि जो शेयर बेचे जा रहे हैं वे नए सिरे से जारी नहीं किए गए हैं। बल्कि, वे शुरुआती निवेशकों के स्वामित्व में हैं।
यहाँ आपके लिए एक मज़ेदार बात है, जनता को शेयर बेचने के लिए OFS का तरीका सेबी द्वारा बहुत हाल ही में, वर्ष 2012 में पेश किया गया था।
OFS प्रक्रिया, प्रोमोटरों को अपनी शेयरधारिता बेचकर, निवेश की गई कंपनी से बाहर निकलने का एक तरीका प्रदान करती है। बिक्री को शुरू करने के लिए स्टॉक एक्सचेंज द्वारा एक समय अवधि तय की जाती है। यह मार्ग प्रमोटरों द्वारा अपनी हिस्सेदारी को बेचने के लिए सबसे अधिक पसंद किया जाता है क्योंकि यह प्रक्रिया बहुत सरल है और इसके लिए बहुत सारे अप्रूवल या बहुत सारी कड़ी आवश्यक्ताओं को पूरा करने की ज़रूरत नहीं होती है। हालाँकि, इस विधि में थोड़ी बहुत खामी है। OFS विकल्प शेयर बाज़ार की केवल टॉप 200 कंपनियों (बाजार पूँजीकरण के आधार पर) के लिए मौजूद होता है।
IPO या FPO के विपरीत, ऑफर फॉर सेल में मूल्य बैंड शामिल नहीं होता। इसके बजाय, यह एक फ्लोर प्राइस के साथ आता है और शेयर खरीदने के इच्छुक निवेशक फ्लोर प्राइस पर या उससे ऊपर बोली लगा सकते हैं। कट-ऑफ मूल्य की गणना OFS खत्म होने के बाद की जाती है। जिस मूल्य पर अधिकतम संख्या में बोलियाँ प्राप्त की जाती हैं, आमतौर पर उसे ही कट-ऑफ मूल्य चुना जाता है।
एक निवेशक के रूप में आप एक OFS में कैसे भाग ले सकते हैं?
OFS के माध्यम से किसी कंपनी के शेयर खरीदने के लिए आपको एक डीमैट खाते और एक ट्रेडिंग खाते की आवश्यकता होगी। चूंकि यह शेयरों का ताज़ा इश्यू नहीं है, इसलिए आप ऑफ़लाइन मोड के माध्यम से या ASBA सुविधा के माध्यम से ऑफर फॉर सेल के लिए आवेदन नहीं दे सकते। आपको अपने ट्रेडिंग खाते में लॉग इन करना होगा और अपनी बोली OFS के लिए उसी तरह लगानी होगी जैसे आप IPO के लिए करते हैं।
OFS: एक उदाहरण
हाल ही में जारी किया गया GTPL हैथवे लिमिटेड का ऑफर, जो28 फरवरी, 2020 को खुला, ऑफर फॉर सेल के लिए एक शानदार उदाहरण है। कंपनी के प्रोमोटर (Jio कंटेंट डिस्ट्रीब्यूशन होल्डिंग्स प्राइवेट लिमिटेड) ने अपने स्वामित्व को कम करने के लिए अपनी 3.83% हिस्सेदारी बेचने का फैसला किया। यहाँ OFS के कुछ महत्वपूर्ण विवरणों पर एक संक्षिप्त नज़र डालें।
बिक्री के लिए शेयरों की संख्या |
43,12,703 इक्विटी शेयर |
प्रत्येक इक्विटी शेयर की फेस वैल्यू |
₹10 |
फ्लोर प्राइस |
₹63 प्रति शेयर |
ऑफर ओपनिंंग तिथि |
शुक्रवार, 28 फरवरी 2020 |
ऑफ क्लोज़िंग तिथि |
सोमवार, 02 मार्च 2020 |
निष्कर्ष
हम अध्याय के अंत पर आ गए हैं। हमने अपने संचालन के लिए धन जुटाने के लिए कंपनियों द्वारा स्टॉक मार्केट का उपयोग करने के तरीके के बारे में बहुत कुछ सीखा। अगले अध्याय में हम सबसे महत्वपूर्ण और मौलिक लेखांकन सिद्धांत में से एक, गोइंग कंसर्न सिद्धांत पर नज़र डालेंगे। हमेशा की तरह, पढ़ते रहें।
अब तक आपने पढ़ा
