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वॉल स्ट्रीट और अमेरिकन स्टॉक मार्केट
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अमेरिकी शेयरों में निवेश करते समय अन्य मैक्रो कारकों से अवगत होना
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पिछले पाठ में हमने बड़े पैमाने पर करेंसी मूवमेंट देखा और यह जाना कि वह कैसे हमारी इन्वेस्टमेंट पर प्रभाव डालती हैं। हालांकि केवल करेंसी मूवमेंट ही एक मैक्रो इकोनॉमिक फैक्टर नहीं है जिसे अमेरिकन स्टॉक मार्केट में इन्वेस्ट करते समय आप को ध्यान में रखना चाहिए। वहां पर काफी ऐसी चीजें हैं जिन्हें आपको ध्यान में रखना चाहिए।
और हम स्मार्ट मनी के अपने इस चैप्टर में इसके ही बारे में देखेंगे। यहां पर हम विस्तार से उन मैक्रो फैक्टर्स के बारे में जानेंगे जिन्हें अमेरिकन स्टॉक्स में निवेश करते समय हमें ध्यान में रखना चाहिए।
1. ग्रॉस डॉमेस्टिक प्रोडक्ट (GDP)
ग्रॉस डॉमेस्टिक प्रोडक्ट एक मेट्रिक है जो एक साल में किसी देश द्वारा बनाए एवं तैयार किए गए गुड्स और सर्विस की कीमत को नापता है। यह एक कि निर्देशक है जो आपको यह बताता है कि देश ने कैसा परफॉर्म किया। आदर्श से, किसी देश की जीडीपी या तो बढ़नी चाहिए या स्टेबल रहनी चाहिए।
जीडीपी की संख्या में गिरावट एक इकोनॉमी के लिए अच्छा नहीं है क्योंकि यह इकोनॉमी की गति धीमी होने सुझाव देता है । साल में एक बार जीडीपी के डाटा को रिलीज करने के अतिरिक्त कुछ देश जैसे यूएसए क्वार्टरली जीडीपी डाटा भी रिलीज करता है। और इसलिए अमेरिकन स्टॉक्स में इन्वेस्ट करने हेतु एक इच्छुक भारतीय इन्वेस्टर होते हुए आपको यूएसए की जीडीपी के नंबर पर भी सदैव नजर रखनी चाहिए क्योंकि यूएसए के पास मार्केट मूवमेंट को निर्देशित करने की क्षमता है।
2. इन्फ्लेशन (Consumer Price Index)
इन्फ्लेशन भी एक अन्य इंर्पोटेंट फैक्टर है जिसे अमेरिकन स्टॉक्स में इन्वेस्ट करते समय आप को ध्यान में रखना चाहिए। इन्फ्लेशन बेसिकली किसी देश के गुड्स ओर सर्विसेज की बढ़ती कीमतों तथा उसकी करेंसी के कमजोर हो जाने की तरफ इशारा करता है।
इन्फ्लेशन के फिगर में चढ़ाव आने का मतलब है कि देश की करेंसी कमजोर हो रही है और उसके गुड्स और सर्विसेज के प्राइस बढ़ रहे है।
अंततः यह इकोनामी पर एक अनुचित तनाव डालता है, जोकि स्टॉक मार्केट को गिरावट की तरफ ले जा सकता है। यूएस में इन्फ्लेशन को कोर कंज्यूमर प्राइस इंडेक्स (CPI) के द्वारा मापा जाता है। यहां दिए गए समय के लिए गुड्स और सर्विसेज के प्राइस में बदलाव को नापता है। कोर (सीपीआई) का डाटा यूएस गवर्नमेंट द्वारा क्वार्टरली और मंथली बेसिस पर रिलीज किया जाता है। अगर आप अमेरिकन स्टॉक्स में इन्वेस्ट करने के लिए इच्छुक हैं तो आपको निश्चित रूप से इन नंबरों पर नजर रखनी है।
