भारतीय बीमा उद्योग के विकास पर एक चमक

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वो कौन-सी चीज़ें हैं जो आपको 90 के दशक की याद दिलाती हैं? आपको उस समय की टेप की ट्रिक्स तो याद ही होंगी ? कितने अच्छे से  आप अपनी कैसेट और टेप को सिर्फ एक पेंसिल का उपयोग करके ठीक कर दिया करते थे। इसके अलावा वो बड़े-बड़े लैंडलाइंन या बिना कॉलर आईडी वाले कॉर्डलेस फोन कितने शानदार दिखते थे। तब हमे कहाँ पता था कि आगे कभी स्मार्टफोन आ जाएंगे। भारत की बीमा इंडस्ट्री में भी ऐसा कुछ हुआ जिसने इसे हमेशा के लिए बदल दिया।

नब्बे के दशक के शुरुआती दौर में, जब भी कोई बीमा करवाने के बारे में सोचता था, तो उसके पास सिर्फ एक ही ऑप्शन होता था कि या तो वह किसी एलआईसी एजेंट के पास जाए या फिर एलआईसी के ब्रांच ऑफिस में जाए, और वहाँ जाकर ब्रोशर को अच्छे से देखे, अलग-अलग पॉलिसी को समझे और अपनी जरूरत के हिसाब से उसमें से बेस्ट पॉलिसी को चुने। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि यह प्रक्रिया कितनी ही सरल लगती हो, ऐसा एक समय आ ही गया जब पॉलिसीधारक दिये गए कुछ विकल्पों और प्रक्रिया से कुछ अधिक चाहते थे।

इसके तुरंत बाद, भारत सरकार ने पिछले कुछ वर्षों से बीमा सेक्टर के प्रदर्शन की समीक्षा करने और उसके बारे में गहन विचार करने और इस पर एक रिपोर्ट तैयार करने के लिए एक कमिटी का गठन किया। 

रिपोर्ट में वित्त उद्योग में पिछले कुछ सालों में किए गए सुधारों के बारे में बताया जाना था। एक साल की बहुत कठिन रिसर्च के बाद, मल्होत्रा कमिटी ने एक रिपोर्ट दर्ज की जिसमें बीमा सेक्टर के कुछ सबसे जरूरी और बेहतरीन सुझाव शामिल थे, जिसमें भारतीय बीमा सेक्टर का निजीकरण भी शामिल था। निजीकरण ने प्राइवेट-सेक्टर कंपनियों को बीमा मार्केट मे एंट्री करने मे मदद की। और इसी वजह से पॉलिसीधारक को बीमा प्रदाता चुनने के लिए कई नए विकल्प मिले। 

हालांकि मल्होत्रा कमिटी की रिपोर्ट में यह भी बताया गया था कि कैसे एलआईसी, बीमा के बारे में लोगो में जागरुकता फैलाने में कामयाब रही है और इसने सरकार की विकास और रोजगार के लिए किए जाने वाले अलग-अलग कार्यों के लिए बचत या फंडस भी इकट्ठे किए हैं। पर साथ ही साथ इस रिपोर्ट में बीमा सेक्टर में एलआईसी के एकाधिकार की वजह से होने वाली कमियों के बारे में भी बताया गया था, जैसे  - 

 - एलआईसी का मार्केटिंग नेटवर्क ग्राहकों की ज़रूरतों के हिसाब से नाकाफी या अपर्याप्त और लापरवाह था।

- आम जनता अभी तक भी बीमा और इसके फायदों से अनजान थी।

-  लोगों के पास मूलभूत बीमा और सेविंग्स प्लान के अलावा कुछ भी नहीं था, जिसमें यूनिट लिंक्ड अश्योरेंस भी शामिल नहीं थे।

- पॉलिसीधारक को यह समझ में आ गया था कि बीमा कवर उनके जीवन बीमा  के रिटर्न के मुकाबले काफी महंगा है।

- कारोबार में संघवाद, असंतोषजनक व खराब कार्य संस्कृति, सख्त पदानुक्रम, और बहुत अधिक कर्मचारियों को नौकरी पर रख लेना, यह ऐसी कई बातें थी जिसकी वजह से भ्रष्टाचार होने लगा था।

- ग्राहक सेवाओं के प्रति अक्षम और लापरवाह रवैया और प्रक्रियाएं।

मल्होत्रा समिति की सिफारिशें

मल्होत्रा कमिटी ने तब अपनी एक रिपोर्ट जारी की, जिसमें उन्होंने देश में  उद्योग की शक्ति को बढ़ाने के लिए और  इस सेक्टर को निवेश बढ़ाने और नए निवेशकों को आमंत्रित करने रूप में विकसित करने के लिए कुछ बहुत ही ठोस सुझाव दिए, जो ये हैं:

