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विकल्प और वायदा का परिचय

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वायदा कारोबार से जुड़ी अहम शब्दावली

4.5

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इस मॉड्यूल में, अभी तक हमने ऑप्शंस के बारे में बहुत पढ़ लिया है। अब, हमें अपना फोकस एक दूसरे प्रकार के डेरिवेटिव कॉन्ट्रैक्ट- वायदा यानी फ्यूचर्स की ओर घुमाना है। इससे पहले कि हम यह देखें कि वायदा बाज़ार मे ट्रेडिंग कैसे करें, हम इसमें काम में आने वाले विभिन्न प्रमुख शब्दों को समझेंगे।

वायदा कॉन्ट्रैक्ट का विवरण

यहां टाटा मोटर्स लिमिटेड का फ्यूचर कॉन्ट्रैक्ट दिखाया गया है।


TATAMOTORS JUL FUT

 

जैसा कि आप देख रहे हैं कि यह एक ऑप्शंस कॉन्ट्रैक्ट से कितना अलग है, अब इसके बारे में विस्तार से चर्चा करते हैं –

  • TATAMOTORS: यह टाटा मोटर्स लिमिटेड का NSE पर लिस्टेड लोगो यानी प्रतीक चिह्न है।
  • JUL: यह फ्यूचर कॉन्ट्रैक्ट की एक्स्पायरी के महीने को दर्शाता है। जैसे इस मामले में, फ्यूचर कॉन्ट्रैक्ट जुलाई के महीने में एक्सपायर हो रहा है। हम इस अध्याय के अगले सेगमेंट में एक बार फिर कॉन्ट्रैक्ट एक्सपायरी पर चर्चा करेंगे।
  • FUT: 'FUT' टैग से पता चलता है कि यह एक फ्यूचर कॉन्ट्रैक्ट है।

आपने ध्यान दिया होगा कि यहाँ स्ट्राइक प्राइस नहीं है, जैसे ऑप्शंस में हुआ करता था। आप किसी निर्धारित स्ट्राइक प्राइस को ध्यान में रखते हुए फ्यूचर कॉन्ट्रैक्ट नहीं खरीद सकते।   

और क्योंकि अब आप फ्यूचर कॉन्ट्रैक्ट की मूल संरचना को समझ गए हैं तो अब समय आ गया है कि इस अध्याय के मुख्य मुद्दे पर आया जाए। यहाँ कुछ प्रमुख शब्द दिए गए हैं, जिनके मायने आपको फ्यूचर कॉन्ट्रैक्ट के संबंध में पता होने चाहिए। 

1 - लॉट साइज़

जब हम फ्यूचर कॉन्ट्रैक्ट की मूल बातों को जान रहे हैं तो उनमें लॉट साइज़ एक मुख्य शब्द है। यह एक कॉन्ट्रैक्ट में शेयरों या डेरिवेटिव (सूचकांक के मामले में) की न्यूनतम संख्या है। यह शेयर या डेरिवेटिव की वह मात्रा है जो स्टॉक एक्सचेंज द्वारा बताई जाती है और इसे उपयोगकर्ता बदल नहीं सकते। लॉट साइज़ हमेशा एक-सा नहीं होता है और यह हर सिक्योरिटी में अलग-अलग हो सकता है।

उदाहरण के लिए, HDFC बैंक का लॉट साइज़ 250 है, जबकि टाटा मोटर्स का  लॉट साइज़ 5,700 पर सेट है। इसका मतलब यह है कि जब आप HDFC बैंक का फ्यूचर कॉन्ट्रैक्ट खरीदते हैं, तो आप कॉन्ट्रैक्ट की एक्स्पायरी पर कंपनी के 250 शेयर खरीदने के लिए सहमत होते हैं।

