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कर दायित्व की गणना कैसे करे?
4.4
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6 दोस्त हैं, एनी, बेनी, चारुल, डेविड, इशा और फ्रस्टी। इन लोगों के अलग-अलग व्यवसाय हैं और वह सभी इस इस बात से चिंतित हैं कि वे अपनी कर देनदारियों (टैक्स लाइबिलिटी) की गणना कैसे करें?
एनी एक सोल प्रोप्राइटर हैं, बेनी और चारुल एक पार्टनरशिप में है, डेविड एक स्मॉल बिज़नेस कॉरपोरेशन का हिस्सा हैं जबकि ईशा और फ्रॉस्टी कॉर्पोरेट क्षेत्र में काम करती हैं।
क्या ये शब्द आपको डरा रहे हैं? चिंता न करें लेकिन आप उनमें से कोई भी हो सकते हैं और सच बताएं तो यह शब्द बहुत ही सरल है, बस हमें सीखना जारी रखना है।
क्या हम उन सबकी कर देनदारियों का पता लगा सकते हैं?
एकल स्वामित्व (सोल प्रोप्राइटरशिप) –
वह व्यवसाय जिसे किसी व्यक्ति द्वारा अपने मुनाफे के लिए चलाया जाता है, उसे एकल स्वामित्व कहा जाता है। यह एक व्यापारिक संगठन का सबसे सरल रूप है। मालिक के अलावा, स्वामित्व का कोई अस्तित्व नहीं है। साथ ही व्यवसाय की देनदारियाँ, मालिक की व्यक्तिगत देनदारियाँ हैं। मालिक की मृत्यु के साथ ही व्यवसाय भी खत्म हो जाता है। एकमात्र स्वामित्व में, व्यवसाय का रिस्क मालिक की संपत्ति की सीमा तक होता है, चाहे वह संपत्ति व्यवसाय में लगी हुई हो या मालिक के पास व्यक्तिगत स्वामित्व में रखी हुई हो।
पेशेवर लोग, सर्विस प्रोवाइडर जो रिटेलर भी है, जो खुद के लिए व्यवसाय करते हैं वह एकल प्रोप्राइटर में गिने जाते हैं। प्रोपराइटरशिप में मालिक की कोई अलग कानूनी पहचान नहीं होती है, पर फिर भी सिर्फ लेखांकन उद्देश्यों के चलते यह अलग इकाई होती है। एकल प्रोपराइटर को व्यवसाय की वित्तीय गतिविधी और उसकी व्यक्तिगत वित्तीय गतिविधी को अलग-अलग रखना होता है।
साझेदारी - सामान्य और सीमित (पार्टनरशिप – जनरल और लिमिटेड)
जब दो या दो से ज्यादा लोग, मुनाफा कमाने के लिए एक साथ व्यवसाय करते हैं तो यह जनरल पार्टनरशिप कहलाती है। व्यवसाय का हर पार्टनर धन, संपत्ति, श्रम कौशल के रूप में कुछ ना कुछ योगदान देता है, और साथ ही साथ वह व्यवसाय का मुनाफा और घाटा भी आपस में बांटते है। पार्टनरों के बीच असीमित सेट अप होता है और एक पार्टनर की व्यक्तिगत देनदारियां उनके द्वारा व्यवसाय में निवेश की गई राशि के अनुसार व्यापार की तारीख तक सीमित होती है। पार्टनरों को अधिकारियों को सीमित साझेदारी (लिमिटेड पार्टनरशिप) का सर्टिफ़िकेट फाइल करना जरूरी होता है।
सीमित देयता कंपनी (एलएलसी)
पार्टनरशिप और कॉर्पोरेशन (निगम) के बीच के मिश्रण को एक लिमिटेड लाइबिलिटी पार्टनरशिप (सीमित देयता कंपनी) के रूप में जाना जाता है। एलएलसी में पार्टनरशिप की तरह ही, मेंबर्स के पास परिचालन की आज़ादी और आय होती है। उनकी देनदारी भी सीमित होती है। लिमिटेड पार्टनरशिप और एलएलसी के बीच कई अलग-अलग कानूनी और वैधानिक अंतर है।
लघु व्यवसाय निगम (स्मॉल कॉर्पोरेशन)