 - प्राइवेट सेक्टर कंपनियों को कम से कम 100 करोड़ रुपये के अग्रिम पूंजी निवेश के साथ बीमा उद्योग में निवेश करने की अनुमति देना।

- विदेशी बीमा कंपनियों को, भारतीय साझेदारों के साथ जॉइंट वेंचर निवेश के नज़रिये भारतीय कंपनियों के साथ काम शुरू करने की अनुमति देना।

- एलआईसी का 50% स्वामित्व सरकार को और 50% बड़े पैमाने पर जनता को प्रदान करना, और अपने कर्मचारियों के लिए आरक्षण रखना और समान डिविजनों के साथ एलआईसी और जीआईसी दोनों के लिए 200 करोड़ रुपए तक की पूँजी जुटाना।

- बीमा नियंत्रक कार्यालय को पूरी कार्यप्रणाली के साथ फिर से बहाल करना। बीमा अधिनियम के अनुसार, सभी बीमा प्रदाताओं के साथ समान व्यवहार होना चाहिए व सभी पर समान कानून व नियम लागू होने चाहिए। 

बीमा उद्योग पर सीधे और व्यक्तिगत रूप से नियंत्रण करने के लिए एक  स्वायत्त निकाय के रूप में बीमा नियामक और विकास प्राधिकरण (इंश्योरेंस रेगुलेटरी व डवलपमेंट अथॉरिटी ) की स्थापना करना। और इसके साथ ही यह  सुझाव भी दिया गया कि सरकार को इस निकाय को सभी शक्तियां देनी होगी क्योंकि बीमा सेक्टर में होने वाला निजीकरण प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा देगा, और इस प्रतिस्पर्धा को छूट भी देनी होगी और इस पर लगाम भी लगानी होगी।

 इन सुझावों को कई दूसरे सुझावों के साथ लागू किया गया, जिससे भारतीय बीमा के औद्योगिक मानकों में सुधार लाया जा सके। 1999 में आईआरडीए (IRDA) की स्थापना की गई जिसका उद्देश्य, पॉलिसीधारक के हितों की रक्षा करना, विदेशी निवेश आमंत्रित करना था। साथ ही इसका एक मुख्य उद्देश्य बीमा उद्योग के लगातार विकास के साथ इसे नियंत्रित और बढ़ावा देना भी था।

हालांकि, इन सुधारों को लागू करने में काफी समय लग गया, क्योंकि बीमा कर्मचारियों की राष्ट्रीय संस्था ने इसका कड़ा विरोध किया था। इन सभी चिंताओं और समर्थन की कमी को जल्द से जल्द हल करने की आवश्यकता थी। उन चिंताओं और समस्याओं में से कुछ ये थी:

-बीमा उद्योग उदारीकरण से उद्योग पर विदेशी नियंत्रण बढ़ना, कर्मचारियों का शोषण और सरकार की तरफ से होने वाले अनावश्यक खर्चों के बारे में सवाल उठाए गए थे।

- इसमें उन राष्ट्रीयकरण विरोधी परिदृश्यों पर भी रोशनी डाली गई जो आजादी से पहले सामने आए थे

 

भारतीय बीमा उद्योग की वर्तमान स्थिति

बीमा उद्योग के निजीकरण और उदारीकरण  के बाद और आईआरडीए (IRDA) के भारतीय बीमा इंडस्ट्री का नियंत्रण अपने हाथ में लेने के बाद भारत में इस सेक्टर ने अपना एक लंबा सफर तय किया है। आईआरडीए ने अगस्त 2000 में विदेशी निवेश के लिए बीमा बाज़ार के दरवाज़े खोल दिये और उनके रजिस्ट्रेशन के लिए आवेदन लेना भी शुरू कर दिया था। तब विदेशी कंपनियां 26% तक स्वामित्व अपने पास रख सकती थी।

बाज़ार में कई बीमा प्रदाता हैं। बाज़ार में सामान्य बीमा और जीवन बीमा,  दोनों की ही बहुत ज़रूरत भी है और चाह भी। हालांकि बीमा के विस्तार की क्षमता और बढ़ ही रही है क्योंकि बीमा की ज़रूरत और इसकी जागरुकता ने अभी भी हाथ नहीं मिलाए हैं। भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में, जहाँ देश की अधिकांश जनसंख्या निवास करती है, बीमा की जड़ें अभी भी वहाँ इतनी मज़बूत नहीं हुई हैं। और इसी वजह से बीमा क्षेत्र अभी और विकास कर सकता है।

- देखा जाए तो, भारत में बीमा निवेश (सकल घरेलू उत्पाद के % के रूप में प्रीमियम) 2017 में 3.69% पहुंच गया जो कि 2001 में 2.71% ही था।

- गैर- जीवन बीमा बाज़ार में निजी खिलाड़ियों की हिस्सेदारी वित्त वर्ष 2004 में 15% से बढ़कर वित्त वर्ष 2021(अप्रैल 2020 तक)  में 56% हो गई।

