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डेब्ट और सिक्योरिटीज
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डेब्ट फंड्स की कीकैरेक्टरस्टिक्स को समझना
4.2
12 मिनट पढ़े


अभी तक आपने देखा कि कैसे कई गवर्नमेंट और कॉरपोरेट डेब्ट इंस्ट्रूमेंट एक स्टैंडअलोन बेसिस पर काम करते हैं हालांकि किसी इन्वेस्टर के लिए यह दोनों अपने अलग तरह के एडवांटेजेस के साथ आते हैं, किसी रिटेल इन्वेस्टर के लिए यह थोड़ा सा डिफिकल्ट साबित होता है कि वह जी सेक के ऑक्शन प्रोसेस को ट्रैक कर सके या कॉरपोरेट बॉन्ड इश्यूज पर नजर रख सकें. अगर आप डेब्ट मार्केट में नए इन्वेस्टर हैं तो सही डेब्ट इंस्ट्रूमेंट को चुनना थोड़ा कठिन हो सकता है.
डेब्ट फंड कहां सबसे ज्यादा यूज़फुल साबित होते हैं यहां दिया गया है
डेब्ट फंड्स क्या है?
डेब्ट फंड्स डेब्ट मार्केट में प्राइमेरिली इन्वेस्ट करने वाले म्यूच्यूअल फंड है. जनरली यह ये डेब्ट इन्वेस्टर के फंड को डेब्ट और फिक्स्ड इनकम सिक्योरिटीज जैसे कि गवर्नमेंट सिक्योरिटीज टी बिल्स कॉरपोरेट बॉन्ड और कई और डेब्ट सिक्योरिटीज और मनी मार्केट इंस्ट्रूमेंट्स में लगाते हैं
डेब्ट फंड्स प्रोफेशनल फंड मैनेजर द्वारा मैनेज किए जाते हैं जो डेब्ट इंस्ट्रूमेंट्स के इन्वेस्टमेंट और सेलिंग के लिए डिसीजन लेते हैं किसी एसेट की क्रेडिट रेटिंग उन की फैक्टर्स में से एक है जिन्हें फंड मैनेजर,किसी डेट इंस्ट्रूमेंट में इन्वेस्ट करने का डिसीजन लेते समय, ध्यान में रखते हैं
फंड्स की क्रेडिट रेटिंग्स
चलिए दो डिफरेंट डेब्ट सिक्योरिटीज पर नज़र डालते है :
- मैनेजमेंट सर्विसेज कम्पनी द्वारा इशू किया गया एक बांड ७% वार्षिक ब्याज ऑफर कर रहा है
- सरकार द्वारा इशू किया गया एक बांड ७% वार्षिक ब्याज ऑफर कर रहा है
इन दोनों बांड्स में किसे आप इन्वेस्ट करने के लिए चुनेंगे ?
ऑब्वियस चुनाव दूसरे ऑप्शन का होगा , क्यूंकि यह बांड सर्कार की सॉवरेन गारेन्टी के साथ आता है
अब चीजों को थोड़ा और बदलते हैं , इन दो सिक्योरिटीज को लेते हैं :
- एक 30 वर्ष पुरानी, प्रॉफिटेबल और एस्टैब्लिशड कंपनी द्वारा इशू किया गया एक बांड ७% वार्षिक ब्याज ऑफर कर रहा है
- एक 3 वर्ष पुरानी, नई कंपनी द्वारा इशू किया गया एक बांड ७% वार्षिक ब्याज ऑफर कर रहा है
यहां किसे आप इन्वेस्ट करने के लिए चुनेंगे? हम ऑप्शन १ का अनुमान लगा रहे हैं क्यूंकि इस कम्पनी का ट्रैक रिकॉर्ड दूसरी वाली से ज्यादा अच्छा है हैं ना ?
