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पेअर ट्रेडिंग

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पेअर ट्रेडिंग जारगन और टर्म्स

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पेअर ट्रेडिंग एक स्ट्रेटेजी है जिसके लिए कुछ हद्द तक मार्किट एक्सपेर्टीज़ की ज़रुरत पड़ती है । पेअर ट्रेडिंग के प्रैक्टिकल आस्पेक्ट्स पर ग्रिप बनाना ज़रूरी है।  और साथ ही उसकी इन्वोल्वड थ्योरी को समझना।  । और पेअर ट्रेडिंग के पीछे के ऐकडेमिक और स्टैटिस्टिकल आइडियाज को समझने के लिए पहला स्टेप जारगन को डिकोड करना है जिसने इस कांसेप्ट को घेरा हुआ है। 

और इसलिए ये चैप्टर यहाँ आता है।   पेअर ट्रेडिंग करने करने की जानकारी लेने से पहले , आपको इससे जुड़े कुछ के टर्म्स को समझना होगा।  कुछ वर्ड्स और फ्रेज़ेस को देखते हैं।

कोरिलेशन

पिछले चैप्टर से पेअर ट्रेडिंग की डेफिनिशन याद करें? यह सब कोरिलेटेड स्टॉक पिक करने के बारे में है, है ना? लेकिन फिर भी यह कोरिलेशन क्या है ?

मैथेमैटिकली (या स्टटिस्टिकली) बात करें, कोरिलेशन वह कांसेप्ट है जो आपको यह बताता है की दो दिए गए वेरिएबल कितने रिलेटेड है।  यह कोरिलेशन कोफ़िशिएंट को यूज़ करके मीज़र या एक्सप्रेस किया जाता है।  कोरिलेशन कोफ़िशिएंट -1 से लेकर +1  तक वैरी करता है।  आप सोच रहे होंगे की ये प्लस और माइनस सिग्न क्या हैं? कोरिलेशन कोफ़िशिएंट के सिग्नीफिकेन्स को समझने के लिए इसे दो कंपोनेंट्स में ब्रेकडाउन करते हैं।

  • सिंबल आपको मूवमेंट की डायरेक्शन बताता ह।  पॉजिटिव स्य्म्बोला का मतलब है की दोनों वेरिएबल एक ही डायरेक्शन में मूव कर रहे हैं , जबकि नेगेटिव सिंबल का मतलब है की वह टीपिकली अलग डायरेक्शन में मूव कर रहे हैं।  
  • सिंबल से जुड़े नंबर्स आपको कोरिलेशन की स्ट्रेंथ बताते हैं।  ।  0.90 का कोरिलेशन कोफ़िशिएंट, उदाहरण के लिए, 0.60 के कोरिलेशन कोफ़िशिएंट से ज़्यादा स्ट्रांग होता है।  

तो, कोरिलेशन कोफ़िशिएंट का जीरो क्या सज्जैस्ट करता है ? वेल, इसका मतलब यह है की दोनों वेरिएबल्स के बीच जीरो कोरिलेशन है।  

इससे जारगन का स्टैटिस्टिकल और कॉन्सेप्चुअल पार्ट क्लियर होता है।  अब, हम कोरिलेशन के कांसेप्ट को स्टॉक प्राइसेस में अप्लाई करके यह समझेंगे की कैसे इसे अप्लाई किया जाए । पिछले चैप्टर में ली गयी दो कम्पनीज को फिरसे देखते हैं - टी सी इस  और इनफ़ोसिस।  उनका कोरिलेशन कोफ़िशिएंट +0.94 मान लेते हैं। यहाँ इसका यह मतलब है।

  • बाकी सब चीज़ें कांस्टेंट रहेंगी , अगर टी सी इस के शेयर्स के प्राइस मान लीजिये 1.2% ऊपर जाते हैं, इसका मतलब इनफ़ोसिस के शेयर्स के प्राइस भी बढ़ जाएंगे।    
  • ऐसा इसलिए क्युकी दोनों स्टॉक्स का कोरिलेशन पॉजिटिव है - साथ ही हाई कोरिलेशन कोफ़िशिएंट भी। 
  • मगर, आप ये प्रेडिक्ट नहीं कर सकते की इनफ़ोसिस के शेयर किस एक्सटेंट तक राइज करेंगे।