सबचैप्टर स्मॉल कॉरपोरेशन के सदस्यों की संख्या लिमिटेड होती है और यह एक विशेष क्लोज़्ड कॉरपोरेशन है। अगर कोई आईआरएस कोड आवश्यकताओं को पूरा करता है, तो ही एस-कॉरपोरेशन को बनाया जाता है, ताकि छोटे निगमों को भी कर लाभ दिया जा सके। एस-कॉर्पोरेशन में नियमित निगम के दोहरे कराधान से बचने के लिए उनके व्यक्तिगत संघीय आयकर रिटर्न के मालिक द्वारा टैक्स को माफ कर दिया जाता है।
भारत में कॉर्पोरेट टैक्स
कॉर्पोरेट एक ऐसी इकाई है, जिसकी अपने शेयरधारकों से खुद की एक अलग स्वतंत्र, कानूनी पहचान है। सभी कंपनियां, चाहे वह घरेलू हों या विदेशी, उन्हें आयकर अधिनियम के तहत कॉर्पोरेट टैक्स का भुगतान करना होता है। तो चलिए, हम कॉर्पोरेट पर लागू होने वाले अलग-अलग टैक्स स्लैब को समझते हैं। कर की गणना के उद्देश्य से 2 प्रकार की कंपनियां होती हैं:
- घरेलू कंपनी- वह कंपनियाँ जो भारत के कंपनी एक्ट के तहत पंजीकृत हैं वह घरेलू कंपनियाँ कहलाती हैं, और इसमें विदेश में रजिस्टर्ड वह कंपनियाँ भी आती हैं जिनका नियंत्रण और मैनेजमेंट भारत में स्थित है।
- विदेशी कंपनी- वह कंपनी जो भारत के कंपनी एक्ट के तहत रजिस्टर्ड नहीं है और जिसका नियंत्रण भारत के बाहर स्थित है, वह एक विदेशी कंपनी कहलाती है।
कंपनी के टैक्स की गणना करने के लिए हमें सबसे पहले यह समझना होगा कि कंपनी की आय में किन-किन चीज़ों को गिना जाता है। तो चलिए, हम यह देखते हैं कि कंपनी की आय में क्या-क्या शामिल होता है -
- व्यवसाय से अर्जित लाभ
- पूँजीगत लाभ
- संपत्ति किराए पर देने से आय
- डिविडेंड, ब्याज आदि जैसे अन्य स्रोतों से आय
पिछले अध्याय में, हमने आयकर के बारे में पढ़ा था। करदाता की आय स्लैब के आधार पर हर साल आयकर का भुगतान किया जाता है। करदाता के रूप में आपको आईटी विभाग द्वारा बताए गए, कई अलग-अलग तरह के इन्कम टैक्स रिटर्न जमा करने होंगे, ताकि आपको रिटर्न मिल सके और अगर कोई रिफंड हो तो वो भी मिल जाये। अब, हम उन खर्चों को भी देखते हैं जो एक कंपनी माल बेचने पर करती है:
- मूल्यह्रास
- बेचे गए माल की कुल लागत
- बिक्री पर होने वाला खर्च
- प्रशासनिक उद्देश्यों के लिए किया गया खर्च
किसी कंपनी की आय में शुद्ध अर्जित लाभ, किराए से आय, पूंजीगत लाभ या अन्य स्रोतों से आय जैसे ब्याज आय या लाभांश आय शामिल है।
इस प्रकार, कुल राजस्व = सकल राजस्व - (खर्च + मूल्यह्रास)
भारत में कॉर्पोरेट कर की दर
कॉर्पोरेट टैक्स का रेट घरेलू और विदेशी कॉरपोरेशन के लिए अलग-अलग है। कॉरपोरेशन अलग-अलग रेट से टैक्स का भुगतान करते हैं। और इसके अलावा, कॉर्पोरेट के अलग-अलग प्रकारों और उनमें से प्रत्येक के द्वारा कमाए गए अलग-अलग रेवेन्यू के आधार पर कॉर्पोरेट टैक्स का रेट तय होता है, जो स्लैब के अनुसार सबके लिए अलग-अलग है। वर्तमान में, आकलन वर्ष 2019-2020 के लिए, भारत में कॉर्पोरेट कर की दरें कुछ इस प्रकार हैं -
कंपनी का प्रकार |
कॉर्पोरेट टैक्स की दर |
एक करोड़ से कम कुल आय पर सरचार्ज |
एक करोड़ से ज्यादा और 10 करोड़ से कम कुल आय पर सरचार्ज |
10 करोड़ से ज्यादा कुल आय पर सरचार्ज |
250 करोड़ रुपए तक के वार्षिक कारोबार वाली घरेलू कंपनी |