2 - कॉन्ट्रैक्ट वैल्यू 

जब हम फ्यूचर कॉन्ट्रैक्ट की वर्तमान कीमत को कॉन्ट्रैक्ट के लॉट साइज़ से गुणा करते हैं तो जो संख्या आती है उसे कॉन्ट्रैक्ट वैल्यू कहते है। और क्योंकि फ्यूचर कॉन्ट्रैक्ट की वर्तमान कीमत बदलती रहती है इसलिए उसके हिसाब से कॉन्ट्रैक्ट वैल्यू भी बदलती रहती है। कॉन्ट्रैक्ट वैल्यू को बेहतर ढंग से समझने के लिए निम्नलिखित उदाहरण देखें:

मानिए कि मारुति सुजुकी इंडिया (MARUTI JUL FUT) का जुलाई फ्यूचर कॉन्ट्रैक्ट अभी वर्तमान में ₹6000 पर ट्रेड कर रहा है। कॉन्ट्रैक्ट का लॉट साइज़ 100 है। इसलिए अभी कॉन्ट्रैक्ट वैल्यू ₹6,00,000 है। (₹6,000 x 100 शेयर)

फ्यूचर कॉन्ट्रैक्ट के खरीदार के लिए कॉन्ट्रैक्ट वैल्यू, वह मूल्य है जो उसे कॉन्ट्रैक्ट की एक्सपायरी पर शेयर खरीदने पर देना होगा। और इसके विपरीत फ्यूचर कॉन्ट्रैक्ट के विक्रेता के लिए, कॉन्ट्रैक्ट वैल्यू वह राशि है जो उसे कॉन्ट्रैक्ट की एक्स्पायरी डेट पर शेयर बेचने के बदले में मिलेगी।

3 - कॉन्ट्रैक्ट एक्सपायरी

कॉन्ट्रैक्ट एक्सपायरी एक और ऐसा अहम मौलिक सिद्धांत है, जो फ्यूचर ट्रेडिंग के बारे में पता होना ही चाहिए। ऑप्शंस की तरह ही, हर फ्यूचर कॉन्ट्रैक्ट, हर महीने के आखिरी गुरुवार को ही एक्सपायर होता है। और अगर आखिरी गुरुवार को कोई छुट्टी है तो कॉन्ट्रैक्ट उसके पिछले ट्रेडिंग दिन पर (एक दिन पहले) एक्सपायर हो जाएगा। इसके अलावा, किसी भी समय, फ्यूचर कॉन्ट्रैक्ट की हमेशा तीन अलग-अलग एक्सपायरी होती हैं। उदाहरण के लिए, अगर आप 2 जुलाई, 2020 को एक्सिस बैंक के फ्यूचर कॉन्ट्रैक्ट को देखें, तो आपको निम्न एक्सपायरी देखने को मिलेगी -

  •       AXISBANK JUL FUT (इसे नियर मंथ भी कहा जाता है )
  •       AXISBANK AUG FUT (इसे नेक्स्ट मंथ भी कहा जाता है )
  •       AXISBANK SEP FUT (इसे फार मंथ भी कहा जाता है )

 एक बार जब जुलाई फ्यूचर कॉन्ट्रैक्ट एक्सपायर हो जाता है, तो अगस्त फ्यूचर कॉन्ट्रैक्ट का नियर मंथ बन जाता है, और ऐसे ही क्रमश: सितंबर कॉन्ट्रैक्ट का नेक्स्ट मंथ और अक्टूबर फ्यूचर कॉन्ट्रैक्ट का फार मंथ बन जाता है। और यह ऐसे ही महीने दर महीने आगे बढ़ता रहता है।

4 - ओपन कॉन्ट्रैक्ट

ख़रीदा (या बेेचा) गया एक फ्यूचर कॉन्ट्रैक्ट, जिसे स्क्वेयर ऑफ नहीं किया गया है या जिसकी एक्सपायरी अभी नहीं आई है, उसे ओपन कॉन्ट्रैक्ट कहते हैं। उदाहरण के लिए, मानिए कि आपने एक्सचेंज के ज़रिये TVSMOTOR JUL FUT का कॉन्ट्रैक्ट ख़रीदा है। इसे एक ओपन कॉन्ट्रैक्ट तब तक माना जाएगा जब तक या तो कॉन्ट्रैक्ट की एक्स्पायरी डेट नहीं आ जाती है या आप इसे बेचकर अपनी पोज़ीशन स्क्वेयर ऑफ नहीं कर लेते। 

