मूल्य निवेश: मूल्य निवेश कैसे काम करता है

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चलिए, दो एक ही जैसी निर्माण कंपनियों की तुलना करते हैं, एबीसी फिल्टर और प्रॉफिट एंटरप्राइजेज, जिनकी वर्तमान नेट वर्थ (कीमत) 500 करोड़ रुपये है। हालांकि, एबीसी फिल्टर का बाजार पूंजीकरण 250 करोड़ रुपये है। इसका मतलब यह है कि बाजार ने एबीसी फिल्टर को कम मूल्यांकन दिया है जो इसकी कुल संपत्ति का आधा है, सीधे शब्दों में कहें तो मार्केट की नजरों मे एबीसी फिल्टर का मूल्यांकन सिर्फ 250 करोड़ रुपए है। प्रॉफिट एंटरप्राइज का बाजार पूंजीकरण 500 करोड़ रुपये है। इसका मतलब है की मार्केट ने प्रॉफिट एंटरप्राइज को उसके मौजूदा नेट वर्थ के बराबर ही मूल्यांकित किया है। तो, अभी एबीसी फिल्टर, प्रॉफिट एंटरप्राइज के मुक़ाबले आधे मूल्यांकन पर और इसके वास्तविक मूल्य से कम पर कारोबार कर रही है। यह मानते हुए कि दोनों कंपनियों की भविष्य क्षमता एक जैसे ही है, एबीसी फिल्टर्स में निवेश करने से कुछ बाद बेहतर रिटर्न मिलेगा। यह मूल्य निवेश (वैल्यू इन्वेस्टिंग) का मामला है। वारेन बफेट ने इस अवधारणा का उपयोग करके बहुत ही ज्यादा पैसा बनाया है।  

हर दिन के मूल्य निवेश के पीछे की मूल अवधारणा बहुत सीधी है, अगर आप किसी चीज़ की सही वैल्यू जानते हैं, तो आप उस चीज़ को सेल के समय खरीद कर अपना काफी पैसा बचा सकते है। ज़्यादातर लोग इस बात से सहमत होंगे कि आप चाहे सेल में एक नया टीवी खरीदें, चाहे उसके पूरे पैसे देकर खरीदें, आपको वह समान ही टीवी मिलेगा जिसकी की स्क्रीन साइज़ और पिक्चर क्वालिटी भी समान ही रहेगी।

स्टॉक भी इसी तरह से काम करते हैं, जिसका अर्थ है कि कंपनी का शेयर मूल्य तब भी बदल सकता है जब कंपनी का मूल्य या मूल्यांकन समान रहा हो। टीवी की तरह ही स्टॉक भी उच्च और निम्न मांग के दौर से गुजरते हैं, जिससे कीमतों में उतार-चढ़ाव होता है – लेकिन इससे इस बात पर कोई फर्क नहीं पड़ता है कि आपको अपने पैसे के बदले में क्या मूल्य मिल रहा है। 

इसी तरह एक समझदार दुकानदार भी आपको यही तर्क देगा की टीवी के लिए पूरी कीमत चुकाने का कोई मतलब नहीं है क्योंकि साल में कई बार टीवी पर सेल आ ही जाती है, और इसी तरह समझदार निवेशक यही मानते हैं कि स्टॉक पर भी यह बात फिट बैठती है। हाँ, यह बात तो तय है कि टीवी की तरह, शेयर साल के अनुमानित समय जैसे कि ब्लैक फ्राइडे पर सेल पर नहीं जाएंगे और ना ही इनकी सेल की कीमतों को विज्ञापित किया जाएगा।   

मूल्य निवेश एक प्रकिया है जिसमें शेयर पर चल रही इन गुप्त बिक्री (सीक्रेट सेल) को ढूंढा जाता है और उन्हें उनकी मार्केट वैल्यू की तुलना में डिस्काउंट पर खरीदा जाता है। लॉन्ग-टर्म के लिए इन वैल्यू स्टॉक्स को खरीदने और रखने के बदले में, निवेशकों को काफी अच्छा रिवॉर्ड मिलता है।

आंतरिक मूल्य और मूल्य निवेश

शेयर बाजार में, किसी शेयर के सस्ते या रियायती होने का समकक्ष होता है जब उसके शेयरों को अंडरवैल्यू मूल्यांकित किया जाता है। मूल्य निवेशकों को उन शेयरों से लाभ की उम्मीद रखते हैं जिन्हें वह भारी डिस्काउंट पर खरीदते हैं।