3. इंटरेस्ट रेट
किसी देश का इंटरेस्ट रेट उसकी इकोनामी के बारे में बहुत कुछ बताता है। उदाहरण के लिए यदि किसी देश का इंटरेस्ट रेट हाई है तो वह बौरोइंग(borrowing) को महंगा बनाता है। और जब बौरोइंग महंगी होती है तो यह कंपनियों के प्रॉफिट मार्जिन को उसके स्टॉक्स के साथ में सवारी के लिए नीचे ले जाता है। दूसरी तरफ जब इंटरेस्ट रेट कम होते हैं तो यह बौरोइंग को आसान बनाता है और कंपनियों के प्रॉफिट मार्जिन के तनाव को दूर करता है यह सामान्यता स्टॉक प्राइस को बढ़ोतरी की ओर ले जाता है।
यूएस में फेडरल रिजर्व जो कि देश का सेंट्रल बैंक है इंटरेस्ट रेट को संभालने का काम भी करता है फेडरल रिजर्व प्रत्येक क्वार्टर से एक बार मिलता है और किस प्रकार की मॉनेटरी पॉलिसी और इंटरेस्ट रेट बनाए जाए यह निर्णय करता है। इसलिए अमेरिकन स्टॉक्स में इन्वेस्ट करने से पहले यह जानना जरूरी है कि फेडरल रिजर्व किस प्रकार के बदलाव लाने वाला है, क्योंकि यह शॉर्ट टर्म में मार्केट को प्रभावित कर सकता है।
4. अनइंप्लॉयमेंट नंबर
यूएस में लेबर स्टैटिक्स का ब्यूरो अनइंप्लॉयमेंट की सिचुएशन को लगातार देखता है और हर महीने अनइंप्लॉयमेंट रेट रिलीज करता है । इन नंबरों पर एक नजर डालना आपको देश की इकोनॉमी की जॉब एंप्लॉयमेंट व्यवस्था पर एक मोटा विचार देने के लिए पर्याप्त है।
लो अनइंप्लॉयमेंट नंबर और हाई जॉब डाटा मुख्य तौर पर यह बताते हैं की इकोनॉमी भली प्रकार काम कर रही है और एक पॉजिटिव आउटलुक दे रही है। जहां हाई अनइंप्लॉयमेंट नंबर और लो जॉब डाटा यह बताता है कि कंपनी नकारात्मकता की तरफ बढ़ रही है। जब से अमेरिकन स्टॉक मार्केट जॉब डाटा के अनुसार रिएक्ट करती है यह भी एक अन्य बड़ा फैक्टर है जिसके बारे में आपको इन्वेस्ट करते समय जानना चाहिए।
5. इंडस्ट्रियल आउटपुट
यूएस कुछ बड़े उद्योगों का घर है जो विश्व के इंडस्ट्रियल आउटपुट में काफी योगदान करता है। और इसलिए प्रत्येक माह फेडरल बैंक इंडस्ट्रियल प्रोडक्शन आउटपुट रिलीज करता है जो कि देश की इकनोमिक हेल्थ के लिए एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
देश के विभिन्न इंडस्ट्रियो के कुल आउटपुट को प्रदान करने के साथ यह आपको कुल कैपिसिटी यूटिलाइजेशन की इनसाइट (अंतर्दृष्टि) भी प्रदान करता है। अगर इंडस्ट्रियल आउटपुट और कैपेसिटी यूटिलाइजेशन कम होगा तो, इकोनामी नकारात्मक आउटलुक के अंतर्गत मानी जाएगी। दूसरी तरफ यदि इंडस्ट्रियल आउटपुट इसकी कैपेसिटी के आस पास होगा तो कदाचित यह इकोनामी के अच्छे प्रदर्शन की ओर संकेत करेगा।
6. रिटेल सेल्स नंबर