5 - ओपन इंटरेस्ट

बाजार में किसी वित्तीय संपत्ति के ओपन कॉन्ट्रैक्ट की कुल संख्या को ओपन इंटरेस्ट कहते हैं। यहाँ संपत्ति- शेयर, इंडेक्स, कमोडिटी या मुद्रा हो सकती है। उदाहरण के लिए, अगर BAJAJ-AUTO JUL FUT कॉन्ट्रैक्ट के लिए ओपन इंटरेस्ट 7,400 है, तो इसका मतलब यह है कि मार्केट में अभी 7,400 कॉन्ट्रैक्ट्स ओपन और अनसेटल्ड हैं।

6 – मार्जिन

फ्यूचर कॉन्ट्रैक्ट में व्यापार करने के लिए आपको पूरी कॉन्ट्रैक्ट वैल्यू को एडवांस में या एक बार में ही देने की जरूरत नहीं होती है। बल्कि आपको सिर्फ एक्सचेंज को कॉन्ट्रैक्ट वैल्यू का एक तय प्रतिशत जमा करवाना होता है। और जो राशि आप जमा करते है, उसे ही मार्जिन कहते हैं। आप मार्जिन को स्टॉक एक्सचेंज द्वारा लिया गया एक सिक्योरिटी डिपॉज़िट मान सकते हैं, ताकि वह यह सुनिश्चित कर सके कि व्यापारी के तौर पर आप फ्यूचर कॉन्ट्रैक्ट के सभी दायित्वों को पूरा करेंगे। चलिए, मार्जिन के कॉनसेप्ट को अच्छे से समझने के लिए हम यह उदाहरण लेंगे।

मानिए कि आप 1 CANBK JUL FUT कॉन्ट्रैक्ट खरीदना चाहते हैं। अभी यह कॉन्ट्रैक्ट ₹105 पर ट्रेड कर रहा है और इसका लॉट साइज़ 5000 है। तो इससे हमें पता चलता है कि यहाँ कुल कॉन्ट्रैक्ट वैल्यू ₹5,25,000 है। आपको 1 CANBK JUL FUT खरीदने के लिए पूरी की पूरी कॉन्ट्रैक्ट वैल्यू का एकबार में ही भुगतान करने की ज़रूरत नहीं है। आप यहाँ कुल कॉन्ट्रैक्ट वैल्यू का 34% भुगतान मार्जिन के रूप में कर सकते हैं, जो इस मामले में ₹1,80,000 है।  

तो, इसलिए आपको 1 CANBK JUL FUT खरीदने के लिए आपको अभी सिर्फ ₹1,80,000 देने है। मार्जिन राशि हर कॉन्ट्रैक्ट के लिए अलग-अलग होती है, जो एसेट की अस्थिरता और कीमत की चाल के आधार पर निर्धारित की जाती है। एक्सचेंज द्वारा चार्ज की गयी मार्जिन मनी को दो भागों में बांटा जा सकता है - स्पैन मार्जिन और एक्सपोज़र मार्जिन, जिनके बारे में हम आगे पढ़ेंगे।

 

7 - स्पैन (SPAN) मार्जिन

स्पैन का मतलब है स्टैंडर्डाइज़्ड पोर्टफोलियो एनालासिस ऑफ रिस्क। स्टॉक एक्सचेंज द्वारा नियोजित, यह एक प्रणाली है जो एल्गोरिदम द्वारा संचालित होती है और इसका उपयोग किसी कॉन्ट्रैक्ट के लिए मार्जिन का आकलन करने के लिए किया जाता है। स्पैन मार्जिन एक फ्यूचर कॉन्ट्रैक्ट में व्यापार करने के लिए आवश्यक न्यूनतम मार्जिन है।

