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म्यूचुअल फंड: टैक्स बचाने के लिए म्यूचुअल फंड्स के प्रकार
4.1
13 मिनट पढ़े


पिछले अध्याय में आपने बीमा के बारे में पढ़ा और देखा कि कैसे बीमा, इसके अलग-अलग रूपों में, आपकी जीवन की महत्वपूर्ण और मूल्यवान चीज़ों पर एक सुरक्षित कवर-सा बना देता है, जैसे आपका जीवन, आपका घर और आपकी संपत्ति। पर आखिर में आपके पर्सनल फाइनेंस या वित्त का एक बड़ा पार्ट इसी बात को समझने में खर्च हो जाता है कि आप कैसे अपने पैसे से और ज्यादा पैसा या संपत्ति बना सकते है, क्यों सही कहा ना? और यहाँ एक अलग तरह का निवेश काम आता है और वह है - म्यूचुअल फंड।
जब भारत में उपलब्ध अलग-अलग आकर्षक निवेश विकल्प की एक लिस्ट बनती है तो म्यूचुअल फंड्स को उस लिस्ट में काफी ऊपर जगह मिलती है। और इस अध्याय में हम, म्यूचुअल फंड्स के कुछ मुख्य पहलुओं पर ध्यान देंगे और इन निम्न प्रश्नों के उत्तर देंगे -
- म्यूचुअल फंड क्या हैं?
- नेट असेट वैल्यू क्या है?
- म्यूचुअल फंड के विभिन्न प्रकार क्या हैं?
तो चलिए, मूल बातों से शुरूआत करते हैं।
म्यूचुअल फंड क्या हैं?
म्यूचुअल फंड एक तरह का निवेश होता है, जिसमें कई निवेशकों के फंड्स को एक साथ इकट्ठा कर उनके पैसों का एक समान पूल बनाया जाता है। यहाँ निवेशक, कोई व्यक्ति या कंपनी या अन्य संस्थाएं भी हो सकती हैं। म्यूचुअल फंड के प्रकार उसके निवेश उद्देश्यों के आधार पर, इस एकत्रित पूँजी के सामूहिक पैसे को अलग-अलग प्रकार की संपत्तियों में निवेश किया जाता है।
लेकिन आपके फंड को इस तरह निवेश करने के बाद क्या होता है? चूँकि फंड्स को तो एक समान पूल में निवेश किया गया था, तो उसमें आपका हिस्सा कितना होगा? यहाँ पर नेट एसेट वैल्यू का कॉनसेप्ट काम में आता है।
नेट एसेट वैल्यू (NAV) क्या है?
किसी फंड की नेट एसेट वैल्यू क्या है, यह म्यूचुअल फंड को समझने के लिए ज़रूरी फंडमेंटल अवधारणाओं में से एक है।
जैसे किसी कंपनी के स्वामित्व का प्रतिनिधित्व करने वाली पूंजी को शेयरों में विभाजित किया जाता है, उसी तरह म्यूचुअल फंड्स में स्वामित्व को इकाइयों में विभाजित किया जाता है। और जैसे हर शेयर की अपनी एक वैल्यू होती है उसी तरह म्यूचुअल फंड की हर इकाई की भी अपनी एक वैल्यू होती है। बस नेट एसेट वैल्यू आपको यही समझने और आंकलन करने में मदद करता है।