यूएस दुनिया भर की सबसे बड़ी कंज्यूमर मार्केट में से एक है। यह भी एक कारण है कि सेंसस (census) का ब्यूरो हर महीने देश की रिटेल सेल्स के मन्थली डाटा को लेकर आता है। इस डाटा में कंज्यूमर ड्यूरेबल और नॉनड्यूरेबल गुड्स और सर्विसेज की रिटेल सेल्स शामिल है। रिटेल सेल्स डाटा बहुत अच्छा मेट्रिक है जिसे एक्सपर्ट्स देश की कंज्यूमर डिमांड नापने के लिए इस्तेमाल करते हैं।
हाई रिटेल सेल्स नंबर यह बताते हैं कि कंज्यूमर डिमांड हाई है जो अचानक स्टॉक प्राइजेस में वृद्धि लाती है। इसी प्रकार यदि रिटेल सेल्स नंबर पिछड़े हुए पाए जाते हैं तो यह कंज्यूमर डिमांड स्लो होने की तरफ इशारा करता है। जो स्टॉक मार्केट के लिए अच्छा नहीं है।
रैपिंग अप
और आखिर तुमने यह पा लिया। ऊपर दिए गए छह माइक्रो फैक्टर यूएस स्टॉक मार्केट के मूवमेंट में एक बड़ा रोल निभाते हैं। और इसलिए इन्हे इन्वेस्टर्स द्वारा गहरी नजरो से देखा जाना चाहिए। अब अगले चैप्टर में हम यूएस की टेक्निकल इंडस्ट्री और उसके टॉप कॉन्टिनेंट्स को देखेंगे।
अ क्विक रीकैप
- अमेरिकन स्टॉक्स में इन्वेस्ट करने के पहले आपको कुछ मेट्रो फैक्टर जैसे जीडीपी ,इन्फ्लेशन ,इंटरेस्ट रेट ,अनइंप्लॉयमेंट नंबर, इंडस्ट्रियल आउटपुट और रिटेल सेल्स नंबर को ध्यान में रखने की आवश्यकता है।
- ग्रॉस डॉमेस्टिक प्रोडक्ट (जीडीपी) एक ऐसा मैट्रिक है जो किसी भी देश के साल भर में बनाए जाने वाले सभी गुड्स और सर्विसेज की कुल कीमत को नापता है।
- इन्फ्लेशन गुड्स और सर्विसेज की कीमतों के बढ़ने तथा देश की करेंसी के कमजोर होने की तरफ इशारा करता है।
- यदि किसी देश का इंटरेस्ट रेट हाई है तो वह बौरोइंग(borrowing) को महंगा बनाता है। और जब बौरोइंग महंगी होती है तो यह कंपनियों के प्रॉफिट मार्जिन को उसके स्टॉक्स के साथ में सवारी के लिए नीचे ले जाता है।
- दूसरी तरफ जब इंटरेस्ट रेट कम होते हैं तो यह बौरोइंग को आसान बनाता है और कंपनियों के प्रॉफिट मार्जिन के तनाव को दूर करता है यह सामान्यता स्टॉक प्राइस को बढ़ोतरी की ओर ले जाता है।
- अनइंप्लॉयमेंट नंबर और जॉब डाटा भी स्टॉक प्राइसेज पर प्रभाव डालते हैं।
- यूएस कुछ बड़े उद्योगों का घर है जो विश्व के इंडस्ट्रियल आउटपुट में काफी योगदान करता है। और इसलिए प्रत्येक माह फेडरल बैंक इंडस्ट्रियल प्रोडक्शन आउटपुट रिलीज करता है जो कि देश की इकनोमिक हेल्थ के लिए एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
- इंडस्ट्रियल आउटपुट एक अन्य ऐसा मैक्रो फैक्टर है जो ध्यान में रखने योग्य है।
- अगर इंडस्ट्रियल आउटपुट और कैपेसिटी यूटिलाइजेशन कम होगा तो, इकोनामी नकारात्मक आउटलुक के अंतर्गत मानी जाएगी। दूसरी तरफ यदि इंडस्ट्रियल आउटपुट इसकी कैपेसिटी के आस पास होगा तो कदाचित यह इकोनामी के अच्छे प्रदर्शन की ओर संकेत करेगा।
- रिटेल सेल्स डाटा एक बहुत अच्छा मेट्रिक है जिसे एक्सपर्ट्स देश की कंज्यूमर डिमांड नापने के लिए इस्तेमाल करते हैं।
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