8 - एक्सपोजर मार्जिन

एक्सपोज़र मार्जिन, वह अतिरिक्त मार्जिन है जो स्टॉक एक्सचेंज द्वारा स्पैन मार्जिन के अलावा मांगी जाती है। इस राशि का उपयोग किसी भी मार्क टू मार्केट (MTM) के नुकसान की भरपाई के लिए किया जाता है। हम अगले सेगमेंट में MTM के बारे में अच्छे से जानेंगे।

इसलिए, फ्यूचर कॉन्ट्रैक्ट करने के लिए, आपको स्पैन मार्जिन और एक्सपोज़र मार्जिन दोनों जमा करने होंगे।

9 - मार्क टू मार्केट (MTM)

मार्क टू मार्केट (MTM) एक कार्यप्रणाली है, जिसमें स्टॉक एक्सचेंज हर ट्रेडिंग डे के आखिर में आपकी ओपन पोज़ीशन के लिए मार्जिन की पुनर्गणना करता है। यह ट्रेडिंग डे के अंत में आपकी ओपन पोज़ीशन से आपको हुए मुनाफ़े या घाटे की भी गणना करता है। पुनर्गणना के लिए, स्टॉक एक्सचेंज हर ट्रेडिंग-डे पर शेयर की क्लोज़िंग वैल्यू का उपयोग करता है। MTM मुख्य रूप से स्टॉक एक्सचेंज द्वारा यह सुनिश्चित करने के लिए उपयोग किया जाता है कि आपके खाते में पर्याप्त मार्जिन फंड है और इस तरह से आपके द्वारा डिफ़ॉल्ट का जोखिम कम हो।

क्या आपको यह कुछ समझ में नहीं आया? तो चलिए, इन चीजों को स्पष्ट करने के लिए एक उदाहरण की मदद लेते हैं: 

फ्यूचर कॉन्ट्रैक्ट की जानकारी 

  • मानिए कि आप एक CANBK JUL FUT कॉन्ट्रैक्ट खरीदते हैं। कॉन्ट्रैक्ट का फ्यूचर प्राइस अभी वर्तमान में ₹100 प्रति शेयर है।
  • कॉन्ट्रैक्ट का लॉट साइज 5,000 शेयर का है।
  • कॉन्ट्रैक्ट वैल्यू: ₹5,00,000 (5000 शेयर x ₹100)
  • मार्जिन राशि: ₹1,75,000 (अनुमानित  मार्जिन- 35%)

अब, नीचे दिए गए टैबल पर एक नज़र डालें। यह आपको हर ट्रेडिंग-डे पर हुए मुनाफ़े या घाटे, कुल मुनाफ़े या घाटे और MTM घाटे की भरपाई के लिए आपके खाते में पर्याप्त राशि है या नहीं, इस सब की जानकारी देगा  

A

B

C

D

E

F

G

H

विवरण

वायदा मूल्य

 (₹)

लॉट साइज़

 (शेयरों की संख्या)

उस ट्रेडिंग डे पर मुनाफ़ा या घाटा (MTM) (₹)

अब तक का कुल मुनाफ़ा या घाटा (₹)

उपलब्ध मार्जिन मनी

(₹)

क्या अतिरिक्त मार्जिन की आवश्यकता है?