यह देखने के लिए कि आपने अपने निवेश पर अच्छा रिटर्न कमाया है या नहीं, आप किसी फंड की नेट एसेट वैल्यू का उपयोग कर सकते हैं। लेकिन इसके लिए आपको सबसे पहले यह सीखना होगा कि नेट एसेट वैल्यू की गणना कैसे करते हैं? और अगर आप म्यूचुअल फंड्स को समझना चाहते है तो आपको यह आना ही चाहिए। तो चलिए, देखते हैं नेट एसेट वैल्यू की गणना कैसे की जाती है।
म्यूचुअल फंड्स के पोर्टफोलियो में अलग-अलग तरह की सिक्योरिटीज़ शामिल होती हैं। यही सिक्योरिटीज़ वह संपत्तियाँ होती है जिनमें फंड्स को निवेश किया जाता है। और इन फंड्स को मैनेज करने के लिए कई पेशेवर और स्टाफ के लोगों की ज़रूरत होती है। इन्हें दी जाने वाली सैलरी के साथ-साथ फंड्स के सभी संचालन और मैनेजमेंट खर्चे, फंड्स की देनदारी बन जाती है। और जब NAV की गणना करते हैं तो उसके दो मानदंड होते हैं – एक म्यूचुअल फंड के एसेट और दूसरा उसकी देनदारियाँ (लायाबिलिटीज़)
NAV की गणना करने का फॉर्मूला निम्न है -
फंड की नेट एसेट वैल्यू = एसेट का मूल्य - लायाबिलिटी का मूल्य
NAV की गणना प्रति यूनिट के आधार पर भी की जा सकती है। उस स्थिति में, फ़ॉर्मूला यह बन जाता है -
फंड के प्रत्येक इकाई की NAV = फंड की नेट एसेट वैल्यू ÷ बकाया इकाइयों की कुल संख्या
NAV को और बेहतर समझने के लिए हम एक उदाहरण देखते हैं। मान लीजिए कि म्यूचुअल फंड की निम्न डीटेल हैं -
- पोर्टफोलियो में एसेट का मूल्य: 50 लाख रुपए
- नकद और नकद समकक्ष: 15 लाख रुपए
- छोटी अवधि की देनदारियों: 1 लाख रुपए
- लंबी अवधि की देनदारियां: 14 लाख रुपए
- बकाया इकाइयों की संख्या: 5 लाख इकाइयाँ
इस स्थिति में, फंड्स की नेट एसेट वैल्यू (₹ में) ये होगी:
= (50,00,000 + 15,00,000) - (1,00,000 + 14,00,000)
= 65,00,000 - 15,00,000
= ₹50,00,000
और हर यूनिट की नेट एसेट वैल्यू होगी:
=₹50,00,000 ÷ 5,00,000 इकाइयाँ
= ₹10 प्रति यूनिट
NAV ₹10 प्रति यूनिट होने पर जब आप इस म्यूचुअल फंड में निवेश करते हैं, तो आपको इकाइयाँ इसी हिसाब से आवंटित की जाएंगी। और नेट एसेट वैल्यू की गणना हर दिन, कुछ निश्चित नियमों के आधार पर की जाती है।
म्यूचुअल फंड के विभिन्न प्रकार क्या हैं?
अब, आप दो महत्वपूर्ण सवालों के जवाब जानते हैं:
- म्यूचुअल फंड क्या हैं?
- नेट एसेट वैल्यू क्या है?