और, कोरिलेशन के बारे में एक और बात। अपने आप में , यह शायद एक प्योरली स्टैटिस्टिकल कांसेप्ट है।  हालाँकि, अगर आप कोरिलेशन का यूज़ करके पेअर ट्रेडिंग ऑप्पोचुनिटीज़ को ऑयडेंटीफाई करना चाहते हैं, तो आपको पोटेंशिअली हाई कोरिलेशन कोफ़िशिएंट के पीछे लॉजिकल रिसंस को देखना होगा।  इसका मतलब यह है की, क्युकी दो स्टॉक्स हाई लेवल ऑफ़ कोरिलेशन एक्सहिबिट करते है, इसका मतलब यह नहीं है की वह पेअर ट्रेडिंग के लिए अच्छे कैंडिडेट्स हैं।  न्यूमेरिकल कोरिलेशन से ऊपर, दो स्टॉक्स के बीच के लिंक के लिए कुछ लॉजिकल और इन्टुइटीव रीज़न होना चाहिए।  

इस आईडिया को बेहतर ढंग से समझाने के लिए यहां कुछ उदाहरण हैं।

  • जैसा कि हमने पहले देखा था, अगर टीसीएस और इंफोसिस के शेयर 0.94 का कोरिलेशन कोफ़िशिएंट दिखाते हैं, तो वे पेअर ट्रेडिंग के लिए शायद अच्छे उम्मीदवार बन सकते हैं।
  • दूसरी ओर, दो अन्य स्टॉक्स को लेते हैं - हिंदुस्तान यूनिलीवर और एचडीएफसी बैंक। अब, इन शेयरों का कोरिलेशन कोफ़िशिएंट  +0.82 मानते है। अब, यह एक रीज़नबली हाई  कोरिलेशन कोफ़िशिएंट है । लेकिन क्या यह हिंदुस्तान यूनिलीवर और एचडीएफसी बैंक के शेयरों को पेअर ट्रेडिंग के लिए आइडियल बनाता है ? 

नहीं। क्योंकि एचडीएफसी बैंक बैंकिंग सेक्टर से रिलेटिड है, जबकि हिंदुस्तान यूनिलीवर एक एफएमसीजी कंपनी है, और दोनों एन्टीटीस में कोई लॉजिकल और इन्टुइटीव कनेक्शन नहीं है।   

डिफरेंशियल

अब आप जानते हैं कि कोरिलेशन क्या है। लेकिन आप दो शेयरों के बीच कोरिलेशन कैसे एस्टेब्लिश कर सकते हैं ? ऐसा करने के लिए, हमारे पास डिफरेंट फैक्टर्स होते हैं जिन्हे ट्रेडर्स और एनालिस्ट्स कंसीडर करते हैं।  उनमे से एक है डिफरेंशियल । 

यह एसेंशियली कन्सिडरेशन में लिए गए दो स्टॉक्स के क्लोजिंग  प्राइसेस का डिफरेंस होता है।  यह है डिफरेंशियल का फार्मूला। 

डिफरेंशियल = स्टॉक ए का क्लोजिंग प्राइस - स्टॉक बी का क्लोजिंग प्राइस (या इसके विपरीत)

चलिए , कुछ समय के लिए टी सी एस और इनफ़ोसिस के शेयर्स के क्लोजिंग प्राइस को लेते हैं और समझते है कि डिफरेंशियल कैसे कैलकुलेट करें

स्प्रेड

अब, स्प्रेड एक और मेट्रिक है जिससे हम दो स्टॉक्स के बीच कोरिलेशन फिगर आउट कर सकते हैं।   स्प्रेड को कैलकुलेट करने के लिए, आप जिस पीरियड को कंसीडर कर रहे हो उसके हर एक स्टॉक के प्रीवियस डे प्राइस और प्रेजेंट डे प्राइस का डिफरेंस आपको सबसे पहले कैलकुलेट करना होगा । इससे आपको डे तो डे बेसिस पर हर एक स्टॉक के क्लोजिंग प्राइस में चेंज का पता चलेगा। 