- जब कोई कंपनी पहली बार जनता के लिए अपने शेयर जारी करती है, तो उस इश्यू को IPO कहा जाता है।
- IPO के बाद जनता को शेयरों के किसी भी अन्य इश्यू को फॉलो-ऑन पब्लिक ऑफरिंग के रूप में जाना जाता है।
- FPO स्टॉक एक्सचेंज पर पहले से ही लिस्टेड कंपनी द्वारा शेयरों का एक ताज़ा इश्यू है । यह अतिरिक्त पूँजी प्राप्त करने के लिए किया जाता है।
- एक FPO मौजूदा शेयरधारकों के स्वामित्व और नियंत्रण को कमज़ोर करता है। इसमें प्रति शेयर आय कम करने की भी क्षमता है।
- शेयरों के राइट्स इश्यू में कंपनी आम जनता से संपर्क नहीं करती है, बल्कि अपने मौजूदा शेयरधारक के पास जाती है।
- राइट्स इश्यू, मौजूदा शेयरधारकों को डिस्काउंट पर कंपनी के अतिरिक्त शेयर खरीदने का अधिकार देता है ।
- राइट्स इश्यू के माध्यम से जारी किए गए शेयरों की संख्या, शेयरों की मौजूदा होल्डिंग्स के अनुपात के आधार पर होती है।
- उदाहरण के लिए, 1: 2 राइट्स इश्यू में, एक शेयरधारक को कंपनी के प्रत्येक 2 शेयरों के लिए 1 शेयर खरीदने के लिए मिलता है।
- IPO की तुलना में राइट्स इश्यू प्रक्रिया काफी आसान है, जिसमें कम नियामक अप्रूवल शामिल होते हैं।
- राइट्स इश्यू का प्राथमिक नुकसान यह है कि यह धन जुटाने की गुंजाइश को सीमित करता है क्योंकि केवल मौजूदा शेयरधारक कंपनी द्वारा जारी किए गए शेयरों की सदस्यता ले सकते हैं।
- कुछ कंपनियाँ, जो स्वामित्व और नियंत्रण को कम नहीं करना चाहती हैं, वे ऋण के माध्यम से पूँजी जुटाना पसंद करती हैं।
- इस मार्ग को अपनाने की इच्छा रखने वाली कंपनियां, बॉन्ड या डिबेंचर जारी करके ऐसा कर सकती हैं। बॉन्ड इश्यू के माध्यम से जो पूँजी जुटाई जाती है, उसे आमतौर पर एक प्रकार के ऋण के रूप में माना जाता है जो एक कंपनी को जनता से मिलता है।
- भारत में कंपनियों द्वारा पसंद किया जाने वाला बॉन्ड का रूप नॉन- कनवर्टिबल डिबेंचर (NCD) इश्यू है।
- NCD एक कॉर्पोरेट बॉन्ड है जो एक निश्चित ब्याज दर और कार्यकाल के साथ आता है और बैंक एफडी के समान है।
- आमतौर पर क्रेडिट रेटिंग एजेंसियों द्वारा NCD बॉन्ड का, बॉन्ड की गुणवत्ताऔर कंपनी की स्थिरता के अनुसार मूल्यांकन किया जाता है।
- ऑफर फॉर सेल (OFS) एक और तरीका है जिसके द्वारा कंपनी के प्रोमोटर अपने शेयर जनता को बेच सकते हैं।
- यहां, कंपनी के प्रोमोटर या शुरुआती निवेशक अपने शेयरों को बेचने वाले हैं, न कि खुद कंपनी।
- OFS का एक प्रमुख लाभ यह है कि इससे स्वामित्व या नियंत्रण में कोई कमी नहीं आती क्योंकि जो शेयर बेचे जा रहे हैं वे नए सिरे से जारी नहीं किए गए हैं।
- OFS प्रक्रिया प्रोमोटरों को अपने शेयरधारिता को बेचकर, कंपनी से बाहर निकलने का एक तरीका प्रदान करती है।
- OFS विकल्प केवल शेयर बाज़ार की टॉप 200 कंपनियों (बाज़ार पूँजीकरण के आधार पर) को ही उपलब्ध होता है।
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