तो इससे ये पता चलता है की हर प्रकार की डेब्ट सिक्योरिटी अपने प्रकार का डिफ़ॉल्ट रिस्क लेकर आती है ऊपर के एग्जाम्पल से रिस्क ऑफ़ डिफ़ॉल्ट इस प्रकार है
- गवर्नमेंट सिक्योरिटी सबसे सुरक्षित ऑप्शन के रूप में बाहर आते हैं
- उन कम्पनीज के जरिए इशू किए गए कॉरपोरेट बॉन्ड जिनका परफॉरमेंस अल्ट्रा रिकॉर्ड बिना किसी गड़बड़ी का होता है उन्हें रिस्क ऑफ डिफॉल्ट नेगलिजिबल होता है
- नई कंपनियों के द्वारा शुरू किए गए कॉरपोरेट बॉन्ड जिनका रिकॉर्ड अच्छा होता है उनमें रिस्क ऑफ डिपाजिट बहुत ही लो होता है
- खराब फाइनेंसियल रिकॉर्ड वाली कंपनियों द्वारा शुरू किए गए बॉन्ड मीडियम से हाई डिफॉल्टर डिफॉल्टर रिस्क में आते हैं
इन्वेस्टर्स की हेल्प करने के लिए फंड मैनेजर स्मार्ट डिसीजन लेते हैं डेट मार्केट में इन्वेस्टमेंट के लिए क्रेडिट रेटिंग कंपनी CRISIL, CARE, FITCH और ICRA डेब्ट सिक्योरिटीज को रेटिंग इशू करती हैं. इन क्रेडिट रेटिंग को पॉइंट ऑफ रिफरेन्स की तरह यूज करके डेब्ट मैनेजर डेब्ट इंस्ट्रूमेंट में इन्वेस्टमेंट के डिसीजन लेते हैं तो अगर अपने आप अलग-अलग डेट इंस्ट्रूमेंट्स में इन्वेस्टमेंट के लिए स्योर नहीं है और तो डेब्ट फण्ड एक अच्छा अल्टरनेटिव साबित हो सकता है क्योंकि एक्सपोर्ट मौजूदा ऑप्शंस में से, डेब्ट फंड के पोर्टफोलियो को बनाने के लिए,सही इंस्ट्रूमेंट को चुनते हैं.
डेब्ट फंड्स को और ज्यादा समझने के लिए चलिए इन म्यूच्यूअल फंड्स के प्राइमरी फीचर्स को और अच्छे से समझते हैं
डेब्ट फंड्स की मुख्य विशेषताएं
डेब्ट फंड्स की मुख्य विशेषताएं समझकर आपके लिए यह समझना आसान हो जाएगा कि इन फंड में इन्वेस्ट करने पर यह आपके इन्वेस्टमेंट पोर्टफोलियो और गोल्स को कैसे प्रभावित करेंगे।.
1. लो रिस्क
किसी एक मुख्य विशेषता की बात की जाए तो लो अमाउंट ऑफ इन्वेस्टमेंट ट्रस्ट डेब्ट फंड की एक विशेषता है यह प्राथमिक इसलिए भी है क्योंकि डेब्ट म्युचुअल फंड्स डेब्ट इंस्ट्रूमेंट्स में इन्वेस्ट करते हैं जैसे कि कॉरपोरेट बॉन्ड गवर्नमेंट सिक्योरिटीज डिवेंचर और कई मनी मार्केट इंस्ट्रूमेंट्स और इशू करने वाली एनटिटी के आधार पर डेब्ट इंस्ट्रूमेंट के डिफॉल्ट होने के चांसेस लगभग जीरो हो जाते हैं
इक्विटी फंड्स की तरह डेब्ट म्युचुअल फंड्स में मार्केट चेंज के अलावा उनकी वैल्यू में कोई सिग्निफिकेंट चेंज नहीं होता है यह उन्हें उनके इक्विटी काउंटरपार्ट से कहीं ज्यादा स्थिर बनाता है और परिणाम स्वरूप यह कम रिस्की साबित होते हैं
वास्तव में एक मेरिट जो डेब्ट फंड्स पर इंपैक्ट डालती है वह है अर्थव्यवस्था की मौजूदा ब्याज दर हालांकि इंटरेस्ट रेट समय-समय पर चेंज होती रहती है फिर भी इक्विटी मार्केट के मूवमेंट की तरह यह फ्लकचुएशंस बहुत ज्यादा नहीं होते
2. कैपिटल प्रेजर्वेशन
किसी स्टॉक की वैल्यू अंततः डिमांड और सप्लाई पर के द्वारा निर्धारित होती है और इसलिए किसी भी स्टॉक के ऊपर जाने का पोटेंशियल सिर्फ उस स्टॉक की डिमांड पर डिपेंड करता है. वर्चुअली बात करें तो किसी स्टॉक के डिमांड एंडलेस होती है हालांकि डेब्ट फंड्स के लिए ऐसा नहीं है क्योंकि यह फंड्स फिक्स्ड इनकम सिक्योरिटीज में इन्वेस्ट करते हैं इसलिए कैपिटल बढ़ाकर पैसा बनाने का स्कोप बहुत कम होता बजाय इसके डेब्ट इंस्ट्रूमेंट कैपिटल प्रिजर्वेशन में कमाल काम करते हैं ऐसा इक्विटी के लिए नहीं कहा जा सकता क्योंकि वहां गेंस की तरह लॉसेज भी लिमिटलेस हो सकते हैं.