अब आप शायद सोच रहे होंगे कि म्यूचुअल फंड्स कितने प्रकार के होते हैं। वैसे तो यह एक बहुत बड़ा विषय है, क्योंकि म्यूचुअल फंड्स को कई मापदंडों के आधार पर बहुत-सी अलग-अलग श्रेणियों मे बांटा जा सकता है। इन्हें आप नीचे देख सकते हैं -
मूल निवेश की प्रकृति के आधार पर
जैसा कि हमने इस अध्याय में कुछ समय पहले पढ़ा था, म्यूचुअल फंड अलग-अलग प्रकार की संपत्तियों में फंड्स के पूल को निवेश करते हैं। म्यूचुअल फंड द्वारा निवेश की गई प्राथमिक संपत्ति की प्रकृति के आधार पर, यह तीन प्रकारों का हो सकता है:
- इक्विटी फंड, जो मुख्य रूप से इक्विटी बाजारों में निवेश करते हैं
- डेट फंड, जो मुख्य रूप से डेट और मनी मार्केट उपकरणों में निवेश करते हैं
- हाइब्रिड फंड, जो इक्विटी और डेट एसेट्स के संतुलित मिश्रण में निवेश करते हैं
मैच्योरिटी अवधि के आधार पर
आपने म्यूचुअल फंड में निवेश किया है, तो क्या आप किसी भी समय अपने निवेश को नकदी में बदल सकते हैं? या ऐसा कोई तय समय है, जिसके बाद ही आपको अपने निवेश को बेच या उसके रिटर्न को प्राप्त कर सकते हैं। वैसे यह पूरी तरह इस बात पर निर्भर करता है कि आप किस तरह का फंड चुनते हैं।
- ओपन-एंडेड स्कीम, जहां आप किसी भी समय यूनिट को खरीद या बेच सकते हैं, जो इन्हें बहुत तरल (लिक्विड) बनाता है।
- क्लोज़-एंडेड स्कीम, जहां पहले से ही एक मैचोरिटी पीरियड बता दिया जाता है और जहां आप केवल शुरुआती लॉन्च अवधि के समय ही निवेश कर सकते हैं, जिसे न्यू फंड ऑफर (NFO) कहा जाता है
क्या म्यूचुअल फंड आपको टैक्स बचाने में मदद कर सकते हैं?
इसमें कोई संदेह नहीं है कि पूंजी के मूल्य में बढ़ोतरी और संपत्ति को बढ़ाना ज़रूरी है। लेकिन अगर आप एक आम व्यक्ति से पूछेंगे कि जब टैक्स देने का समय आता है तो आपको सबसे ज्यादा चिंता किस बात की होती है तो सभी के पास इसका एक ही जवाब होगा कि वह कैसे अपनी टैक्स लाइब्लिटी को कम करें? तो यहाँ म्यूचुअल फंड का क्या काम? क्या यह टैक्स बचाने में आपकी मदद कर सकते हैं?
अगर देखा जाए तो एक औसत म्यूचुअल फंड तो आपकी कोई मदद नहीं कर सकता है। लेकिन एक विशेष प्रकार का म्यूचुअल फंड है जो आपकी इन दोनों उद्देश्यों में मदद कर सकता है – पहला टैक्स की बचत और दूसरा धन को बढ़ाना। इसे इक्विटी लिंक्ड सेविंग स्कीम (ELSS) के नाम से जाना जाता है।
ELSS क्या है?
तो शायद आपके दिमाग में सबसे पहले यह सवाल आ रहा होगा की यह ELSS क्या है? चलिए, इन फंड्स के बारे में जानते हैं। ELSS फंड्स, वह इक्विटी फंड है जहां निवेशक फंड का एक बड़ा हिस्सा इक्विटी और इक्विटी से जुड़े उपकरणों में निवेश किया जाता है। क्या यह नॉर्मल इक्विटी फंड ही है? जी बिलकुल नहीं, प्राथमिक एसेट समान हो सकती है, लेकिन समानताएं यहीं समाप्त हो जाती हैं।
ELSS सामान्य इक्विटी फंड्स से कहीं बढ़कर है और यह निवेशकों को भी अहम एक टैक्स-ब्रेक देता है। इसकी और भी कई विशेषताएँ है, जिन्हें आगे बताया गया है।
ELSS की विशेषताएं क्या हैं?
- मुख्य रूप से इक्विटी-आधारित होने की वजह से, आमतौर पर, एक ELSS में कुल राशि का लगभग 80% इक्विटी और इक्विटी-संबंधित उपकरणों में निवेश किया जाता है।
- इक्विटी सेगमेंट में, बहुत सारे विविधीकरण होते हैं, इसलिए एसेट पोर्टफोलियो में स्मॉल-कैप, मिड-कैप और लार्ज-कैप की इक्विटी के साथ-साथ अलग-अलग क्षेत्रों से संबंधित कंपनियों की इक्विटी भी शामिल होती है।
- ELSS म्यूचुअल फंड में 3 साल का लॉक-इन पीरियड होता है।
- आप या तो ELSS में एकमुश्त निवेश कर सकते हैं, या आप व्यवस्थित निवेश योजना (SIP) को अपनाकर समय-समय पर छोटी मात्रा में निवेश कर सकते हैं।
ELSS आपको टैक्स बचाने में कैसे मदद करता है?