स्टॉक के आंतरिक मूल्य के मूल्यांकन को खोजने के लिए निवेशक काफी अलग-अलग मैट्रिक्स का उपयोग करते हैं। आंतरिक मूल्य में वित्तीय विश्लेषण जैसे कंपनी के वित्तीय प्रदर्शन, राजस्व, कमाई, नकदी प्रवाह और लाभ को समझने के साथ-साथ अन्य मूल कारक जैसे, कंपनी का ब्रांड, व्यवसाय मॉडल, लक्ष्य बाजार और प्रतिस्पर्धी लाभ के कॉम्बिनेशन का उपयोग करना शामिल है। कंपनी के स्टॉक का मूल्यांकन करने के लिए इन कुछ मैट्रिक्स का प्रयोग किया जाता है -

  • प्राइस-टू-बुक (पी / बी) या पुस्तक मूल्य, जो किसी कंपनी के एसेट के मूल्य को मापता है और उनकी तुलना स्टॉक मूल्य से करता है। अगर कीमत, एसेट के मूल्य से कम है, तो स्टॉक का मूल्यांकन अंडरवैल्यू होता  है, यह मानते हुए कि कंपनी किसी वित्तीय कठिनाई में नहीं है।
  • प्राइस-टू-अर्निंग (पी / ई), जो कंपनी की कमाई के ट्रैक रिकॉर्ड को ये निर्धारित करने के लिए दिखाता है कि क्या शेयर की कीमत सभी कमाई को प्रदर्शित कर रहा है या अंडरवैल्यूड है? 

मार्जिन ऑफ सेफ़्टी

वैल्यू निवेशक को उनके मूल्य के आंकलन में गलती की गुंजाइश की जरूरत होती है, और वह अक्सर अपने लिए “मार्जिन ऑफ सेफ़्टी" को निर्धारित करते हैं जो उनकी रिस्क झेलने की क्षमता पर आधारित होता है। मार्जिन ऑफ सेफ़्टी का सिद्धांत, सफल वैल्यू निवेश के लिए एक बहुत जरूरी कारक है, जो इस आधारित है कि अगर आप स्टॉक्स को सौदेबाजी करके कम कीमतों पर खरीदते हो तो जब आप इन्हें बेचोगे तो आपको ज्यादा मुनाफा होने की संभावना होगी। मार्जिन ऑफ सेफ़्टी का एक फायदा यह भी है कि अगर आपके शेयर आपकी उम्मीद के हिसाब से प्रदर्शन नहीं करते है तो यह आपके पैसे को खोने की संभावना को बहुत कम कर देता है।

भेड़-चाल में ना चलें

मूल्य निवेशकों के पास विरोधाभासों की कई विशेषताएं हैं-वे झुंड का अनुसरण नहीं करते हैं मतलब वह भेड़चाल में नहीं चलते। वह ना सिर्फ कुशल-बाजार की परिकल्पना को अस्वीकार करते हैं, बल्कि जब सब बेच रहे होते हैं तो वह अक्सर खरीद रहे होते होते हैं या होल्ड कर रहे होते है। मूल्य निवेशक ट्रेंड वाले स्टॉक नहीं खरीदते हैं (क्योंकि वह आमतौर पर बहुत महंगे होते हैं)। इसके बजाय, अगर मूलभूत चीजें अच्छी हैं, तो वह उन कंपनियों में निवेश करते हैं वह घरेलू या जाने पहचाने नाम नहीं हैं। वह शेयरों की कीमतों में गिरावट आने परउन शेयरों पर भी एक नज़र डालते हैं जो घरेलू नाम हैं, अगर कंपनी के फंडामेंटल मजबूत रहे और और कंपनियाँ अपने प्रोडकट और सर्विस में अभी भी पहले जैसे अच्छी गुणवत्ता बनाए रखें, तो उन्हें ऐसी कंपनियों से रिकवरी का विश्वास होता है। 

मूल्य निवेशक सिर्फ एक शेयर के आंतरिक मूल्य के बारे में परवाह करते हैं। वह एक स्टॉक को खरीदते हैं क्योंकि वह उनकी वास्तविकता समझते हैं जो कंपनी में उसके स्वामित्व का एक प्रतिशत है। वह उन कंपनियों को खरीदना चाहते हैं या उनमें एक ठोस हिस्सा चाहते हैं जिनमें उन्हें लगता है कि इस कंपनी के सिद्धांत और वित्तीय मूल काफी अच्छे हैं, उन्हें इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता है कि बाकी क्या कर रहे हैं या बाकी क्या सोच रहे हैं।

 