25% |
- |
7% |
12% |
घरेलू कंपनी जिसका वार्षिक कारोबार 250 करोड़ रुपए से ज्यादा है |
30% |
- |
7% |
12% |
विदेशी कंपनी |
40% |
- |
2% |
5% |
एक घरेलू कंपनी के लिए भारत में कॉर्पोरेट टैक्स की दरें
घरेलू कंपनी के लिए असेसमेंट ईयर 2019-20 के लिए कॉर्पोरेट कर की यह दर लागू है:
कुल बिक्री |
टैक्स रेट |
250 करोड़ रुपए तक |
25% |
250 करोड़ रुपए से ज्यादा |
30% |
- एक घरेलू कॉर्पोरेट इकाई जिसका टर्नओवर 250 करोड़ रुपए तक है उन्हें 25% की दर से कॉर्पोरेट टैक्स का भुगतान करना होगा।
- अगर किसी वित्तीय वर्ष में, किसी कंपनी का कुल रेवेन्यू एक करोड़ रुपए से ज्यादा हो जाता है तो उस कॉर्पोरेट पर 5% के रेट से सरचार्ज लगाया जाता है।
- एक घरेलू कंपनी के ऊपर 4% स्वास्थ्य और शैक्षणिक सेस लगाया जाता है।
- ऐसी स्थिति में जहां एक घरेलू कंपनी विदेशों में काम करती है तो कंपनी की कुल वैश्विक कमाई पर उतना ही कॉर्पोरेट टैक्स लगता है।
- भारत में घरेलू कंपनियों के मामले में कॉर्पोरेट के लिए में वो राजस्व भी शामिल होता है जो विदेशों में काम करने वाली घरेलू कंपनी द्वारा अर्जित किया जाता है।
असेसमेंट ईयर 2019-20 में विदेशी निगम के लिए कॉर्पोरेट टैक्स
घरेलू कंपनी के लिए असेसमेंट ईयर 2019-20 के लिए विदेशी कॉर्पोरेट टैक्स की लागू दर ये है:
आय की प्रकृति |
टैक्स रेट |
1 अप्रैल, 1976 से पहले किए गए एक समझौते के तहत एक विदेशी निगम द्वारा सरकार या किसी भारतीय कंपनी से प्राप्त तकनीकी सेवाओं के लिए प्राप्त और केंद्र सरकार द्वारा अनुमोदित फीस या रॉयल्टी |
50% |
भारतीय परिचालन से अन्य आय |
40% |
कॉर्पोरेट टैक्स रिबेट
कई प्रकार के कॉर्पोरेट करों के साथ, कॉर्पोरेट टैक्स रिबेट या कटौती के लिए भी कुछ प्रावधान हैं जिन्हें हम यहाँ देख सकते हैं -
- ब्याज से कमाई गई आय कुछ मामलों में घटा दी जाती है।
- कॉरपोरेट इकाई के पूंजीगत लाभ पर कोई टैक्स नहीं होता है।
- लागू नियमों और शर्तों के साथ डिविडेंड पर कर छूट मिल सकती है।
- कॉर्पोरेट इकाई ज्यादा से ज्यादा 8 साल के लिए व्यवसाय में हुए नुकसान को क्लेम कर सकती है।
- जब कंपनी बिजली या नए बुनियादी ढांचे, निर्यात और नए उपक्रमों के नए स्रोत स्थापित करती है, तो उन्हें कुछ कटौती प्राप्त होती है।
- अगर किसी घरेलू कंपनी को किसी दूसरी घरेलू कंपनी से डिविडेंड प्राप्त होता है, तो इस डिविडेंड को वह कटौती के लिए काम में ले सकते हैं।
कर दायित्व –
कर देयताएं (टैक्स लाइबलिटी) टैक्स की वह कुल राशि है जो कि एक समयावधि के लिए बकाया है। यह टैक्स केंद्र या राज्य सरकार या स्थानीय नगरपालिका, उदाहरण के लिए स्थानीय प्राधिकरण, जैसे संस्थाओं को चुकाया जाता है। व्यक्ति और संस्थाएं अपनी आय पर कर का भुगतान करने के लिए उत्तरदायी हैं।
टैक्स देनदारियों को एक व्यवसाय की बैलेंस शीट पर शॉर्ट-टर्म डेट यानी छोटी अवधि का ऋण माना जाता है। और दिए गए वर्ष के अंदर ही उन्हें क्लियर भी करना होता है। व्यक्तियों के लिए, ये देय दायित्व हैं, जिनका भुगतान व्यक्तिगत बचत से किया जाता है।