(हाँ, केवल तभी जब कुल घाटा, उपलब्ध मार्जिन से अधिक है)

ज़रूरी अतिरिक्त मार्जिन की राशि

 (E-F,  जहां भी लागू हो)

(₹)

T0 पर फ्यूचर की खरीद के समय

100

5000

शून्य, चूंकि आपने अभी फ्यूचर ख़रीदा है

शून्य, चूंकि आपने अभी फ्यूचर ख़रीदा है

1,75,000

नहीं, चूंकि आपने अभी फ्यूचर ख़रीदा है

-

T0 के अंत पर

80

5000

1,00,000 का घाटा

[(100-80) x 5,000 शेयर]

₹1,00,000 का घाटा

[(100-80) x 5,000 शेयर]

1,75,000

नहीं

-

T1 के अंत पर

70

5000

50,000 का घाटा

[(80-70) x 5,000 शेयर]

1,50,000 का घाटा

[(100-70) x 5,000 शेयर]

1,75,000

नहीं

-

T2 के अंत पर

60

5000

50,000 का घाटा

[(70-60) x 5,000 शेयर]

2,00,000 का घाटा

[(100-60) x 5,000 शेयर]

1,75,000

हाँ

25,000

आइए अब इस टेबल को समझें

  • फ्यूचर कॉन्ट्रैक्ट को ₹100 प्रति शेयर के हिसाब से खरीदते समय, आपने मार्जिन के रूप में ₹1,75,000 जमा करवाए।
  • ट्रेडिंग डे (T0) के अंत में, शेयर की कीमत ₹80 प्रति शेयर पर आ गई। ATM पद्धति के अनुसार, स्टॉक एक्सचेंज व्यापारिक दिन के अंत में मुनाफ़े या घाटे की गणना करता है। चूंकि शेयर की कीमत में ₹20 प्रति शेयर की गिरावट आई है तो, MTM का घाटा ₹1,00,000 होगा (₹20x 5,000 शेयर)।
  • अगले ट्रेडिंग डे (T1) के अंत में, कीमत और भी नीचे गिरकर ₹70 प्रति शेयर पर पहुँच जाती है। यहां, फिर से, आपको ₹10 प्रति शेयर का MTM घाटा होता है,  जो ₹50,000 होता है (₹10   x 5,000 शेयर)।
  • T1 के अंत में कुल घाटा- ₹1,50,000 [(₹100- ₹70) X 5,000 शेयर]।
  • अब, T2 के अंत में, मूल्य एक बार फिर से गिरकर ₹60 प्रति शेयर हो जाता है। इस दिन का MTM घाटा फिर से ₹50,000 (₹10 x 5,000 शेयर) होता है।
  • यह T2 के अंत में कुल घाटे को ₹2,00,000 पर ले आता है। [(₹100- ₹60) X 5,000 शेयर]।
  • T2 के अंत में यह घाटा आपके द्वारा जमा किए गए मार्जिन (₹1,75,000) से अधिक है। इसलिए, आपको दोनों के अंतर का भुगतान करने की आवश्यकता होगी। यह हम अगले खंड में देखेंगे।

10 - मार्जिन कॉल

ऊपर दिए गए टेबल पर अच्छी तरह से नज़र डालें। T2 के अंत में, आपको कुल MTM घाटा ₹2,00,000 का हुआ है, सही कहा? ये राशि कॉन्ट्रैक्ट करते समय आपके द्वारा जमा किए गए कुल मार्जिन (₹1,75,000) से ज्यादा है।

यह डिफ़ॉल्ट के जोखिम को बढ़ाता है क्योंकि जो प्राथमिक मार्जिन आपने जमा करी है वह अब आपके फ्यूचर कॉन्ट्रैक्ट के दायित्वों को कवर करने के लिए पर्याप्त नहीं है। ऐसे मामले में, स्टॉक एक्सचेंज मांग करता है कि आप डिफ़ॉल्ट के जोखिम को कम करने के लिए अतिरिक्त मार्जिन मनी (टेबल के अनुसार -₹25,000) जमा करें। अतिरिक्त मार्जिन की मांग को 'मार्जिन कॉल' कहा जाता है।