आयकर अधिनियम की धारा 80C के तहत, आप एक वित्तीय वर्ष के दौरान ELSS में निवेश की गई ₹1,50,000 तक की राशि को अपनी वार्षिक कर-योग्य आय में से घटा सकते हैं। मानिए कि आपने इस साल ELSS में ₹50000 निवेश किए और कटौती से पहले आपकी कर योग्य आय ₹2,90,000 है।
आपके ELSS निवेश पर 80C की कटौतियों के तहत आपकी कर योग्य आय ₹2,40,000 (₹2,90,000 - ₹50,000) हो गयी है। और देखा जाए तो अब आप बेसिक टैक्सेबल इन्कम के दायरे से बाहर हैं तो आपको बिलकुल भी टैक्स देने की ज़रूरत नहीं है।
इस पॉइंट पर, यह ध्यान रखना ज़रूरी है कि मैच्योरिटी के समय, अगर आप अपने ELSS के निवेश से 1 लाख रुपए से ज्यादा कमाते हैं तो उस पर लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन्स (LTCG) के रूप में 10 % टैक्स लगाया जाता है।
निष्कर्ष
तो इस तरह पर्सनल फाइनेंस का ये पाठ यहीं खत्म होता है। पर इससे पहले कि हम इसे पूरी तरह खत्म करें, हम आपको कुछ सामान्य पॉइंट्स के बारें मे बताएँगे जो आपको आपके फाइनेंस की प्लानिंग करने में बहुत काम आएंगे। अरे पर यहाँ नहीं, इन पॉइंट्स को जानने के लिए आपको अगले अध्याय पर जाना होगा।
अब तक आपने पढ़ा
- म्यूचुअल फंड एक तरह का निवेश होता है, जिसमें कई निवेशकों के फंड को एक साथ जोड़कर पैसे का एक समान पूल बनाया जाता है।
- इस पूंजी की राशि को विभिन्न प्रकार की संपत्ति में निवेश किया है।
- म्युचुअल फंड की नेट एसेट वैल्यू= एसेट का मूल्य - लायाबिलिटी का मूल्य
- फंड में प्रत्येक इकाई का NAV = फंड का NAV ÷ बकाया इकाइयों की कुल संख्या
- फंड के निवेश के प्राथमिक एसेट की प्रकृति के आधार पर, वह एक इक्विटी फंड, एक डेट फंड या एक हाइब्रिड फंड हो सकता है।
- किसी फंड की मैच्योरिटी अवधि के आधार पर, यह ओपन एंडेड या क्लोज़ एंडेड हो सकता है।
- ELSS फंड ऐसा इक्विटी फंड हैं जहां निवेशक फंड का एक बड़ा हिस्सा इक्विटी और इक्विटी से संबंधित उपकरणों में निवेश किया जाता है। इसके अतिरिक्त, ये फंड आपको टैक्स बचाने में मदद करते हैं।
- ELSS में 3 साल की लॉक-इन अवधि होती है।
- आयकर अधिनियम की धारा 80C के तहत, आप एक वित्तीय वर्ष के दौरान ELSS में निवेश की गई ₹1,50,000 तक की राशि को वार्षिक कर योग्य आय में कटौती के रूप में क्लेम कर सकतें है।
- मैच्योरिटी के समय, अपने ELSS निवेश से कमाई गई 1 लाख रुपये से ऊपर की किसी भी राशि पर लॉंग टर्म कैपिटल गेन्स (LTCG) के रूप में 10% कर लगाया जाता है।
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