जब आप डेट फंड्स में इन्वेस्ट करते हैं तो आपको एक स्थिर और फिक्स्ड रेट ऑफ इंटरेस्ट पूरे समय अंतराल के दौरान मिलता है इसके साथ साथ जितना पैसा आपने इन्वेस्ट किया होता है वह भी आपको मैच्योरिटी के बाद दे दिया जाता है आप रेगुलर मिले हुए इंटरेस्ट को दोबारा फंड्स में री इन्वेस्ट कर सकते हैं इससे आने वाले सालों में आपका इंटरेस्ट बढ़ जाएगा और साथ ही साथ आपका मैच्योरिटी पेआउट भी बढ़ेगा
इसे एक ऐसी फिक्स डिपाजिट की तरह समझिए जहां इंटरेस्ट को एफडी में वापस इन्वेस्ट कर दिया जाता है जब आप ऐसा करते हैं एक छोटे से मार्जिन से आप कैपिटल एप्रिसिएशन की पॉसिबिलिटी को बढ़ा देते हैं
3. लिमिटेड ड्यूरेशन
क्योंकि डेब्ट फण्ड फिक्स्ड इनकम सिक्योरिटीज में इन्वेस्ट करते हैं इसलिए होल्डिंग पीरियड लिमिटेड होता है यह फंड के टाइप के हिसाब से बदलता रहता है आने वाले चैप्टर में हम फण्ड के विभिन्न प्रकारों के बारे में गहराई से अध्ययन करेंगे लेकिन अभी के लिए यह समझिए कि कोई भी इन्वेस्टर डेब्ट म्यूचुअल फंड स्कोर हमेशा के लिए होल्ड करके नहीं रख सकता जैसा कि इक्विटी म्यूचुअल फंड में होता है
ऐसा इसलिए है क्योंकि क्योंकि बॉन्ड और दूसरे डेब्ट इंस्ट्रूमेंट जैसे कि बैंकों की एफडी एक पहले से डिसाइडेड मेच्योरिटी डेट के साथ आते हैं पिछले चैप्टर में किए गए डिस्कशन से आप इसे याद कर सकते हो फण्ड की मैच्योरिटी के वक्त आपको आपका सारा इन्वेस्टमेंट मूलधन के साथ उस समय के इंटरेस्ट के साथ मिल जाता है अगर कोई होता है
तो यहां पर एक एग्जांपल है जो आपको इस कांसेप्ट को समझने में अच्छी मदद करेगा मान लीजिए एक डेब्ट फंड है जिसकी मैच्योरिटी 110 दिन है क्योंकि होल्डिंग पीरियड लिमिटेड है जो कि 110 दिन है आप इस फंड को सिर्फ उस समय के लिए होल्ड कर सकते हैं डेब्ट फंड की मैच्योरिटी के बाद आपको आपका इनिशियल इन्वेस्टमेंट इंटरेस्ट के साथ मिल जाएगा
4. क्रेडिट रेटिंग्स
इस चैप्टर में क्रेडिट रेटिंग पर पहले किए हुए डिस्कशन को याद करिए कॉरपोरेट बांड्स डिवेंचर कमर्शियल पेपर या दूसरे इंस्ट्रूमेंट जिनमें डेब्ट फंड्स इन्वेस्ट करते हैं उन्हें क्रेडिट रेटिंग एजेंसियों द्वारा रेट किया जाता है किसी एनटीटी की हाई क्रेडिट रेटिंग उसके द्वारा इशु किए गए डेब्ट इंस्ट्रूमेंट की रिपेइंग एबिलिटी को दर्शाता है दूसरी तरफ लो क्रेडिट रेटिंग का मतलब है इशु करने वाले की रिपेइंग एबिलिटी कमजोर है और उसके रीपेमेंट पर डिफॉल्ट होने के चांसेस ज्यादा है