 आमतौर पर, अगर मार्जिन कॉल निर्धारित समय के भीतर पूरा नहीं की जाती, तो आपकी ओपन पोज़ीशन एक्सचेंज द्वारा अपने आप स्क्वेयर ऑफ कर दी जाती हैं। इसलिए, अपनी ओपन पोज़ीशन को बनाए रखने के लिए, आपको समय पर मार्जिन कॉल को जमा करना ज़रूरी होता है।

निष्कर्ष

तो अब जब आप फ्यूचर कॉन्ट्रैक्ट से संबंधित प्रमुख शब्द जानते हैं, तो आप शायद फ्यूचर ट्रेडिंग के बारे में और ज्यादा जानने के लिए उत्सुक होंगे। बस यही आप हमारे अगले अध्याय में पढ़ेंगे। फ्यूचर का उपयोग करके ट्रेडिंग करने का तरीका जानने के लिए पढ़ते रहें।

अब तक आपने पढ़ा

  • लॉट साइज़ किसी कॉन्ट्रैक्ट में शेयर या डेरिवेटिव्स (इंडेक्स के मामले में) की न्यूनतम संख्या है।
  • कॉन्ट्रैक्ट वैल्यू, फ्यूचर कॉन्ट्रैक्ट की वर्तमान कीमत को कॉन्ट्रैक्ट के लॉट साइज़ से गुणा करके मिली संख्या है। 
  • ऑप्शंस की तरह ही, हर फ्यूचर कॉन्ट्रैक्ट, हर महीने के आखिरी गुरुवार को ही एक्सपायर होता है। अगर अंतिम गुरुवार की छुट्टी होने की स्थिति में, कॉन्ट्रैक्ट पिछले कारोबारी दिन एक्सपायर हो जाएगा।
  • एक ख़रीदा (या बेेचा) गया फ्यूचर कॉन्ट्रैक्ट, जिसे स्क्वेयर ऑफ नहीं किया गया है या जिसकी एक्सपायरी अभी नहीं आई है, उसे ओपन कॉन्ट्रैक्ट कहते हैं।
  • बाजार में किसी वित्तीय संपत्ति के ओपन कॉन्ट्रैक्ट की कुल संख्या को ओपन इंटरेस्ट कहते हैं।
  • फ्यूचर कॉन्ट्रैक्ट में व्यापार करने के लिए आपको पूरी कॉन्ट्रैक्ट वैल्यू को एडवांस में या एक बार में ही देने की ज़रूरत नहीं होती है। आपको सिर्फ एक्सचेंज को कॉन्ट्रैक्ट वैल्यू का एक तय प्रतिशत जमा करवाना होता है। और जो राशि आप जमा करते है, उसे ही मार्जिन कहते हैं।
  • स्पैन का मतलब है स्टैंडर्डाइज़्ड पोर्टफोलियो एनालासिस ऑफ रिस्क।यह फ्यूचर कॉन्ट्रैक्ट में व्यापार करने के लिए आवश्यक न्यूनतम मार्जिन है।
  • एक्सपोज़र मार्जिन, वह अतिरिक्त मार्जिन है जो स्टॉक एक्सचेंज द्वारा स्पैन मार्जिन के अलावा मांगी जाती है। 
  • मार्क टू मार्केट (MTM) एक कार्यप्रणाली है, जिसमें स्टॉक एक्सचेंज हर ट्रेडिंग डे के आखिर में आपकी ओपन पोज़ीशन के लिए मार्जिन की पुनर्गणना करता है। यह ट्रेडिंग डे के अंत में आपकी ओपन पोज़ीशन से आपको हुए मुनाफ़े या घाटे की भी गणना करता है।
  • MTM मुख्य रूप से स्टॉक एक्सचेंज द्वारा यह सुनिश्चित करने के लिए उपयोग किया जाता है कि आपके खाते में पर्याप्त मार्जिन फंड हो और डिफ़ॉल्ट का जोखिम कम हो।
  • अतिरिक्त मार्जिन की मांग को 'मार्जिन कॉल' कहा जाता है।
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