कर के प्रकार
भारत की वर्तमान कराधान प्रणाली में दो प्रमुख कर श्रेणियां हैं - प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष कर (डायरेक्ट और इनडायरेक्ट टैक्स)। चलिये, उन्हें विस्तार से समझते हैं:
प्रत्यक्ष कर (डायरेक्ट टैक्स) -
कर देयताएं जो सीधे केंद्र सरकार को भुगतान की जाती हैं, वो प्रत्यक्ष कर हैं। कर योग्य आय वाले व्यक्तियों और संगठनों को इसका भुगतान करना ही होता है।
प्रत्यक्ष कर के प्रकार
आयकर: कंपनी के अलावा, किसी व्यक्ति या एचयूएफ को वित्तीय वर्ष के दौरान अपनी आय पर टैक्स भुगतान करना होता है। वेतन, पेंशन, ब्याज आय और किराये की आय पर आयकर लगाया जाता है।
कॉर्पोरेट कर: स्वास्थ्य और शिक्षा उपकर -इसके अलावा, आयकर का 4% स्वास्थ्य और शिक्षा के लिए गिना जाता है।
लाभांश वितरण कर - कंपनियां वित्तीय वर्ष में अपने शेयरधारकों को बांटे गए डिविडेंड पर कर देनदारी रखती हैं और इस पर 10 लाख रुपए तक की टैक्स छूट भी मिलती है। यह कर कंपनी के निवेश से कमाई गई सकल आय पर लगाया जाता है।
मिनिमम अल्टरनेटिव टैक्स - न्यूनतम वैकल्पिक कर अनिवार्य है, जो कंपनियों द्वारा बुक प्रॉफिट पर 18.45% की दर से धारा 115JA के तहत दिया जाता है, पर केवल तभी जब संबंधित कंपनी उक्त दर से नीचे आयकर का भुगतान कर रही हो।
फ्रिंज बेनिफिट्स टैक्स - फ्रिंज बेनिफिट्स टैक्स को आवास लाभ, यात्रा भत्ता, सेवानिवृत्ति निधि में कर्मचारी के योगदान आदि जैसे लाभों के लिए वसूला जाता है।
अप्रत्यक्ष कर:
प्रत्यक्ष करों के विपरीत, इन करों को व्यक्तियों पर नहीं बल्कि वस्तुओं और सेवाओं पर लगाया जाता है। यह कर किसी व्यक्ति या संस्था के लाभ, आय या राजस्व पर नहीं लगाया जाता है। साथ ही, इस कर को एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति के बीच ट्रांसफर किया जा सकता है।
यहाँ विभिन्न प्रकार के अप्रत्यक्ष करों की लिस्ट दी गई है:
गुड्स एंड सर्विस टैक्स: 2017 में पेश किया गया यह टैक्स उपभोग स्तर पर लागू होता है। जीएसटी आपूर्ति श्रृंखला के हर चरण पर लागू होता है, जहां भी खपत होती है।
कस्टम ड्यूटी: अगर आप किसी दूसरे देश से उत्पाद खरीदते हैं और उसे भारत में आयात करते हैं, तो आपको उस पर कर देना होगा। इस कर को कस्टम ड्यूटी कहा जाता है।
टोल टैक्स: इसे राज्य या केंद्र सरकारों द्वारा सड़कों और पुलों पर लगाया जाता है। कर का उद्देश्य सड़क निर्माण और रखरखाव गतिविधियों को फंडिंग देना है।
निष्कर्ष
अब जब आप कर देयताओं की गणना करना समझ चुके हैं, तो अगले अध्याय की ओर रुख करते हैं जो है धारा 80 सी। इसके बारे में और जानने के लिए अगले अध्याय पर जाएँ।
अब तक आपने पढ़ा
- भारत की वर्तमान कराधान प्रणाली में दो प्रमुख कर श्रेणियां हैं - प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष कर
- करदाता के आय स्लैब के आधार पर हर साल आयकर का भुगतान किया जाता है।
- कॉर्पोरेट टैक्स की दर घरेलू निगमों और विदेशी कंपनियों के लिए अलग-अलग है।
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