फिर, आपको दो स्टॉक्स के क्लोजिंग प्राइस के डेली चैंजेस के बीच के डिफरेंस को कंप्यूट करना होगा। 

यह फार्मूला आपको और क्लैरिटी देगा 

स्प्रेड = स्टॉक A  के क्लोजिंग प्राइस में डेली चेंज - स्टॉक B  के क्लोजिंग प्राइस में डेली चेंज  (या इसके विपरीत)

चलिए ऊपर कंसीडर किये हुए टी सी इस और इनफ़ोसिस शेयर की सेम पीरियड के क्लोजिंग प्राइस को लेते हैं और स्प्रेड कैसे कैलकुलेट करना है वो समझते हैं।

प्राइस रेश्यो 

यह बिलकुल  स्ट्रेटफॉरवर्ड है।  यह स्टॉक A  के क्लोजिंग प्राइस और स्टॉक B के क्लोजिंग प्राइस के रेश्यो से कैलकुलेट होता है। 

नीचे दिए गए फार्मूला को चेक करें।

प्राइस रेश्यो = स्टॉक A  का क्लोजिंग प्राइस ÷ स्टॉक B  का क्लोजिंग प्राइस  

और अब , आपको पता है की क्या करना है।  चलिए ऊपर कंसीडर किये  गए सेम पीरियड में टी सी एस और इनफ़ोसिस के क्लोजिंग प्राइसेस को लेते हैं और प्राइस रेश्यो चेक करते हैं।

तो, आपने तीन वेरिएबल्स देखे जो जेनेरली दो स्टॉक्स के बीच रिलेशनशिप या कोरिलेशन आइडेंटिफाई  करते हैं।  उनको लाइन ग्राफ में प्लाट करते हैं और देखते हैं क्या मिलता है।  

डिफरेंशियल  ग्राफ:

स्प्रेड ग्राफ:

प्राइस रेश्यो ग्राफ:

डिवेर्जेंस

वेरिएबल्स का मूवमेंट आपको यह इनसाइट्स देता है की स्टॉक प्राइस कैसे बिहेव कर रहे हैं । उदाहरण के लिए, प्राइस रेश्यो लीजिये।  रेश्यो दिए गए किसी भी केसेस में इनक्रीस हो सकता है ।

  • अगर स्टॉक A के प्राइस इनक्रीस होते हैं , मगर स्टॉक B  के प्राइस लगभग कांस्टेंट रहते हैं 
  • अगर स्टॉक B  के प्राइस एकदम से नीचे आते हैं , मगर स्टॉक A के प्राइस लगभग कांस्टेंट रहते हैं

यहाँ , हम मान  रहे हैं की हम रेश्यो कैलकुलेट कर रहे हैं जिसमे स्टॉक A  के प्राइस नुमेरटर में हैं और स्टॉक बी के प्राइस डिनोमिनेटर में।  

जैसा की आपने गेस किया होगा , ऊपर डिस्क्राइब किये हुए दोनों केसिस में, दोनों स्टॉक्स के बीच का कोरिलेटिव बिहेवियर टेम्पोररीली वीक हुआ क्युकी दोनों अलग मूव कर रहे हैं।  और तब डिवेर्जेंस होता है , जिससे दोनों स्टॉक्स के बीच स्प्रेड इनक्रीस होता है और is प्रकार  रेश्यो भी इनक्रीस होता है।  ऐसे पॉइंट्स में ग्राफ टिप्पीकली ऊपर जाता है , जिससे ट्रेडर्स को यह इंडिकेशन मिलती है की डिवेर्जेंस हो रहा है।

डिवेर्जेंस  ट्रेड

जब दो कोरिलेटेड स्टॉक्स के प्राइसेस में डिवेर्जेंस देखने को मिलता है तब डिवेर्जेंस ट्रेड शुरू होता है ।