क्रेडिट रेटिंग इन्वेस्टर्स को कुछ जरूरी जानकारियां इंस्ट्रूमेंट की क्वालिटी और उसके साथ जुड़े हुए रिस्क के आधार पर देती हैं जिससे आपको एक सही और जानकारीपूर्ण डिसीजन लेने में मदद मिलती है क्रेडिट रेटिंग्स डेब्ट फंड्स के कैटिगराइजेशन को भी आसान कर देती हैं जैसे लो रिस्क डेब्ट फंड केवल हाईली रेटेड डेब्ट इंस्ट्रूमेंट में इन्वेस्ट करते हैं जहां दूसरे डेब्ट फंड जैसे कि कॉरपोरेट बॉन्ड फंड ऐसे इंस्ट्रूमेंट में इन्वेस्ट करते हैं जो शायद हाई रेटेड नहीं होते
रैपिंग अप
तो इस तरह डेब्ट फंड्स के की फीचर्स को हमने जान लिया अब अगर आप डेब्ट मार्केट में मौजूद डेब्ट फंड्स की और डिफरेंट कैटिगरीज के बारे में जानने के लिए उत्सुक हैं तो अगले चैप्टर की तरफ चले
क्विक रिकैप
- डेब्ट फंड्स म्यूचल फंड है जो प्राथमिक रूप से डेट मार्केट में इन्वेस्ट करते हैं.
- जनरली यह डेब्ट फंड्स इन्वेस्टर के पैसों को डेब्ट और फिक्स्ड इनकम सिक्योरिटीज जैसे कि गवर्नमेंट सिक्योरिटीज, टी बिल्स, कॉरपोरेट बॉन्ड, और दूसरी मनी मार्केट इंस्ट्रूमेंट और डेब्ट सिक्योरिटीज में इन्वेस्ट करते हैं.
- डेब्ट फंड्स को प्रोफेशनल फंड मैनेजर्स द्वारा मैनेज किया जाता है.
- डेब्ट फंड्स में बहुत ही कम रिस्क होता है क्योंकि डेब्ट म्युचुअल फंड्स डेब्ट इंस्ट्रूमेंट में इन्वेस्ट करते हैं जैसे कॉरपोरेट बॉन्ड्स गवर्नमेंट सिक्योरिटीज डिवेंचर और दूसरे मनी मार्केट इंस्ट्रूमेंट्स
- इशु करने वाली एंटिटी के आधार पर डेब्ट इंस्ट्रूमेंट पर डिफॉल्ट होने के चांसेस लगभग जीरो होते हैं.
- यह कैपिटल को रिजर्व करने में भी मदद करते हैं बजाय उसे बढ़ाने में.
- क्योंकि डेब्ट फंड्स फिक्स्ड इनकम सिक्योरिटीज में इन्वेस्ट करते हैं इसलिए होल्डिंग पीरियड लिमिटेड होता है
- कॉरपोरेट बॉन्ड्स डिवेंचर कमर्शियल पेपर और दूसरेइंस्ट्रूमेंट जिनमें डेब्ट फंड इन्वेस्ट करते हैं उन्हें क्रेडिट रेटिंग एजेंसियों द्वारा रेट किया जाता है
- किसी एंटिटी की हाई क्रेडिट रेटिंग उसके द्वारा इशु किए गए डेब्ट इंस्ट्रूमेंट की रिपेइंग एबिलिटी को बताता है
- दूसरी तरफ लो क्रेडिट रेटिंग का मतलब होता है की इशू करने वाली एंटिटी की रिपेइंग एबिलिटी कम है और इशु करने वाले के रीपेमेंट्स पर डिफॉल्टर होने के चांसेस ज्यादा है
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