-वित्त वर्ष 2020 में प्राइवेट सेक्टर कंपनियों के नए बिज़नेस की बीमा मार्केट के जीवन बीमा सेक्टर में 31.3% हिस्सेदारी थी।  

- भारत मे जीवन बीमा कंपनियों का ग्रॉस प्रीमियम जो वित्त वर्ष 2012 में 2.56 ट्रिलियन रुपए ($39.7 अरब) था, वह वित्त वर्ष 2020 में बढ़कर 7.31 ट्रिलियन रुपए ($ 94.7 अरब) हो गया।

- वित्त वर्ष 2012 से 2020 के बीच, भारत में  जीवन बीमा कंपनियों के नए बिजनेस से प्रीमियम 15% की विकास दर के साथ बढ़ोतरी कर वित्त वर्ष 2020 में 2.13 ट्रिलियन रुपए ($ 37 अरब) पहुंच गया।

-कुल मिलाकर देखा जाए तो बीमा का हिस्सा (सकल घरेलू उत्पाद के% के रूप में प्रीमियम) 2017 में 3.69% पहुँच गया जो 2001 ने 2.71% था। 

आज के अनिश्चित समय में, बीमा सिर्फ एक लक्जरी चीज़ या सेवा नहीं है बल्कि यह एक मूलभूत ज़रूरत है। बीमाकर्ता उनके संभवित ग्राहकों की ज़रूरतों का पता लगाकर बीमा के नए मार्केट में घुसना चाहते हैं या सीधे शब्दों में कहें तो नया मार्केट बनाना चाहते हैं। यह मार्केट या जरूरतें जगह, आयु, लिंग, कारोबार, परिवार, स्वास्थ्य और धन आदि कई कारकों पर निर्भर करता है।

दूसरी ओर, उपभोक्ताओं को परिवार की ज़रूरतों और बीमा पॉलिसी से मिलने वाले ज्यादा से ज्यादा लाभों को ध्यान में रखकर अपने लिए सबसे बेस्ट बीमा पॉलिसी के अलग-अलग प्रकारों को समझना होगा और उनमें से अपने लिए एक पर्फेक्ट पॉलिसी चुननी होगी। और भी कई कारक हैं जिनको ध्यान में रखकर लोग अपने लिए पॉलिसी चुनते हैं जैसे प्रीमियम दर, क्लेम सैटलमेंट रेशियो, और कोई छिपे हुए नियम और कानून।

वास्तव में बीमित व्यक्ति को कई तरीकों से लाभ मिलता है जिसमें से कुछ निम्न हैं -

- अचानक से किसी संकट के समय में उन्हें पैसों की चिंता करने की ज़रूरत नहीं होती है।

- यह लंबी अवधि में एक निवेश के रूप में काम करता है।

- इससे व्यक्ति सुरक्षित महसूस करता है।

-एक बीमा पॉलिसी पूरे परिवार को सुरक्षा प्रदान कर सकती है।

-कई बीमाकर्ताओं के विकल्पों में से अपने लिए सबसे सटीक पॉलिसी चुनने का फायदा।  

बीमा के कानूनों और नियमों के बारे में जानना चाहते हैं? वह हम अगले अध्याय में जानेंगे 

निष्कर्ष 

अब जब आप भारत में बीमा के विकास के बारे में जान चुके हैं, तो अब यह सही समय है कि हम अगले बड़े सवाल पर जाएं - बीमा के कानून और नियम क्या है ? और यह जाने के लिए हमें अगले अध्याय पर जाना पड़ेगा।

अब तक आपने सीखा

  1. मल्होत्रा समिति ने बीमा क्षेत्र में एकाधिकार की कमियों का उल्लेख करते हुए एक रिपोर्ट प्रस्तुत की
  2. निजीकरण ने प्राइवेट सेक्टर की कंपनियों को बीमा बाजार में प्रवेश करने में सक्षम बनाया। इसके कारण पॉलिसीधारकों को कई  बीमा प्रदाताओं के बीच चुनने का विकल्प मिला।
  3. विदेशी बीमा कंपनियों को भारतीय साझेदारों के साथ जॉइंट वेंचर निवेश के माध्यम से भारतीय कंपनियों को चलाने की अनुमति दी गई।
  4. IRDA की स्थापना 1999 में पॉलिसीधारकों के हितों की रक्षा, विदेशी निवेश को आमंत्रित करने, और उद्योग के विकास को बढ़ावा देने, उसे विनियमित करने के लिए की गई थी।
  5. बीमा उद्योग के उदारीकरण ने उद्योग पर विदेशी नियंत्रण, कर्मचारियों के शोषण और सरकार की ओर से अनावश्यक खर्च के बारे में सवाल उठाए।
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