कन्वर्जेन्स

कन्वर्जेन्स,  एविडेंटली, डिवेर्जेंस का ओप्पोसिट होता है।  रेश्यो को फिरसे lete  हैं , और ये देखते हैं की यह कन्वर्जेन्स मे कैसे रियेक्ट करता है। टिपिकली, इन पॉसिबल रिसंस की वजह से रेश्यो डिक्रीस होता है:

  • स्टॉक A  का प्राइस डिक्रीस होता हैं , जबकि स्टॉक B  के प्राइस इनक्रीस या कांस्टेंट रहता है   
  • स्टॉक B  का प्राइस  इनक्रीस होता है, जबकि स्टॉक A  का  प्राइस  डिक्रीस या कांस्टेंट रहता है  

फिर से, यहाँ, हम यहाँ अस्यूम कर रहे हैं की  हम रेश्यो कैलकुलेट कर रहे हैं जिसमे स्टॉक A  के प्राइस नुमेरेटर पर हैं और स्टॉक B के प्राइस डिनोमिनेटर पर।  

ऊपर डिस्क्राइब किये गए दो केसिस में, दो स्टॉक्स के बीच का कोरिलेटिव बेहवीयर टेम्पररी वीक हो जाता है क्यंकि वह पास आते हैं।   तब कन्वर्जेन्स होता है, जिसकी वजह से दो स्टॉक्स के बीच स्प्रेड कम होने लगता है,  और इसलिए रेश्यो डिक्रीस होता है।  ऐसे पॉइंट्स में ग्राफ टिपिकली  नीचे जाता है, जिससे ट्रेडर्स को यह पता चलता है की कन्वर्जेन्स हो रहा है । 

कन्वर्जेंस ट्रेड

कन्वर्जेन्स ट्रेड तब इनिशिएट होता है जब दो कोरिलेटेड स्टॉक्स के बीच कन्वर्जेन्स दिखता है।  

अंत में

इससे कुछ जारगनस के बारे में  आपको समझ आ गया होगा जो आमतौर पर आप पेअर ट्रेडिंग को डिसकस करते हैं - पर्टिक्यूलरली कोरिलेशन मेथड । अब जब ये हो गया है, तो समय है कुछ हाई स्कूल मैथ को रिविसिट करने का और एसेंशियल स्टैटिस्टिकल टूल्स क़े रिकैप करने का।  रेडी ? और जान्ने के लिए अगले चैप्टर की तरफ बढिये । 

एक क्विक रिकैप

  • कोरिलेशन आपको यह बताता है की दो दिए गए वेरिएबल्स कितने क्लोसेली रिलेटेड हैं , अगर वोह होते है तो । 
  • यह कोरिलेशन कोफ़िशिएंट को यूज़ करके मेशर और एक्सप्रेस किये जाते हैं । कोरिलेशन कोफ़िशिएंट की रेंज -1 से + 1 तक होती है। 
  • क्युकी दो स्टॉक्स हाई लेवल ऑफ़ कोरिलेशन एक्सहिबिट करते हैं ,  इसका मतलब यह नहीं है की वह पेअर ट्रेडिंग के लिए अच्छे कैंडिडेट हो। न्यूमेरिकल कोरिलेशन से आगे, दो स्टॉक्स के बीच कुस्ज लॉजिकल और इन्टुइटीव रीज़न होना चाहिए।  
  • कंसीडर किये गए स्टॉक्स के क्लोजिंग प्राइस के डिफरेंस को डिफरेंशियल कहते हैं ।  
  • दो स्टॉक्स के क्लोजिंग प्राइस में डेली चेंज के डिफरेंस को स्प्रेड कहते हैं।  
  • स्टॉक A  के क्लोजिंग प्राइस और स्टॉक B  के क्लोजिंग प्राइस के रेश्यो से प्राइस रेश्यो कैलकुलेट होता है।  
  • डिवेर्जेंस तब होता है जब दो स्टॉक्स के बीच कोरिलेटिव बिहेवियर टेम्पोररीली वीक होने लगता है क्यूंकि दोनों दूर होने लगते हैं।
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