वैल्यू निवेश के लिए परिश्रम और धैर्य की आवश्यकता होती है

किसी स्टॉक के वास्तविक आंतरिक मूल्य का अनुमान लगाने में कुछ वित्तीय विश्लेषण तो शामिल होते ही हैं, लेकिन इसमें कई बार निष्पक्षता भी शामिल होती है - जिसका अर्थ है कि यह विज्ञान से ज्यादा कला हो सकती है। दो अलग-अलग निवेशक एक कंपनी पर एक ही मूल्यांकन डाटा का विश्लेषण कर सकते हैं और विभिन्न निर्णयों पर पहुंच सकते हैं।

मूल्य निवेश रणनीतियाँ

एक अंडरवैल्यूड स्टॉक खरीदने के लिए आपको पहले कंपनी के बार में पूरी रिसर्च करनी होगी और कॉमन-सेंस से निर्णय लेने होंगे। मूल्य निवेशक क्रिस्टोफर एच. ब्राउन ने सलाह दी कि अगर कोई कंपनी अपना राजस्व बढ़ाना चाहती है तो वह निम्नलिखित तरीकों से यह कर सकती है:

  • उत्पादों पर कीमतें बढ़ाना
  • बिक्री के आंकड़े बढ़ाना
  • खर्चों में कमी
  • लाभहीन डिवीजनों को बेचना या बंद करना 

अंदरूनी खरीद और बिक्री (इनसाइडर बाइंग और सेलिंग)

हमारे उद्देश्यों के लिए, इनसाइडर कंपनी के वरिष्ठ प्रबंधक और निदेशक हैं, साथ ही वह शेयरहोल्डर भी हैं जो कंपनी के स्टॉक में कम से कम 10% हिस्सा रखते हैं। एक कंपनी के बारे में जो जानकारी उसको चलाने वाले प्रबंधकों और निदेशकों को होती है वैसी जानकारी किसी भी और व्यक्ति के पास मिलना बहुत मुश्किल होता है, तो अगर यह लोग खुद कंपनी के स्टॉक खरीदेते हैं तो यह मानना बिलकुल सही है कि कंपनी के मुनाफा कमाने की बहुत संभावना है।  

ठीक इसी तरह, ऐसे निवेशक जो किसी कंपनी के स्टॉक का कम से कम 10% हिस्सा रखते हैं, यह बात तो तय है कि उन्हें कंपनी में मुनाफा कमाने की क्षमता तो दिख ही रही है, वरना वह कंपनी मे इतना ज्यादा निवेश नहीं करते। और इसके विपरीत, अगर एक इनसाइडर कंपनी के स्टॉक को बेच रहा है तो यह जरूरी नहीं है कि इससे हम यह मतलब निकालें कि कंपनी खराब हालत में है – हो सकता हो कि इनसाइडर को किसी व्यक्तिगत कारण की वजह से नकद की जरूरत हो। फिर भी, अगर अंदरूनी लोगों/इनसाइडर द्वारा बड़े लेवल पर सेल-ऑफ हो रहा है तो ऐसी स्थिति के बारे में जानने के लिए आपको बहुत गहन विश्लेषण करने की जरूरत होती है।

वित्तीय विवरणों का विश्लेषण करें

कंपनी की बैलेंस शीट कंपनी की वित्तीय स्थिति की एक बड़ी तस्वीर प्रदान करती है। बैलेंस शीट में दो सेक्शन होते हैं, एक में कंपनी के एसेट की लिस्ट होती है और दूसरे सेक्शन में इसकी देनदारियों और इक्विटी की लिस्टिंग होती है। एसेट सेक्शन को कंपनी के नकद और नकद समकक्ष जैसे ; निवेश; प्राप्य या ग्राहकों का बकाया पैसा, माल, और अचल संपत्ति जैसे संयंत्र और उपकरण, नामक दो सब-सेक्शन में बांटा जाता है।

निष्कर्ष

अब जब हम मूल्य-निवेश की बारीकियों को समझते हैं, तो आप अगले अध्याय में रूपी कॉस्ट एवरेजिंग के बारे में जानने के लिए तैयार हैं।

अब तक आपने पढ़ा

  • मूल्य निवेश एक निवेश रणनीति है जिसमें ऐसे शेयरों को शामिल किया जाता है जो उनके आंतरिक या पुस्तक मूल्य से कम पर व्यापार करते दिखाई देते हैं।
  • मूल्य निवेशक ऐसे स्टॉक को सक्रिय रूप से चुनते है जो उन्हें लगता है कि शेयर बाजार में कम आंके जा रहे हैं।
  • मूल्य निवेशक वित्तीय विश्लेषण का उपयोग करते हैं, झुंड का पालन नहीं करते हैं, और अच्छी कंपनियों के दीर्घकालिक निवेशक हैं।
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